International Women's Day 2021: घर में मां और अस्पताल में सिस्टर की बखूबी निभाई जिम्मेदारी
रुचि श्री महाराजा गुलाब सिंह अस्पताल में नर्स है। उसके पति साहिल भी इसी अस्पताल में नर्सिंग अर्दली है। दोनों का तीन साल का बच्चा है। जब कोरोना का पहला मामला आया तो इसी अस्पताल में गर्भवती महिलाओं और संक्रमित बच्चों को रखने के लिए आइसोलेशन वार्ड बनाया गया।
जम्मू. रोहित जंडियाल : दस महीने पहले कोरोना का नाम सुनते ही हर कोई घबरा जाता था। अस्पताल में तो जाने से भी कतराता था लेकिन इस दौरान स्वास्थ्य कर्मियों ने अपने परिवार की परवाह किए बगैर कोरोना संक्रमण पर नियंत्रण पा कर मिसाल कायम की। इन्हीं स्वास्थ्य कर्मियों में एक श्री महाराजा गुलाब सिंह अस्पताल जम्मू में काम करने वाली रुचि गुप्ता भी है। इस दौरान रूचि, उसका तीन वर्ष का बेटा और पति तीनों ही संक्रमित भी हुए मगर किसी ने भी हार नहीं मानी और स्वस्थ होने के तुरंत बाद फिर से डयूटी पर वापस लौटे। घर में मां और अस्पताल में सिस्टर की बखूबी जिम्मेदारी संभाली।
रुचि श्री महाराजा गुलाब सिंह अस्पताल में नर्स है। उसके पति साहिल भी इसी अस्पताल में नर्सिंग अर्दली है। दोनों का तीन साल का बच्चा है। गत वर्ष मार्च महीने में जब कोरोना का पहला मामला आया तो इसी अस्पताल में गर्भवती महिलाओं और संक्रमित बच्चों को रखने के लिए आइसोलेशन वार्ड बनाया गया। उस समय रुचि की डयूटी इमरजेंसी में थी। तीन वर्ष का बच्चा होने के कारण संक्रमण का भय भी था लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। पति की भी अस्पताल ही में ड्यूटी थी। जब रुचि अस्पताल में जाती थी तो बच्चा साहिल के पास छोड़ जाती थी। जब दोनों की एक साथ डयूटी होती थी तो बच्चा अपने रिश्तेदारों के पास छोड़ जाते थे।
घर में ही पूरा परिवार हो गया था आइसोलेट
रुचि के लिए सब कुछ आसान नहीं था। उसकी डयूटी कभी इमरजेंसी तो कभी नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट में होती थी। उस दौरान श्री महाराजा गुलाब सिंह अस्पताल में संक्रमण के मामले आना भी बढ़ गए। कई गर्भवती महिलाओं में जब संक्रमण की पुष्टि हुई तो अस्पताल में लेबर रूम तक को बंद करना पड़ा। आपरेशन थियेटर भी बंद हुए लेकिन रुचि पहले की तरह ही ड्यूटी देती रही। इस दौरान रुचि, उसके पति साहिल और तीन साल का बच्चा भी संक्रमित हो गया। इससे उसकी चिंता बढ़ गई। घर में ही पूरा परिवार आइसोलेट हो गया। अन्य सदस्यों को घर से बाहर रिश्तेदारों के पास जाना पड़ा। उस समय अपने और संक्रमित हुए अन्य परिजनों की देखभाल की जिम्मेदारी भी रुचि पर ही थी। उसने इस जिम्मेदारी को भी बखूबी निभाया। घर में खाने से लेकर दवाई तक वहीं देती थी। 14 दिन बाद जब फिर ठीक हुई तो एक बार फिर से इमरजेंसी में ड्यूटी संभाली।
वह समय बहुत ही कठिन था : रूचि
रूचि का कहना है कि वह समय बहुत ही कठिन था। अस्पताल में बचाव के लिए हालांकि सभी प्रबंध किए हुए थे लेकिन जच्चा-बच्चा अस्पताल होने और खुद का तीन साल का बच्चा होने के कारण चुनौती अधिक थी। आप किसी को उपचार से मना नहीं कर सकते। नर्स की बैसे ही डयूटी कठिन होती है। जब अधिक केस आए तो डयूटी इमरजेंसी में थी। तब रिस्क अधिक होता था। लेकिन डयूटी तो देनी होती थी। हर मरीज के पास खुद जाना कर उसे इंजेक्शन लगाने से लेकर दवाई तक भी देनी पड़ती थी। जब बच्चा भी संक्रमित हो गया तब बहुत परेशानी आई। घर में कैद होकर रहना पड़ता था। महिला होने के नाते घर ममें मां की भूमिका होती थी तो अस्पताल में सिस्टर की। सब कुछ निभाना पड़ता था। अब भी अस्पताल में डयूटी है। अब पहले जैसा डर नहीं है। धीरे-धीरे सामान्य हो रहा है। साहिल का कहना है कि रुचि और वह कई बार एक साथ ही अस्पताल में डयूटी देने के लिए आते थे। बच्चे को तब संभालना मुश्किल होता था लेकिन सब कुछ ठीक हो गया। अब भी हम डयूटी दे रहे हैं।