लद्दाख में उर्दू भाषा के इस्तेमाल पर सियासत गर्माई, पटवारी-नायब तहसीलदार पदों के लिए उर्दू भाषा नहीं जरूरी, लेह खुश तो सुलगा कारगिल
उपराज्यपाल प्रशासन ने विशेष आदेश जारी कर प्रदेश में पटवारी नायब तहसीलदार के पदों के लिए उर्दू भाषा की जानकारी अनिवार्य होने का प्रावधान खत्म कर दिया है। ऐसे में अब उर्दू भाषा न पढ़ने वाले लेह के युवा इन पदों के लिए आवेदन कर सकते हैं।
जम्मू, राज्य ब्यूरो। केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के लेह व कारगिल जिलों में राजस्व विभाग के कामकाज में उर्दू भाषा के इस्तेमाल को लेकर बंट गए हैं। पटवारी, नायब तहसीलदार के पदों के लिए उर्दू भाषा अनिवार्य न होने के फैसले पर यहां लेह में उत्साह है तो वहीं कारगिल सुलग रहा है। ऐसे में लद्दाख अटानमस हिल डेवेलपमेंट काउंसिल के चीफ एग्जीक्यूटिव फिरोज खान ने उपराज्यपाल आरके माथुर को पत्र लिखकर जोर दिया है कि उर्दू विरोधी इस फैसले को फौरन वापस लिया जाए।
उपराज्यपाल प्रशासन ने विशेष आदेश जारी कर प्रदेश में पटवारी, नायब तहसीलदार के पदों के लिए उर्दू भाषा की जानकारी अनिवार्य होने का प्रावधान खत्म कर दिया है। ऐसे में अब उर्दू भाषा न पढ़ने वाले लेह के युवा इन पदों के लिए आवेदन कर सकते हैं। इस समय लद्दाख के कारगिल जिले में युवा प्रशासन के इस फैसले के खिलाफ प्रदर्शन की तैयारी में हैं। कारगिल में उर्दू पढ़ी जाती है। ऐसे हालात में कारगिल हिल काउंसिल भी उपराज्यपाल प्रशासन के खिलाफ मैदान में आ गई है।
फिरोज खान ने उपराज्यपाल को लिखा है कि लद्दाख में उर्दू भाषा में कामकाज एक शताब्दी से हो रहा है। डोगरा महाराजा प्रताप सिंह ने इसे जम्मू कश्मीर में अधिकारिक भाषा का दर्जा दिया था। राजस्व विभाग का सारा कामकाज उर्दू भाषा में हो रहा है। इसके इस्तेमाल पर रोक लगाने से कई प्रकार की समस्याएं पैदा हो जाएंगी। इस भाषा ने जम्मू कश्मीर व लद्दाख को जोड़े रखा है। यह और बात है कि कुछ लोग इसे विदेशी भाषा कहते हैं।
खान ने लिखा है कि सितंबर 2021 में इस संबंध में इम्पावर कमेटी ने सबको विश्वास में लेकर लद्दाख में भर्ती के नियम बनाए थे। अब प्रशासन ने इनमें यकायक बदलाव करने का अप्रासंगिक फैसला किया है। अभी लद्दाख में राजस्व रिकार्ड का अंग्रेजी में अनुवाद व इसे डिजिटल रूप दिया जाना बाकी है। ऐसे में उपराज्यपाल प्रशासन इस फैसले को वापस लेकर विशेषज्ञों की एक कमेटी बनाए।