Jammu and Kashmir : आदर्श का मुखौटा लगाए वहीद परा के आतंकियों से भी खतरनाक थे मंसूबे
आज वहीद-उर-रहमान परा पर चढ़ा नायक का मुखौटा उतर चुका है। वह हाथों में बंदूृक लिए घूमने वाले आतंकियों से कहीं ज्यादा खतरनाक खलनायक है जो अपने मकसद को पाने के लिए चुपचाप अजगर की तरह व्यवहार कर रहा था।
जम्मू, नवीन नवाज : वहीद-उर-रहमान परा उन कश्मीरी नौजवानों में एक है, जिसे कुछ समय पहले तक कश्मीरी युवाओं का रोल मॉडल बताया जाता था। लोग कहते थे कि असली कश्मीरी नौजवान तो परा जैसे हैं जो कश्मीर में आतंकी हिंसा के खिलाफ, कश्मीर में लोकतंत्र की बहाली के लिए काम करना चाहते हैं। आज वहीद परा पर चढ़ा नायक का मुखौटा उतर चुका है। वह हाथों में बंदूक लिए घूमने वाले आतंकियों से कहीं ज्यादा खतरनाक खलनायक है जो अपने मकसद को पाने के लिए चुपचाप अजगर की तरह व्यवहार कर रहा था।
दक्षिण कश्मीर में आतंक की क्यारी के नाम से मशहूर पुलवामा के नेयरा गांव में 1988 को पैदा हुए वहीद परा के दादा अब्दुल रहमान परा कांग्रेसी थे। उन्होंने हमेशा नेशनल कांफ्रेंस की अलगाववादी नीतियों का विरोध किया। जमींदार घराने से ताल्लुक रखने वाले परा ने बोस्टन यूनिवॢसटी अमेरिका से खोजी पत्रकारिता का डिप्लोमा किया है। अवंतीपोरा स्थित इस्लामिक यूनिवॢसटी आफ साइंस एंड टेक्नोलाजी से पीस एंड कनफ्लिक्ट स्टडीज में स्नातकोत्तर डिग्रीधारी परा को एसआइटी ग्रेज्युएट इंस्टीट्यूट, वरमोंट यूएसए से छात्रवृत्ति भी मिल चुकी है। स्थानीय अखबारों में ही नहीं, राष्ट्रीय अखबारों और कई विदेशी जर्नल में भी उसके लेख छपते रहे हैं। वर्ष 2008 के बाद वह अचानक ही पुलवामा से लेकर श्रीनगर और श्रीनगर से दिल्ली तक के राजनीतिक गलियारों और तथाकथित कश्मीर विशेषज्ञ बुद्धिजीवी संगठनों व थिंक टैंक्स में लोकप्रिय होने लगा।
आस्ट्रेलिया इंडिया यूथ डायलॉग का सदस्य वहीद परा ने पुलवामा और उसके साथ सटे इलाकों में अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए कई युवाओं को अपने साथ जोड़ा। वर्ष 2008 के हिंसक प्रदर्शनों के बाद केंद्र सरकार ने स्थानीय युवाओं की ऊर्जा को रचनात्मक गतिविधियों मे लगाने के लिए कई योजनाएं शुरू की थीं। इनमें खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन भी था। वहीद परा को इसका पूरा लाभ मिला। उसने अपनी छवि एक प्रो-कश्मीरी एक्टिविस्ट के रूप में बनाई जो भारतीय लोकतंत्र में आस्था रखता है। वर्ष 2010 में हुए हिंसक प्रदर्शनों के बाद राम जेठमलानी ने जब कश्मीर कमेटी को दोबारा सक्रिय किया तो वहीद परा उसमें शामिल हुआ। वह कश्मीर कमेटी का सबसे युवा सदस्य था।
ऐसे बढ़ाता गया अपनी पहुंच: महबूबा के आतंकियों के साथ कथित संबंधों में पुल के रूप में काम करने वाले वहीद परा ने वर्ष 2014 में राजपोरा विधानसभा क्षेत्र से पीडीपी के उम्मीदवार डा. हसीब द्राबु की जीत में अहम भूमिका निभाई। द्राबु बाद में वित्त मंत्री भी बने। वहीद परा ने अनंतनाग में महबूबा की जीत में भी अहम भूमिका निभाई। इसके बाद वह जल्द ही पीडीपी की युवा इकाई का अध्यक्ष बना और फिर मुफ्ती मोहम्मद सईद और महबूबा का करीबी बन गया। उसे पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार ने खेल परिषद का सचिव बनाया और खेलो इंडिया की जम्मू कश्मीर में कमान उसे सौंपी। खेलो इंडिया की आड़ में उसने अलगाववादियों के साथ मिलकर अपने असली खेल को आगे बढ़ाया। उसने आतंकियों, पत्थरबाजों और अलगाववादियों के साथ राजनीतिकों के गठजोड़ को मजबूत बनाते हुए पीडीपी की चुनावी सियासत में उनके इस्तेमाल का पूरा प्रयास किया। उसने पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के लिए भी युवाओं की एक प्रभावी रैली का आयोजन किया था।
लश्कर और हिजबुल का था मददगार: पुलवामा आत्मघाती हमले के बाद उसने कथित तौर पर आतंकी नवीद मुश्ताक, निलंबित डीएसपी देविंदर सिंह और इरफान शफी मीर के साथ एक बार नहीं, बल्कि चार बार बात की। उसने उन्हें पैसा भी दिया। वह लश्कर-ए-तैयबा से लेकर हिजबुल मुजाहिदीन के लिए बतौर ओवरग्राउंड वर्कर काम करता था। उसने हुर्रियत कांफ्रेंस को भी वित्तीय आक्सीजन प्रदान की।
आरोपपत्र के लिए एक माह लगी रही एनआइए: हालांकि, आतंकी संबंधों के आरोप में पकड़े जाने वाला वह पहला राजनीतिक कार्यकर्ता नहीं है, लेकिन किसी मुख्यमंत्री का पहला करीबी है जो इस समय आतंकी संबंधों के कारण जेल में बंद है। उसके खिलाफ एनआइए ने सभी सुबूत जमा कर रखे हैं। उसके खिलाफ आरोपपत्र दायर करने से पहले एनआइए ने करीब एक माह तक मेहनत की। जो बातें उसने अपनी पूछताछ में नहीं बताई थीं, वह सुबुतों के साथ आरोपपत्र में दर्ज हैं।
खेलाे इंडिया की आड़ में खेलने लगा आतंक से गठजोड़ का खेल : उसे पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार में खेल परिषद का सचिव बनाया गया और खेलो इंडिया की जम्मू-कश्मीर की कमान भी उसे सौंपी। खेलाे इंडिया की आड़ में उसने अलगाववादियों के साथ मिलकर अपने असली खेल काे आगे बढ़ाया। उसने आतंकियों, पत्थरबाजों और अलगाववादियों के साथ राजनीतिकों के गठजोड़ को मजबूत बनाते हुए पडीपी की चुनावी सियासत में उनके इस्तेमाल का पूरा प्रयास किया। उसने पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के लिए भी युवाओं की एक प्रभावी रैली का आयाजन किया था।