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मौनी अमावस्या पहली फरवरी मंगलवार को, वैज्ञानिक महत्व भी है मौन रहने का

माघ मास की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहते हैं। इस दिन मौन रहना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि मौन रहने से आत्मबल मिलता है। यह दिन सृष्टि संचालक मनु का जन्मदिवस भी है। मुनि शब्द से ही मौनी की उत्पत्ति हुई है

By Rahul SharmaEdited By: Published: Fri, 28 Jan 2022 03:15 PM (IST)Updated: Fri, 28 Jan 2022 03:15 PM (IST)
मौनी अमावस्या पहली फरवरी मंगलवार को, वैज्ञानिक महत्व भी है मौन रहने का
आध्यात्मिक उन्नति के लिए वाणी का शुद्ध होना परम आवश्यक है। मौन से वाणी नियंत्रित एवं शुद्ध होती है।

बिश्नाह, संवाद सहयोगी : प्राचीन शिव मंदिर के महामंडलेश्वर अनूप गिरि ने बताया कि माघ मास की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहते हैं। इस दिन मौन रहना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि मौन रहने से आत्मबल मिलता है। यह दिन सृष्टि संचालक मनु का जन्मदिवस भी है। मुनि शब्द से ही मौनी की उत्पत्ति हुई है इसलिए इस व्रत को मौन धारण करके समापन करने वाले को मुनि पद की प्राप्ति होती है। इस दिन गंगा स्नान तथा दान दक्षिणा का विशेष महत्व होता है। इस वर्ष मौनी अमावस्या पहली फरवरी मंगलवार को है। इस दिन महोदय योग भी बन रहा है जो कि सुबह 11.16 बजे तक रहेगा। मौनी अमावस्या के दिन तीर्थ स्नान, वस्त्र, अन्न, फल, आंवला, तिल से बनी मिठाइयां, पितृ-तर्पण, ब्राह्मण भोजन, दान दक्षिणा आदि का विशेष एवं अक्षय फल होगा। मंगलवार अमावस्या भी होने से इस दिन तीर्थस्नान, जप, दान आदि करने से एक हजार गोदान का फल मिलता है। मंगलवारी अमावस्या राजनीति से जुड़े व्यक्तियों के लिए अशुभ मानी जाती है। कोई अप्रिय समाचार मिल सकता है।

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मौन रहने का महत्व:- आध्यात्मिक उन्नति के लिए वाणी का शुद्ध होना परम आवश्यक है। मौन से वाणी नियंत्रित एवं शुद्ध होती है। इसलिए हमारे शास्त्रों में मौन का विधान बनाया गया है। आवश्यकता से अधिक बोलने का कुप्रभाव मस्तिष्क व उसके अंगों पर पड़ता है। यही कारण है कि लंबा भाषण देने वाले भाषण के बीच में जल पीते रहते हैं। धार्मिक कार्य कराने वाले, बोलकर मंत्र, जप आदि करने वाले घी का सेवन करते हैं ताकि उनका स्वर न फटे या गला न रुंधे आदि। ऋषि मुनि एवं चिंतक मौन रहकर ही मनन चिंतन करते हैं। इससे उनकी मानसिक ऊर्जा बढ़ती है। मौन रहकर कार्य करने से ज्ञानेंद्रियां व कर्मेंद्रियां एकाग्र होती हैं और कार्य सुचारु रूप से होता है। विभिन्न धार्मिक कार्यों में भी मौन रहकर कार्य करने का विधान है।

विज्ञान में मौन का महत्व:- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से एक व्यक्ति की शारीरिक रूप से आठ घंटे तक श्रम करने में जितनी ऊर्जा व्यय होती है उतनी ही एक घंटे तक बोलने में ऊर्जा क्षय होती है। जबकि दिमागी कार्य करने वाले की दो घंटे में उतनी ऊर्जा क्षय होती है। इसका मुख्य कारण यह है कि जब हम बोलते हैं तो मुखगुहा में वायु के माध्यम से कंपन होता है। यह कंपन मुखगुहा से संबंधित धमनियों, नाड़ियों, शिराओं, मांसपेशियों को भी प्रकंपित करता है। फलस्वरूप मस्तिष्क में पीड़ा आदि विकार उत्पन्न होते हैं। गला सूखता है जिससे गले से संबंधित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। विज्ञान के अनुसार कम बोलना या मौन रहना शरीर के लिए फायदेमंद है। ज्यादा बोलने वालों को बीपी और हृदय से संबंधित बीमारियां भी होती हैं।

मौन का धार्मिक महत्व:- मौन रहने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। ऐसा साधक शिवलोक को प्राप्त होता है। मौन रहकर जो व्यक्ति मंत्रजप, ईश्वर स्मरण आदि करता है उसका फल असंख्य गुणा अधिक होता है। शास्त्रों में भी मानसिक पूजा का महत्व अधिक बताया गया है। शास्त्रकारों ने मौन की गणना मन के पांच तपों में की है। मन के यह पांच तप हैं मन की प्रसन्नता, सौम्य स्वभाव, मौन, मनोनिग्रह और शुद्ध विचार ये मन के तप हैं। इसमें मौन का स्थान मध्य में है।

विशेष:- मौन की महिमा अपार है। मौन से क्रोध का दमन, वाणी का नियंत्रण, शरीरबल, संकल्पबल, आत्मबल में वृद्धि, मन को शांति तथा मस्तिष्क को विश्राम मिलता है इसलिए मौन को व्रत की संज्ञा दी गयी है। हम सबकी प्राणशक्ति सीमित है। इसका पूर्णतम लाभ वही पा सकता है जो संयम से इसका उपयोग करता है। जो वाणी का संयम नहीं रखता, उसके अनावश्यक शब्द प्राणशक्ति को सोख डालते हैं। इसलिए मौन के उपासक बनें, मौन धारण करके अपने चित्त को शुद्ध करने का प्रयास करें।


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