22 को काला दिवस मनाएंगे गुलाम कश्मीर रिफ्यूजी, जंतर-मंतर पर करेंगे धरना-प्रदर्शन
विस्थापित प्रमोद जेई ने कहा कि 1947 का दौड़ बड़ा कठिन था। हमारे लोगों को बड़ी संख्या में अपनी जानें गंवानी पड़ी। संपति पीछे छूट गई।
जम्मू, जागरण संवाददाता। जम्मू कश्मीर पर 1947 में हुए कबायली हमले के विरोध में गुलाम कश्मीर के विस्थापित परिवार 22 अक्टूबर को नई दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन करेंगे और इसदिन को काला दिवस के तौर पर मनाएंगे। यह वही दिन है जब पाकिस्तानी सेना के इशारे पर कबायलियों ने जम्मू कश्मीर के मुजफ्फराबाद व आसपास के क्षेत्रों पर हमला कर दिया था और कुछ क्षेत्रों को अपने कब्जे में ले लिया था। इसके बाद बड़ी संख्या में हिंदू परिवारों को गुलाम कश्मीर से विस्थापित होकर इस ओर जम्मू कश्मीर में आना पड़ा था। हर साल काल दिवस के तौर पर यह विस्थािपत जम्मू में धरना प्रदर्शन करते हैं लेकिन अब वे दिल्ली में अपनी आवाज को बुलंद करेंगे ताकि केंद्र सरकार के कानों में उनकी मांगे पड़ सकें। इसमें जम्मू कश्मीर सहित देश के अन्य हिस्सों में रह रहे विस्थापित भाग लेंगे।
गुलाम कश्मीर के विस्थापितों का कहना है कि 70 साल बीत गए और कोई भी सरकार गुलाम कश्मीर को खाली नही करा पाई। ऐसे में सात दशक से विस्थापित परिवार कठिन परिस्थितयों से होकर गुजर रहे हैं। 13 लाख परिवार हैं मगर इनको कोई आज पूछ ही नही रहा। हालांकि केंद्र सरकार ने इन सभी परिवारों को साढ़े पांच लाख रुपये के हिसाब से राहत राशी उपलब्ध कराई है लेकिन विस्थापितों का कहना है कि यह तो बहुत अल्प मात्र है। इन परिवारों को भी ऐसे ही राहत चाहिए जैसे कि कश्मीरी पंडितों को मिल रही है।
गुलाम कश्मीर के विस्थापितों की संस्था एसओएस इंटरनेशनल के चेयरमैन राजीव चुनी ने कहा कि आज गुलाम कश्मीर को खाली कराने के लिए बड़ा बड़ा बातें तो हो रहा है मगर यहां के रहने वाले लोग जोकि अाज विस्थापित बने हुए हैं, की कोई बात नही सुन रहा। पिछले सात दशक से यह लोग अपने पैतृक घरों में नही जा सके। उन्होंने कहा कि कश्मीरी पंडित फिर अपने घरों में अपने क्षेत्रों में किसी न किसी तरीके से जा सकते हैं मगर विस्थापित गुलाम कश्मीर तो नही जा सकता। फिर ऐसे में इन विस्थापितों के साथ अनदेखी आज तक क्यों की गई। अब हमें पूरा इंसाफ चाहिए। केंद्र सरकार का तो मुआवजा मिला है, महज एक छोटी सी रकम है। हमें नौकरियों, शिक्षा में कोटा चाहिए। राशन और नकद राहत चाहिए, ऐसे ही जैसे कि कश्मीरी पंडितों को मिलता है।
विस्थापित प्रमोद जेई ने कहा कि 1947 का दौड़ बड़ा कठिन था। हमारे लोगों को बड़ी संख्या में अपनी जानें गंवानी पड़ी। संपति पीछे छूट गई। इन विस्थापितों को बसाने के लिए सरकार को बड़ा सोचना होगा। दिलीप कुमार व वेद राज बाली जाेकि एसओएस इंटरनेशनल के सदस्य हैं, भी दिल्ली रवाना हो रहे हैं ताकि धरने प्रदर्शन के कार्यक्रम में भाग लिया जा सके।