अब कश्मीर में विकास और लोकतंत्र होगा मजबूत, कश्मीरियों के भविष्य को बेहतर बनाने को लेकर होगी राजनीति
केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर प्रदेश में देश के विभिन्न हिस्सों से केंद्रीय अर्धसैनिकबलों की 50 कंपनियां भी कानून व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने के लिए पहुंच गई। इनमें से 30 घाटी में अपना मोर्चा संभाल चुकी हैं जबकि 20 को जम्मू प्रांत में लगाया गया है।
श्रीनगर, नवीन नवाज। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर प्रदेश का पहला दौरा समाप्त हुए लगभग आठ दिन बीत चुके हैं। दौरे का असर जम्मू-कश्मीर के समूचे सुरक्षा और राजनीतिक परिदृश्य पर नजर आने लगा है। इस दौरे के बाद कश्मीर घाटी के राजनीतिक हलकों में एक बात स्पष्ट हो गई है कि केंद्र सरकार अब कश्मीर मुद्दे पर किसी भी स्तर पर अलगाववाद या पाकिस्तान समर्थक राजनीति के लिए जमीन देने को राजी नहीं है। कश्मीर का एजेंडा दिल्ली तय करेगी, स्थानीय राजनीतिक दल नहीं और उनकी भूमिका लोकतंत्र व राष्ट्रवाद को मजबूत बनाते हुए विकास को गति देने तक सीमित रहेगी। आतंकवाद के प्रति जीरो टालरेंस की नीति के साथ-साथ सुरक्षा एजेंसियों की कथित अकर्मण्यता भी असहनीय है।
5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम लागू किए जाने के बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह पहली बार 23 अक्टूबर 2021 को जम्मू-कश्मीर के दौरे पर पहुंचे थे। वह 26 अक्टूबर को लौटे और जब तक प्रदेश में रहे, लगातार बैठकों में या फिर जम्मू कश्मीर में विकासचक्र की गतिशीलता की पुष्टि करने वाले समारोहों में व्यस्त रहे। उन्होंने घाटी में युवाओं को संबोधित करते हुए दो टूक शब्दों में कहा कि कश्मीर में अगर किसी से बातचीत होगी तो सिर्फ कश्मीर के युवाओं से, पाकिस्तान या हुर्रियत से नहीं। उन्होंने कहा कि मैं यहां युवाओं से दोस्ती का हाथ बढ़ाने आया हूं। इसके साथ ही उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ सख्ती से निपटने की अपनी संकल्पबद्धता को दोहराया। कश्मीर में उनकी मौजूदगी के दौरान भारत की हार पर जश्न मनाने वाले लोगों के खिलाफ पुलिस द्वारा गैर कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया जो यह बताता है कि दोस्ती की पेशकश को किसी भी स्तर पर केंद्र की कमजोरी न समझ लिया जाए। दोस्ती का यह हाथ देश की एकता अखंडता को चुनौती देने वालों के मुंह पर तमाचा भी बन जाएगा।
कश्मीर को केंद्र सरकार अब आंतरिक मुद्दा मानती है :
केंद्रीय गृहमंत्री ने जिस अंदाज में लोगों को विशेषकर युवाओं को संबोधित किया, उससे कश्मीर के राजनीतिक समीकरणों में बदलाव की एक नई संभावना पैदा हुई जो बीते रोज सज्जाद गनी लोन की अध्यक्षता वाली पीपुल्स कांफ्रेंस की बैठक में ही नहीं, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की केंद्रीय कार्यकारिणी की महबूबा मुफ्ती की अध्यक्षता में हुई बैठक में सही साबित होती नजर आई है। शाह ने जो कहा था उससे साफ हो गया है कि माैजूदा केंद्र सरकार के लिए कश्मीर मौजूदा परिस्थितियों में अब भारत-पाक के बीच कोई द्विपक्षीय मुद्दा नहीं रहा है। वह इसे पूरी तरह आंतरिक मुद्दा मानती है। इसलिए कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ बातचीत की संभावना या कश्मीर में बैठे पाक परस्त तत्वों के लिए उदारता की कोई लेशमात्र संभावना नहीं है।
नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी या उन जैसी कश्मीर केंद्रित दलों को इस पर सुझाव देने की जरुरत नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने साफ कर दिया कि कश्मीर का एजेंडा अब अगर तय करेगी तो भारत सरकार तय करेगी, स्थानीय राजनीतिक दलों को सिर्फ स्थानीय मुद्दों और विकास की राजनीति करनी है। उन्हें सुरक्षा, विश्वास और शांति का वातावरण मजबूत बनाने व कश्मीर में लोकतंत्र और राष्ट्रवाद को मजबूत बनाने के लिए काम करना होगा। उन्हें ऐसे मुद्दों पर सार्वजनिक रुप से राय देने की जरुरत नहीं है जो अंतरराष्ट्रीय परिपेक्ष्य में कश्मीर मुद्दे को जरा भी प्रभावित करते हों।
कश्मीरियों की भावनाओं के शोषण की राजनीति अब बंद होनी चाहिए :
गृहमंत्री ने अपने कश्मीर दौरे के दौरान जो संकेत दिए, उसका असर कश्मीर की सियासत पर होता नजर आ रहा है। बीते एक सप्ताह के दौरान नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष डा फारुक अब्दुल्ला, उनके पुत्र उमर अब्दुल्ला या फिर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्षा महबूबा मुफ्ती ने शायद ही अपनी बयानबाजी में पाकिस्तान काे कश्मीर मुद्दे पर एक अहम पक्ष की तरह पेश किया हो। पीपुल्स कांफ्रेंस के सज्जाद गनी लोन और उनके सहयोगियों ने सोमवार को अपनी एक बैठक के बाद कहा कि कश्मीरियों की भावनाओं के शोषण की राजनीति अब बंद होनी चाहिए, उन्हें पीड़ित बनाने की राजनीति का समय बीत चुका है। कोई ऐसी राजनीति नहीं होनी चाहिए जो केंद्र के साथ कश्मीरियों की कीमत पर टकराव को जन्म दे। कश्मीर में विकास और लोकतंत्र को मजबूत बनाने के साथ-साथ कश्मीरियों के भविष्य को बेहतर बनाने वाली राजनीति होनी चाहिए।
लोन के बाद पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्षा महबूबा मुफ्ती ने भी पीडीपी की कार्यकारी समित की बैठक में कहीं भी पाकिस्तान का जिक्र नहीं किया और न बैठक के बाद कश्मीर के लिए पाकिस्तान को अहम बताने वाला कोई बयान जारी किया। अलबत्ता, उन्होंने कश्मीर में भाजपा पर सांप्रदायिक सियासत को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए राजनीतिक बंदियों की रिहाई की मांग की।
इसी दौरान केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर प्रदेश में देश के विभिन्न हिस्सों से केंद्रीय अर्धसैनिकबलों की 50 कंपनियां भी कानून व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने के लिए पहुंच गई। इनमें से 30 घाटी में अपना मोर्चा संभाल चुकी हैं जबकि 20 को जम्मू प्रांत में लगाया गया है। इसके साथ ही आतंकवाद संबंधी मामलों की जांच के लिए जम्मू-कश्मीर पुलिस में एनआइए की तर्ज पर एसआइए का गठन हो गया ताकि पुलिस खुद को कानून व्यवस्थ की स्थिति बनाए रखने से लेकर आतंकरोधी अभियानों में पूरी तरह केंद्रित रखे। आतंकवाद संबंधी मामलों की जांच की जिम्मेदारी से वह मुक्त रहेगी। पुलिस और केंद्रीय अर्धसैनिकबलोें व केंद्रीय खुफिया एजेंसियाें के अधिकारियों को भी समझ आ चुका है कि आतंकी घटनाओं के लिए उनकी जिम्मेदारी तय हो चुकी है।