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अनंतनाग के सादथ मोहि-उद-दीन पॉडकास्ट के जरिए देश-विदेश में कर रहे कश्मीरी भाषा-सूफीवाद का प्रसार

सादथ मोहि-उद-दीन भट यू-ट्यूबर के तौर पर पहले से ही काफी लोकप्रिय हैं। वह लघु वीडियो कविता स्टैंडअप कॉमेडी और पॉडकास्ट के माध्यम से लोगों का मनोरंजन करने और सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दों पर संदेश प्रसारित करने का अकसर प्रयास करते रहते हैं।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Wed, 04 Nov 2020 09:08 AM (IST)Updated: Wed, 04 Nov 2020 11:50 AM (IST)
अनंतनाग के सादथ मोहि-उद-दीन पॉडकास्ट के जरिए देश-विदेश में कर रहे कश्मीरी भाषा-सूफीवाद का प्रसार
सादत ने 2015 में यूट्यूब पर अभिनय, नृत्य और कविता के लघु वीडियो बनाकर शुरूआत की।

श्रीनगर, जेएनएन। दक्षिण कश्मीर के जिला अनंतनाग के छोटे से गांव हुटमुराह के रहने वाले सादथ मोहि-उद-दीन भट को आज पूरी दुनिया जानती है। सादथ ने हाल ही में एक कश्मीरी पॉडकास्ट सीरीज "आओ उन्हें याद करें" शुरू की है, जिसे जम्मू-कश्मीर में ही नहीं बल्कि देश-विदेश में पसंद किया जा रहा है। मेडिकल के छात्र सादथ का कहना है कि पॉडकास्ट टेलीकास्ट करने के पीछे उनका मकसद युवाओं को कश्मीरी भाषा, संस्कृति और यहां के सूफीवाद से जोड़ना है। वह प्राचीन सूफी संतों के सूफ़ी कलामों पर एक पॉडकास्ट चलाते हैं। सादथ का कहना है कि "मैं चाहता हूं कि हर कोई कश्मीरी भाषा और कश्मीरी सूफी कविता को सुने। कुछ श्रोता अमेरिका, जर्मनी और स्पेन में भी इसे सुनते हैं।"

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सादथ मोहि-उद-दीन भट यू-ट्यूबर के तौर पर पहले से ही काफी लोकप्रिय हैं। वह लघु वीडियो, कविता, स्टैंडअप कॉमेडी और पॉडकास्ट के माध्यम से लोगों का मनोरंजन करने और सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दों पर संदेश प्रसारित करने का अकसर प्रयास करते रहते हैं। लोग उन्हें काफी पसंद भी करते हैं। सादथ ने बताया कि उन्होंने 2015 में पहले तो यूट्यूब पर अपना चैनल बनाकर उस पर अभिनय, नृत्य और कविता के लघु वीडियो बनाकर शुरूआत की। उन्हें काफी पसंद किया जाने लगा इस वजह से उनके कई फालोअर हो गए। 

उनके ये वीडियो जम्मू-कश्मीर में ही नहीं विदेशों में भी काफी पसंद किए जाते हैं। यही देखकर उन्हें विचार आया कि क्यों न इसी के माध्यम से अपनी कश्मीरी भाषा, यहां का सूफीवाद लोगों तक पहुंचाया जाए। लोगा कश्मीरी भाषा, यहां की संस्कृति, यहां के सूफी-संतों, यहां के लोक गीतों काे जानें और उनका आनंद भी लें। वह इस काम में जुट गए और उसकी नतीजा है कि हाल ही में उन्होंने "आओ उन्हें याद करें" पॉडकास्ट सीरिज की शुरूआत की। जम्मू-कश्मीर, देश के दूसरे राज्यों में रहने वाले लोग ही नहीं अमेरिका, जर्मनी और स्पेन में भी कई श्रोता कश्मीरी भाषा, कश्मीरी सूफी कविता को सुन रहे हैं।"

सादथ ने कहा कि आज कश्मीरी युवा अपनी मातृ भाषा का बहुत कम प्रयोग कर रहे हैं। वह कश्मीरी में बात करने से भी हिचकिचाता है।" अगर हम ही अपनी मातृ भाषा का सम्मान नहीं करेंगे तो कोई दूसरा कैसे करेगा। यदि इसे अभी से रोका नहीं गया तो हर कोई अपनी मातृ भाषा से दूर हो जाएगा। यही वजह है कि उन्होंने कश्मीरी युवाओं को अपनी भाषा से जोड़ने के लिए एंड्रायड एप लांच किया। यह कश्मीर की संस्कृति और भाषा के प्रति छोटा सा योगदान है। उन्होंने बताया कि अमेजॉन और गूगल पर उन्होंने अपने पॉडकास्ट "आओ उन्हे याद करें" की एक ईबुक भी प्रकाशित की है।

जल्द ही वह सामाजिक जागरूकता पर वीडियो (वाइन्स) भी बना रहा है, जिसमें COVID-19 की रोकथाम, ब्लाइंड डोनेशन, कश्मीर में ऑनलाइन क्लासेस, युवाओं और बाइक आदि विषय शामिल हैं।  


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