लोन बोले राज्य का दर्जा बहाल होने तक नेकां नहीं लड़ेगी चुनाव, कहा- हम डोमिसाइल पर धूकेंगे भी नहीं
जम्मू कश्मीर के लोगों के लिए डोमिसाइल के प्रावधान पर लोन ने कहा कि यह कोई अहमियत नहीं रखता। हम ऐसे प्रावधान की तरफ देखेंगे भी नहीं।
श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। अपनी विवादास्पद बयानबाजी के लिए अकसर सुर्खियों में रहने वाले नेशनल कांफ्रेंस के सांसद माेहम्मद अकबर लोन एक बार फिर विवादों में घिरते नजर आ रहे हैं। इस बार उन्होंने डोमसाईल प्रमाणपत्र को लेकर कहा कि हम तो इस पर धूकेंगे भी नहीं। नेशनल कांफ्रेंस के नेताओं व कार्यकर्त्ताओं से गत बुधवार को बैठक करने के बाद पत्रकारों से बात करते हुए लोन का जब ध्यान केंद्र सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर के लोगों के लिए डोमिसाइल की व्यवस्था किए जाने के मिल रहे संकेतों की तरफ दिलाया गया तो उन्होंने कहा कि यह मंजूर नहीं होगा। उन्होंने कहा कि हम तो इस पर थूकेंगे भी नहीं।
उन्होंने कहा कि हमारा एजेंडा वही है जो स्वर्गीय शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने तय किया है। जब तक जम्मू कश्मीर का खोया दर्जा बहाल नहीं होगा, हम कोई चुनाव नहीं लड़ेंगे। हम जम्मू कश्मीर के हक के लिए अपनी ल़ड़ाई को जारी रखेंगे। जब उनसे पूछा गया कि अगर केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर के लोगों के साथ धोखा किया है तो संसद की सदस्यता से इस्तीफा क्यों नहीं दिया तो कहा कि इस्तीफा देने से कुछ हासिल नहीं होने वाला।
जम्मू कश्मीर में तीसरे सियासी मोर्चे के गठन में शामिल लोगों को दिल्ली का एजेंट बताते हुए मोहम्मद अकबर लोन ने कहा कि लोग इन्हें स्वीकार नहीं करेंगे।
नेकां नेताओं व कार्यकर्ताओं के सम्मेलन के बाद लोन ने कहा कि हमारे लिए कुर्सी नहीं, जम्मू कश्मीर का वजूद अहम है। हमारे लिए लोगों की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अधिकार का संरक्षण अहमियत रखता है। जम्मू कश्मीर में जब तक अनुच्छेद 370 को बहाल कर राज्य का दर्जा नहीं दिया जाता, हम किसी भी तरह के चुनाव में भाग नहीं लेंगे। उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि सर्वोच्च न्यायालय में फैसला जम्मू कश्मीर के पक्ष में होगा।
उपराज्यपाल के साथ गत मंगलवार को आठ पूर्व विधायकों की मुलाकात और तीसरे सियासी मोर्चे की स्थापना की संभावना पर कहा कि इस तरह के कई लोगों को दिल्ली ने वर्ष 1953 से ही जम्मू कश्मीर में अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने, लोगों की आकांक्षाओं को दबाने के लिए इस्तेमाल किया है। एजी से मिलने वाले दल में शामिल कई चेहरे वह हैं, जिन्होंने 1984 में फारूक अब्दुल्ला की सरकार गिराकर एक नई सरकार का गठन किया था।