मंचन से दर्शायी वैवाहिक जीवन की विडंबना
जागरण संवाददाता, जम्मू : ऐमेच्योर थियेटर ग्रुप और यूनिसन कल्चरल ट्रूप की ओर से नाट्य निर्देशक स्व. क
जागरण संवाददाता, जम्मू : ऐमेच्योर थियेटर ग्रुप और यूनिसन कल्चरल ट्रूप की ओर से नाट्य निर्देशक स्व. कवि रतन की याद में आयोजित नाट्योत्सव रविवार को मोहन रोकेश के लिखे नाटक 'आधे अधूरे' के मंचन के साथ शुरू हुआ।
आम बोलचाल की भाषा में रचे गए इस नाटक के माध्यम से मध्यवर्गीय परिवार के वैवाहिक जीवन की विडंबना को दर्शाया गया।
यामिनी कल्चरल सोसायटी की ओर से वीना डोगरा के निर्देशन में मंचित यह नाटक मध्यवर्गीय वैवाहिक जीवन पर आधारित था। नाटक में उमेश सिंह ने चार पुरुषों की भूमिका निभाई। सावित्री एक कामकाजी मध्यवर्गीय शहरी महिला है। जिसकी दो बेटियां, पति और एक बेटा नाटक के प्रमुख पात्र हैं। नाटक सामाजिक विसंगतियों को दर्शाता है। नाटक महिला पुरुष के बीच के लगाव और तनाव की कहानी है।
महेन्द्रनाथ और सावित्री एक दूसरे से प्रेम करते है। विवाह के बाद सावित्री को लगता है कि उसने गलत आदमी चुन लिया है। वास्तव में यह नाटक विघटन की प्रक्रिया को दर्शाता है। यह विघटन व्यक्ति, व्यक्ति, परिवार, समाज, देश, सर्वत्र व्याप्त है।
सावित्री चार पुरुषों महेन्द्रनाथ, सिघानिया, जुनेजा, जगमोहन के संपर्क में आती है। ये चारों ही उसे 'आधे अधूरे' लगते हैं। सावित्री के परिवार में, एक पुत्र अशोक है, जो बेरोजगार है। एक विवाहित पुत्री विनीता, बिन्नी, है और एक छोटी लड़की किन्नी है। नाटककार ने सावित्री, महेन्द्रनाथ के माध्यम से आम मध्यवर्गीय भारतीय परिवारों को व्यक्त किया है। नाटक यह दर्शाने में सफल रहा कि कोई भी रिश्ता पूर्ण नहीं है। न ही कोई किसी से संतुष्ट है। नाटक में औरत पूर्ण होने के लिए जदोजहद करती रहती है लेकिन उसका पति हर रिश्ते के अधूरेपन से परेशान होकर किसी तरीके से मुक्ति चाहता है। नाटक में सावित्री की भूमिका निभाने वाली कांची खजूरिया ने अपनी भूमिका से प्रभावित किया। चार पुरुषों की भूमिका निभा रहे उमेश सिंह ने भी छाप छोड़ी तो बेटियों की भूमिका में गरिमा शर्मा और आयुषी खजूरियां एवं बेटे की भूमिका में शुभम सिंह ने अपनी भूमिका से न्याय किया। गौतम सिंह सहायक निर्देशक थे। मेकअप कमल शर्मा ने किया। सेट निखिल सिंह ने डिजाइन किया। वेशभूषा सुनीता ठाकुर ने डिजाइन की। लाइट डिजाइनिग अभिषेक सिंह ने की। सिद्धार्थ सिंह प्रोडक्शन मैनेंजर थे। चंचल डोगरा ओवर ऑल इंचार्ज थी। नाटक के अंत में आयोजित नाट्य परिचर्चा में दर्शकों की ओर से कई सवाल पूछे गए। जिनके विस्तारपूर्वक एवं संतोषजनक जवाब दिये। उमेश ने अपनी भूमिका से नाटक को यादगार बनाया।