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जम्मू-कश्मीर में नया भूमि स्वामित्व कानून पर्यटन क्षेत्र को बढ़ावा देने में मील का पत्थर साबित होगा

जम्मू-कश्मीर का जब नाम आता है तो सबसे पहले लोगों के दिलों दिमाग पर माता वैष्णों देवी और कश्मीर की हसीन वादियां जहन में आती हैं। लेकिन इस प्रदेश में ऐसे प्रकृति से भरपूर ऐसे पर्यटन स्थल हैजिनकी खूबसूरती काे निहारने का सैलानियों को मौका तक नही मिला।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Sat, 21 Nov 2020 12:51 PM (IST)Updated: Sat, 21 Nov 2020 12:51 PM (IST)
जम्मू-कश्मीर में नया भूमि स्वामित्व कानून पर्यटन क्षेत्र को बढ़ावा देने में मील का पत्थर साबित होगा
उप राज्यपाल प्रशासन कितनी जल्दी पर्यटन सेक्टर को बढ़ावा देकर इसके लाभ लोगों तक पहुंचाता है।

जम्मू: केंद्र सरकार की ओर से जम्मू कश्मीर के लिए बनाए गए भूमि स्वामित्व कानून, पर्यटन क्षेत्र को बढ़ावा देने में मील का पत्थर साबित होगा।अनुच्छेद 370 समाप्त होने के साथ ही जम्मू-कश्मीर केंद्रीय शासित प्रदेश बन जाने से कई कानून बदल चुके है। अब देश के हर किसी व्यक्ति को यह अधिकार है कि वे जम्मू कश्मीर में मकान, व्यापार और कृषि के लिए जमींन खरीद सकते हैं। इससे जम्मू-कश्मीर में पर्यटन सेक्टर में निवेश करने वालों के लिए भी रास्ता प्रशस्त हो गया है।

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वे अब जम्मू कश्मीर की पर्यटन की श्रमताओं का आंकलन कर जम्मू कश्मीर में पर्यटन की संभावानाओं को तलाश सकते हैं।इससे पर्यटन के निजी सेक्टर में निवेश करने वालों को लिए इससे अच्छा मौका नही हो सकता, कि वे विश्व प्रसिद्ध जम्मू कश्मीर की खूबसूरत वादियों में सैलानियों को आकृर्षित करने के लिए हट्स बनाए। इसमें कोई दो राय नही कि जम्मू कश्मीर की अर्थ व्यवस्था पर्यटन उद्योग पर निर्भर है। अगर इस सेक्टर में प्राइवेट सेक्टर संभावनाओं को तलाशेगा तो यहां प्रकृति ने जो छठा बिखेरी है, उसे देख कर हर व्यक्ति यह कह उठता है कि अगर धरती पर स्वर्ग है,तो वह जम्मू कश्मीर।

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर का जब नाम आता है, तो सबसे पहले लोगों के दिलों दिमाग पर माता वैष्णों देवी और कश्मीर की हसीन वादियां जहन में आती हैं। लेकिन इस प्रदेश में ऐसे प्रकृति से भरपूर ऐसे पर्यटन स्थल है,जिनकी खूबसूरती काे निहारने का सैलानियों को मौका तक नही मिला। जम्मू संभाग में कई ऐसे पर्यटन स्थल है, बर्फ से ढके पहाड़, कल कल बहते झरने, खूबसूरत वादियां जो लोगों की पहुंच से बाहर हैं। यद्यपि प्रदेश का 62 प्रतिश्त इलाका पहाड़ी है, जिस पर प्रकृति मेहरबान है।इसका कारण यहां पहुंचने के लिए अप्रोच रोड नही है।बात अगर पीर पंचाल पर्वतीय श्रृखंलाओं की करे तो इसकी गोद में बसा किश्तवाड़ जिले से करीब 80 किलोमीटर दूर सिंथनटॉप का वह क्षेत्र है, जहां बारहों महीने बर्फ रहती है। इसकी तलहटी में हरेभरे जंगल में देवदार के पेड़ों के झुरमुट के नजारे आपके जिंदगी भर भुलाए नही भूलते। सिंथन टॉप से एक रास्ता दक्षिण कश्मीर को भी जाता है।

