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उद्योग जगत की अफसरशाही की पोल खोलता है 'मुलाकात'

जागरण संवाददाता जम्मू सांस्कृतिक क्षेत्र में सराहनीय प्रदर्शन के लिए जूनियर फेलोशिप प्राप्त

By JagranEdited By: Published: Mon, 23 Nov 2020 06:19 AM (IST)Updated: Mon, 23 Nov 2020 06:19 AM (IST)
उद्योग जगत की अफसरशाही की पोल खोलता है 'मुलाकात'
उद्योग जगत की अफसरशाही की पोल खोलता है 'मुलाकात'

जागरण संवाददाता, जम्मू : सांस्कृतिक क्षेत्र में सराहनीय प्रदर्शन के लिए जूनियर फेलोशिप प्राप्त करने वाले मोहम्मद यासीन ने नटरंग संडे थियेटर श्रृंखला में नाटक 'मुलाकात' का मंचन किया। निर्देशक ने अपनी सूझबूझ का प्रदर्शन करते हुए वाक्काव हावेल के लिखे इस नाटक को कलाकारों के तालमेल से यादगार बनाने का काम किया। नाटक का हिदी अनुवाद नवीन पंत और डॉ. शरद यादव ने किया है।

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यह नाटक उद्योग जगत में अफसरशाही पर आधारित है। नाटक की कहानी एक बियर बनाने वाली भट्ठी में कार्यरत उच्च अधिकारी फोरमैन और एक साधारण कर्मचारी वानेक के इर्द-गिर्द घूमती है। कहानी की शुरुआत अधिकारी और कर्मचारी की मुलाकात से होती है। वानेक के न चाहते हुए भी फोरमैन उसे बियर पीने के लिए कहता है। फोरमैन बियर के नशे में वानेक से भट्ठी में रोजमर्रा होने वाली अंदरूनी बातें जानने की कोशिश करता है। वानेक नशे में होते हुए भी अपने सिद्धांतों पर अड़ा रहता है। भट्ठी में काम करने के साथ-साथ एक नाटक संस्था में लेखक का काम करने वाले वानेक की कमियों को भांपने के लिए फोरमैन उस पर दबाव बनाने की कोशिश करता है। कॉर्पोरेट जगत में अधिकारियों और कर्मचारियों के संबंधों पर सवाल उठाते हुए कहानी तब नया मोड़ लेती है, जब फोरमैन साधारण से कर्मचारी वानेक को स्टोर का अध्यक्ष बनने का ऑफर देता है। जीवन में आए इस मौके को वानेक हाथ से जाने नहीं देना चाहता और दूसरी तरफ फोरमैन को उसकी आजादी, कर्मचारियों में उसकी अच्छी छवि और उसका अपने दोस्तों से मिलना भी अखरता है। नशे में धुत फोरमैन किसी भी तरह वानेक को अपनी तरफ मिलाने की कोशिश करता है। फोरमैन उसे नाटक संस्था में काम करने वाली हीरोइन से मिलाने के लिए कहता है पर वानेक समझ जाता है कि उसका फायदा उठाया जाएगा, इसलिए वो फोरमैन के जाल से बचने की सोचने लगता है। जब फोरमैन को सब पैंतरे नाकाम होते दिखते हैं तो वो उसे तरह-तरह से लालच देने लगता है। कहानी एक साधारण मुलाकात से सिद्धांतों की लड़ाई की तरफ बढ़ने लगती है।

सवा घंटे के इस नाटक में कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि दोनों किरदार कहीं से धीमे पड़ते हों। दोनों अभिनेताओं ने लंबे संवादों की संवेदना को बनाए रखा। फोरमैन की भूमिका को बृजेश शर्मा ने बखूबी निभाया है और वानेक के किरदार में सुशांत सिंह चाढ़क अपने किरदार के साथ न्याय करते नजर आते हैं। यह नाटक आधुनिक जगत में फैली इस अफसरशाही जैसी समस्या पर सटीक तंज है। नाटक में कर्मचारियों की शराफत का फायदा उठा कर अपने काम के लिए इस्तेमाल करना, उनके प्रति झूठी सहानुभूति जता कर अपने काम करवाना और उन्हें चापलूसी करने पर मजबूर करने जैसे गलत कार्यो को उजागर करने की कोशिश की गई है। संगीत गोपी शर्मा ने दिया और प्रकाश व्यवस्था नीरज कांत की रही।


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