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विधानसभा भंग के फैसले से राजनीतिक दल नाखुश, जनता खुश

राज्य में सरकार बनाने का दावा करने वाले राजनीतिक दल भले इस फैसले का विरोध कर रहे हों। परंतु राज्य की आम जनता इस फैसले से खुश है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Fri, 23 Nov 2018 05:20 PM (IST)Updated: Fri, 23 Nov 2018 05:20 PM (IST)
विधानसभा भंग के फैसले से राजनीतिक दल नाखुश, जनता खुश
विधानसभा भंग के फैसले से राजनीतिक दल नाखुश, जनता खुश

जम्मू, जेएनएन। जम्मू-कश्मीर राज्यपाल सत्यपाल मलिक के विधानसभा भंग करने के आदेश के बाद राजनीतिक पार्टियों के खेमों में सरगर्मियां तेज हो गई है। राज्य में सरकार बनाने का दावा करने वाले राजनीतिक दल भले इस फैसले का विरोध कर रहे हों। परंतु राज्य की आम जनता इस फैसले से खुश है। सोशल मीडिया पर तो कई लोगों ने जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन की ही मांग की है। उनका कहना है कि राज्यपाल शासनकाल में लोगों के काम, उनकी समस्याएं और विकास कार्य तेजी से हुए हैं।

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डोगरा फ्रंट के चेयरमैन अशोक गुप्ता ने राज्यपाल के फैसले और उनके शासन की पैरवी करते हुए कहा कि राज्य के पिछले 60 वर्षों में इतनी बढ़ी संख्या में आतंकवादी नहीं मारे गए। इतना ही नहीं आतंवादियों पर लगाम कसे जाने के बाद घाटी में पत्थरबाजी की घटनाओं में भी काफी कमी आई है। यही नहीं राज्यपाल शासन के दौरान 200 से अधिक आतंकवादी मारे जा चुके हैं। वह दिन दूर नही जब कश्मीर घाटी आतंकवाद मुक्त होगी। गुप्ता ने कहा कि सत्ता पाने के लिए सभी राजनीतिक पार्टियां जिस तरह खरीद-फरोख्त कर रही थी, यदि गठबंधन सरकार बनती तो इसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ता। घाटी के हालात पर भी इसका असर पड़ता। उन्होंने सुझाव दिया कि प्रदेश में राज्यपाल शासन तब तक रहना चाहिए जब तक घाटी में आतंकवाद पूरी तरह से समाप्त नही हो जाता।

वहीं राज्य में विधानसभा भंग करने के फैसले का स्वागत करते हुए भारतीय किसान संघ के पूर्व महासचिव सुभाष दसगोत्रा ने कहा कि राज्य में आंतकवाद की समाप्ति तक राज्यपाल शासन ही लगा रहना चाहिए। अब तक राज्य में जितनी भी सरकारें आई हैं वह आतंकवाद से निपटने में पूरी तरह असफल साबित हुई हैं। लोगों को अब राज्यपाल शासन से ही ज्यादा उम्मीदें हैं।

वहीं डोगरा लिब्रेशन फ्रंट के कुलदीप कुमार का कहना है कि पीडीपी-कांग्रेसी जैसी पार्टियां दोहरे मापदंड अपनाने में लगी हुई हैं। लोगों को ऐसी राजनीतिक पार्टियों से दूर रहना चाहिए। आंतकवाद को राज्य से खत्म करने के लिए ये राजनीतिक दल गंभीर नहीं है। इन्हीं पार्टियों का संरक्षण पाकर घाटी के अलगाववादी नेता भी आंतकवाद को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं। राज्यपाल को जम्मू-कश्मीर में फिर से शांति बहाली के लिए कड़े कदम उठाने होंगे और राज्यवासी भी उनके इस फैसले में शामिल है। 


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