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Jammu Kashmir: पूछ रहे कश्मीर के लोग- कहां गया खुद को जम्मू-कश्मीर का हितैषी बताने वाला पीएजीडी

नेशनल कांफ्रेंस जिसने दिसंबर में ही पीएजीडी को ठंडे बस्ते में डाल दिया था की बीते तीन माह के दौरान जितनी बार भी बैठक हुई किसी भी नेता ने इसका और पांच अगस्त 2019 से पहले की संवैधानिक स्थिति का कोई जिक्र नहीं किया।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Tue, 08 Jun 2021 09:50 AM (IST)Updated: Tue, 08 Jun 2021 09:59 AM (IST)
Jammu Kashmir: पूछ रहे कश्मीर के लोग- कहां गया खुद को जम्मू-कश्मीर का हितैषी बताने वाला पीएजीडी
पीपुल्स कांफ्रेंस के सज्जाद गनी लोन ने सार्वजनिक तौर इससे नाता तोड़ लिया।

श्रीनगर, नवीन नवाज: उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ मुलाकात के बाद जम्मू कश्मीर को फिर से राज्य बनाए जाने की शुरू हुई अटकलों के बीच लोग अब पूछने लगे हैं कि आखिर कहां गया-पीपुल्स एलायंस फार गुपकार डिक्लेरेशन (पीएजीडी)। कोई भी इसके भविष्य को लेकर चिंतित नहीं है बल्कि इसके कर्णधारों की अवसरवादिता पर कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि पीएजीडी कौन सी गुफा में गुम हो चुका है। नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, माकपा, अवामी नेशनल कांफ्रेंस सरीखे दल जो कल तक इसके एजेंडे की कामयाबी के लिए अपना सबकुछ कुर्बान करने की बात करते थे, अब इसे अपने लिए कुर्बान करते हुए नजर आ रहे हैं।

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पीएजीडी की शुरुआत चार अगस्त 2019 को पूर्व मुख्यमंत्री डा. फारूक अब्दुल्ला के घर हुई एक सर्वदलीय बैठक में हुई थी। इसमें महबूबा मुफ्ती समेत सभी कश्मीर केंद्रित दलों ने भाग लेते हुए जम्मू कश्मीर की विशिष्ट पहचान बनाए रखने के लिए हर संभव कदम उठाने का एलान किया था। इसे गुपकार घोषणा का नाम दिया था। इसके बाद पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम को संसद में पारित किए जाने के साथ ही जम्मू कश्मीर का भारत में पूर्ण विलय हो गया।

जम्मू कश्मीर में दो निशान-दो विधान की व्यवस्था समाप्त हो गई और जम्मू कश्मीर राष्ट्रीय मुख्यधारा में पूरी तरह शामिल हो गया। इसके बाद 20 अक्टूबर 2020 को पीडीपी की अध्यक्षा महबूबा के साथ विचार विमर्श के बाद फारूक अब्दुल्ला ने माकपा, पीपुल्स कांफ्रेंस और पीपुल्स मूवमेंट व अवामी नेशनल कांफ्रेंस के साथ मिलकर पीएजीडी का गठन किया। मकसद-जम्मू कश्मीर में पांच अगस्त 2019 से पहले की संवैधानिक स्थिति को बहाल कराना बताया गया। पीएजीडी की कमान डा. फारूक अब्दुल्ला को सौंपी गई और उपाध्यक्ष महबूबा बनीं। सज्जाद गनी लोन को प्रमुख प्रवक्ता बनाया गया।

अलबत्ता, पीएजीडी को लेकर आम कश्मीरियों ने पहले ही दिन से आशंका जताई थी कि इसमें जो भी शामिल है उसने जनभावनाओं का शोषण कर, एक बार फिर जम्मू कश्मीर की सियासत में अपनी प्रासंगिकता साबित करने का एक सुरक्षित रास्ता तैयार किया है। पीएजीडी ने पहले डीडीसी चुनावों का विरोध किया और फिर उनमें शामिल हो गई। चुनाव में पीएजीडी ने मिलकर अपने उम्मीदवार उतारे थे, उसके बावजूद पीएजीडी चार जिलों मेें ही अपने चेयरमैन बना पाई। डीडीसी चुनावों के बाद से पीएजीडी कहीं गायब हो चुका है। पीपुल्स कांफ्रेंस के सज्जाद गनी लोन ने सार्वजनिक तौर इससे नाता तोड़ लिया। पीडीपी की अध्यक्षा महबूबा भी इसे लेकर कोई सार्वजनिक बयान नहीं दे रही हैं बल्कि वह पीएजीडी पर पूछे जाने वाले सवालों से भी बचती फिर रही हैं।

नेशनल कांफ्रेंस जिसने दिसंबर में ही पीएजीडी को ठंडे बस्ते में डाल दिया था, की बीते तीन माह के दौरान जितनी बार भी बैठक हुई, किसी भी नेता ने इसका और पांच अगस्त 2019 से पहले की संवैधानिक स्थिति का कोई जिक्र नहीं किया। सबसे बड़ी बात यह कि नेशनल कांफ्रेंस जो कल तक जम्मू कश्मीर में परिसीमन का विरोध कर रही थी, अब इसका हिस्सा बनने के लिए तैयार हो चुकी है। हालांकि वह इसका बायकाट करती आ रही थी।

केंद्र के साथ बेहतर संबंध बनाना चाहता है नेकां : कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ आसिफ कुरैशी ने कहा कि नेशनल कांफ्रेंस बीते कुछ समय से केंद्र के साथ अपने संबंध बेहतर बनाने के प्रयास में है। नेशनल कांफ्रेंस इस समय कश्मीर की सियासत में खुद को पूरी तरह से दरकिनार महसूस कर रही है। उन्होंने कहा कि नेकां का यह कहना कि वह परिसीमन की प्रक्रिया में शामिल होने पर विचार कर रही है, बता देता है कि वह पीएजीडी से छुटकारा पाना चाहती है और यह स्थिति तब है, जब डा. फारूक अब्दुल्ला इसके अध्यक्ष हैं।

अब कोई पीएजीडी का जिक्र नहीं करता : वरिष्ठ पत्रकार अहमद अली फैयाज ने कहा कि कश्मीर में कोई भी पीएजीडी का जिक्र नहीं करता। लोग पहले ही दिन से इस पर सवाल उठा रहे थे। अब तो बिल्ली पूरी तरह थैले से बाहर आ चुकी है। इसमें जो भी घटक हैं, सभी में वर्चस्व की लड़ाई है और उनमें से कोई भी ज्यादा देर तक सत्ता से बाहर नहीं रहना चाहता। सज्जाद गनी लोन तो पहले ही किनार कर चुके हैं। नेकां बिना बोले ही अलग है, वह इसलिए एलान नहीं करती क्योंकि डा. फारूक अब्दुला इसके अध्यक्ष हैं। महबूबा मुफ्ती का पूरा ध्यान इस समय ईडी और एनआइए से अपनी जान बचाने पर केंद्रित है। वह भी अब पीएजीडी को लेकर ज्यादा रुचि नहीं दिखा रही हैं।

राजनीतिक अवसरवादिता का गठजोड़ : कश्मीर मामलों के जानकार और लेखक रमीज मखदूमी ने कहा कि पीएजीडी तो एक तरह से राजनीतिक अवसरवादिता का गठजोड़ है। इसलिए यहां आम कश्मीरी इसके नेताओं पर कटाक्ष करते हुए पूछता है कि यह कौन सी गुफा में छिपा है। पीएजीडी के नेताओं में बीते छह माह से एक भी बैठक नहीं हुई है। 


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