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Kashmiri Pandit: मिट्टी बुला रही, अतीत की यादें रोक रही कदम

किसी समय लाखों के मकानों में रहने वाले और कीमती कालिनों पर चलने वाले कश्मीरी पंडित विगत 30 वर्ष से देश में विस्थापितों से भी बदतर स्थिति में रह रहे हैं।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Mon, 20 Jan 2020 04:53 PM (IST)Updated: Mon, 20 Jan 2020 04:53 PM (IST)
Kashmiri Pandit: मिट्टी बुला रही, अतीत की यादें रोक रही कदम
Kashmiri Pandit: मिट्टी बुला रही, अतीत की यादें रोक रही कदम

जम्मू, राहुल शर्मा। कश्मीर के जिला कुपवाड़ा की रहने वाली किरण ने बीते समय को याद करते हुये बताया कि वहां उनका दो मंजिला घर हुआ करता था जो जला दिया गया। उन्हें आज भी याद है कि हिंसा के प्रारंभिक दौर में 300 से अधिक हिन्दू महिलाओं और पुरुषों की हत्या हुई। एक रात क्षेत्र में यह घोषणा हुई कि यदि पंडितों को कश्मीर में रहना है तो इस्लाम कबूल करें। नहीं तो फिर घाटी छोड़कर चले जाएं। परिवार की जान बचाने के लिये उन्होंने कश्मीर छोड़ने का फैसला किया। परंतु अपने जमीन से कटने की पीड़ा और मौजूदा बदहाल जिंदगी, दुख कम होने का नाम ही नहीं ले रहे हैं।

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वहीं ब्लाक 109 में रहने वाले कांशी नाथ भट्ट जिला पुलवामा के तराल इलाके के मूल निवासी हैं। उन्होंने बताया कि घाटी में कश्मीरी पंडितों के बुरे दिनों की शुरुआत 14 सितंबर 1989 से हुई थी। कश्मीर में आतंकवाद के चलते लगभग 7 लाख से अधिक कश्मीरी पंडित विस्थापित हो गए और वे जम्मू सहित देश के अन्य हिस्सों में जाकर रहने लगे।  जगटी टाउनशिप में लेन नंबर आठ में रहने वाली शादी लाल पंडिता ने बताया कि रातों रात बेघर हुये सभी विस्थापित जम्मू, ऊधमपुर के विस्थापित शिविरों में रह रहे हैं। कई विस्थापित दिल्ली व देश के अन्य शहरों में शरण लिए हुए हैं।

विस्थापित शिविरों में रह रहे कश्मीरी पंडितों को जहां एक तरफ कश्मीर वादी में छोड़ आए घरों की दीवारें आज भी वापस बुला रही हैं तो दूसरी तरफ दहशत के मंजर उन्हें यहीं पर शरणार्थी जीवन जीने पर मजबूर कर रहे हैं। इन विस्थापितों के पास अतीत की स्मृतियां ही नहीं, बल्कि बदहाली भरा वर्तमान का दंश भी सता रहा है।  करोड़ों के मालिक कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी जमीन-जायदाद छोड़कर बदहाली में इन विस्थापित शिविरों में रहने को मजबूर हैं। अपने ही देश में विस्थापितों की जिंदगी जी रहे कश्मीरी पंडितों की सहनशीलता को दर्शाने के लिए इन पंडितों की मौज़ूदा स्थिति के बारे में भी जानना जरूरी है।

किसी समय लाखों के मकानों में रहने वाले और कीमती कालिनों पर चलने वाले कश्मीरी पंडित विगत 30 वर्ष से देश में विस्थापितों से भी बदतर स्थिति में रह रहे हैं। परंतु उनकी कहीं कोई चर्चा नहीं होती। केन्द्र व राज्य सरकारों की भेदभावपूर्ण नीतियों के कारण 19 जनवरी 1990 को घाटी से निकाले गये कश्मीरी पंडित आज भी अपने घरों से दूर विस्थापित जीवन जीने को मजबूर हैं। जगटी टाउनशिप में कश्मीरी पंडित परिवारों के 4224 परिवार रह रहे हैं।

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद पंडितों में वापसी की आस जगी है। अपनी जन्मभूमि पर फिर से कदम रखने की आस लगाए इन पंडितों ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि वे पूरे सम्मान के साथ अपनी घर वापसी चाहते हैं। उनकी सुरक्षा और अधिकारों का फिर से हनन न हो इसका भी ध्यान रखा जाए।


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