इसी तरह जम्मू संभाग के जिला पुंछ के बफलियाज से शुरू हुए पारंम्पिरक मुगल रोड भी प्रकृतिक संपदा से भरपूर है।यहां मुगल बादशाह हर गर्मिओं के मौसम में लाव लश्कर के साथ कश्मीर घाटी पहुंचते थे। मुगल रोड पर पीर की गली, नूरी छंब पर्यटन स्थल ऐसे थे कि मुगल शासक भी इनके कायल थे। नूरी छंब में पहाड़ों से गिरता झरने का नाम तो शाहजहा की बेगम नूरजहां के नाम नूरीछंब के नाम से आज भी जाना जाता है। यह पर्यटन स्थल ऐसे है जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान नही मिल पाई।ऐसे कई पर्यटन स्थल है, जिन्हें पर्यटन के मानचित्र में लाना होगा।ऐसा नही है कि यह पर्यटन स्थल लोगों से छिपे हों।बात इन पर्यटन क्षेत्रों को विकसित करने की है।

अगर सैलानियों को इन पर्यटन क्षेत्रों को विकसित किया जाए तो यहां सैलानियों को लुभाया जा सकता है। सैलानियों को भी अच्छा लगता है कि वे नए नए पर्यटन स्थलों की ओर जाए। इसके लिए नए पर्यटन स्थलों की च्वाइस होगी तो प्रदेश में पर्यटन भी बढ़ेगा। इसके लिए जरूरी है कि बाहरी राज्यों से बिजनेसमैन पर्यटन सेक्टर में निवेश करें।यह कहना कि पर्यटन का विकास पूरी तरह से सरकार करेंगी,तो वे संभव नही होगा। बीते कुछ दशकों की बात करें तो इन पर्यटन स्थलों ने निवेशकों को अपनी ओर आकृर्षित किया है। बीते कुछ वर्षों में पर्यटकों के रूझान में भी बदलाव आया है। उनकी हसरत अब नए नए पर्यटन स्थलों की ओर जाने की होती हैं,जहां भीड़भाड़ कम हो।सड़क मार्ग अच्छा हो। ठहरने और खाने पीने के पर्याप्त बंदोबस्त हों।

कोरोना महामारी के बाद लोग अब ऐसे पर्यटन स्थलों की ओर घूमना चाहते हैं, जहां संक्रमण का डर न हो। ऐसे में पर्यटन सेक्टर में ही ऐसी श्रमता है, जो प्रदेश में गेम चैंजर के रूप में उबर सकती है। इससे प्रदेश की ग्रामीण आर्थिक दशा बदल सकती है। ऐसे में इन पर्यटन क्षेत्रों को विकसित करने की जरूरत है।एडवैंचर स्पोर्टस में ट्रैकिंग,माउंटेनियरिंग को बढ़ावा दिया जा सकता है। अगर बात पर्यटन स्थल किश्तवाड़ जिले के सरथल, पदरी, भद्रवाह के जाइ और सनासर की करें तो यह पर्यटन स्थल हिमाचल और पंजाब की सीमाओं से दूर नही हैं। पहाड़ों की आगोश में यह पर्यटन स्थलों को इस तरह विकसित किया जा सकता है, ताकि सालभर सैलानियों का तांता लगा रहे।

अगर देश के प्रतिष्ठित होटलों की चेन यहां विश्व स्तर की टूरिस्ट सुविधाएं देना शुरू करे तो इस पंजाब और हिमाचल के सैलानियों को सारे वर्ष जोड़ा जा सकता है।गर्मिओं के मौसम में बर्फ जैसे ठंडे पानी का दरिया चिनाब में रॉफ्टिंग के लिए देश विदेश से सैलानियों को आकृर्षित किया जा सकता है।इसमें कोई दो राय नही कि जम्मू कश्मीर में पर्यटन का आर्थिक व्यवस्था को मजबूत बनाने में खासा योगदान है।लेकिन इस सेक्टर को मजबूत बनाने के लिए गैर पर्यटन सेक्टरों जिसमे कृषि,ट्रांसपोर्ट,कला संस्कृति आदि भी टूरिज्म को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी रखते हैं।

अगर केंद्र शासित प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा तो प्रदेश में रोजगार के अवसर पैदा होंगे।टूरिज्म सेक्टर देश भर में 11 प्रतिश्त लोागें को रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाता है। अब देखना है कि उप राज्यपाल प्रशासन कितनी जल्दी पर्यटन सेक्टर को बढ़ावा देकर इसके लाभ लोगों तक पहुंचाता है।

- अजय खजूरिया, लेखक जम्मू के पूर्व टूरिज्म डायरेक्टर


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