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किश्तवाड़ में आतंकवाद फैलाने की हो रही साजिश, जानिए क्या है आतंकियों का मंसूबा!

वर्ष 2008 को अमरनाथ भूमि आंदोलन के बाद घाटी के खास नेताओं और व्यापारिक संगठनों का लगातार किश्तवाड़ दौरे ने जेहादियों के लिए बंजर होती जमीन को उपजाऊ बनाने का काम किया।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Tue, 14 May 2019 03:26 PM (IST)Updated: Tue, 14 May 2019 03:26 PM (IST)
किश्तवाड़ में आतंकवाद फैलाने की हो रही साजिश, जानिए क्या है आतंकियों का मंसूबा!
किश्तवाड़ में आतंकवाद फैलाने की हो रही साजिश, जानिए क्या है आतंकियों का मंसूबा!

जम्मू, राज्य ब्यूरो। राज्य पुलिस की मानें तो किश्तवाड़ में मोहम्मद अमीन उर्फ जहांगीर आतंकवाद के लिए जमीन तैयार करने में जुटा है। कश्मीर से भी उसे मदद मिल रही है। साथ सटे अनंतनाग से कई आतंकी संथनटॉप मार्ग से किश्तवाड़ से घुसपैठ कर आ सकते हैं। क्योंकि संथनटॉप अनंतनाग से जुड़ा है। इस मार्ग पर सुरक्षा कम है।

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आंकड़ों के मुताबिक बीते पांच वर्षो में एक दर्जन से ज्यादा लोग किश्तवाड़ में जिहादी गतिविधियों के सिलसिले में पकड़े गए हैं। इसी साल पांच से ज्यादा आतंकी और उनके ओवरग्राउंड हत्थे चढ़े हैं। इनमें मोहम्मद अब्दुल्ला गुज्जर, तौसीफ अहमद, निसार गनई के नाम उल्लेखनीय हैं जो जम्मू संभाग में मोस्ट वांटेड आतंकियों में सबसे ऊपर मोहम्मद अमीन जहांगीर के साथ जुड़े हुए थे। जहांगीर इस क्षेत्र का सबसे पुराना सक्रिय आतंकी है। असम के कमरुदीन के आतंकी बनने की कहानी भी किश्तवाड़ में शुरू हुई थी।

कश्मीरी नेताओं-व्यापारियों के किश्तवाड़ दौरे ने जेहाद को बढ़ावा दिया

एक और तथ्य जिसे सभी नजरअंदाज करते आ रहे हैं, वह वर्ष 2008 को अमरनाथ भूमि आंदोलन के बाद घाटी के खास नेताओं और व्यापारिक संगठनों का लगातार किश्तवाड़ दौरा, इन दौरों ने किश्तवाड़ में जेहादियों के लिए बंजर होती जमीन को उपजाऊ बनाने का प्रयास किया और अब वह फसल खड़ी होती नजर आ रही है। स्थानीय अल्पसंख्यकों में डर पैदा कर उन्हें भागने व दो समुदाय में दरार को गहरा करने की साजिश रची जा रही है। दोनों समुदायों में अविश्वास बढ़ता जा रहा है जो जिहादियों की मदद करता है। दोनों समुदायों के लोग बातचीत में कई बार उत्तेजित नजर आते हैं।

आतंकियों को जिंदा पकड़ने पर जोर

सूत्रों के मुताबिक हो सकता है कि खुफिया एजेंसियों ने चंद्रकांत शर्मा की हत्या में ओसामा बिन जावेद का नाम बताया है। वह दो साल से सक्रिय आंतकी है। हारुन अवास वानी डोडा निवासी है। वह छह माह पहले एमबीए करने के बाद आंतकवादी बना। तीसरा, नवीद मुस्तफा शाह यह पहले आतंकवादी था और बाद में आत्मसमर्पण करने के बाद पुलिस में भर्ती हो गया। बाद में पुलिस से भगोड़ा होकर आतंकवादी बन गया। चौथे आतंकी का नाम जाहिद हुसैन है, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि यह उसी दिन आतंकी बना था, जिस दिन चंद्रकांत की हत्या हुई थी। इसी की कार भी हत्या के बाद इस्तेमाल की गई थी, जो पुलिस के कब्जे में है। यह दक्षिणी इलाके का रहने वाला है। पुलिस का जोर आतंकियों को जिंदा पकडऩे पर है।

यूं बदतर होते गए हालात

1. किश्तवाड़ के आतंकवादमुक्त होने के बाद सुरक्षा एजेंसियां से लेकर सरकारें लापरवाह हो गईं।

2. संवेदनशील क्षेत्रों में सुरक्षाबलों का नेटवर्क कमजोर हो गईं। एजेंसियां भी सुस्त पड़ गईं।

3. पुराने आतंकी जो बच गए थे उन्होंने मौका पाकर अपना नेटवर्क मजबूत करना शुरू कर दिया।

4. लोगों के बार-बार चेताने के बाद भी प्रशासन से लेकर सुरक्षा एजेंसियां अनसुना करती रहीं।

5. आतंकवादियों का नेटवर्क बढ़ाने में संथनटॉप मार्ग अहम रहा। क्योंकि संथनटॉप अनंतनाग जिले से जुड़ा है। इस मार्ग पर सुरक्षा भी कम है।

अमन के लिए यह जरूरी

1. आतंकवाद के सफाये के लिए सेना और एसओजी को पूरे अधिकार दिए जाएं। यहां दोनों की तैनाती हो।

2. सुरक्षा एजेंसियां कश्मीर की तरह यहां पर अलर्ट हों।

3. यहां ऑपरेशन ऑलआउट की तरह बड़ा अभियान चलाया जाए।

4. आतंकियों का साथ दे रहे अलगाववादियों पर लगाम कसें।

5. प्रशासन समय-समय पर सुरक्षा

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