बाहरी बनावट में तो वह लड़की थी लेकिन आंतरिक बनावट में वह लड़का था- फिर शुरू हुई नई कहानी...
कुदरत के कारण मासूम बच्चे का जीवन अधर में लटक गया था। बाहरी बनावट में लड़की था लेकिन आंतरिक बनावट में वह लड़का था।जन्मजात सेक्सुअल डिसआर्डर से बच्चों को मिल रही निजात।
जम्मू, रोहित जंडियाल। कुदरत ने मासूम से ऐसा खेल खेला कि बच्चे का जीवन अधर में लटक गया था। बाहरी बनावट में वह लड़की था लेकिन आंतरिक बनावट में वह लड़का था। मां-बाप सामाजिक दबाव के कारण दुनिया से छिपाते रहे। रियासत के पुंछ जिले का यह बच्चा चार साल तक लड़की बनकर रहा। स्कूल में उसका नाम भी लड़की ही था। चिकित्सकों ने जांच की और इलाज व सर्जरी के बाद वह लड़का बन गया। अब वह सामान्य जीवन जी रहा है, मां-बाप भी चिंता से मुक्त हैं हैं।
आनुवांशिक व अन्य कारणों से जनन अंगों की यह गड़बड़ी (सेक्सुअल डिस्आर्डर) सदियों से ऐसे हजारों बच्चों के जीवन को दुविधा में धकेल देती है। पर अब ऐसे बच्चे इलाज के बाद न केवल प्रकृति के इस श्राप से मुक्त हो सामान्य जीवन जी रहे हैं बल्कि अभिभावक भी तनाव मुक्त हो रहे हैं।
हालांकि राज्य सरकार के पास ऐसा कोई आंकड़ा नहीं कि हर साल सेक्सुअल डिसआर्डर के कारण कितने बच्चे पैदा होते हैं। अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों पर गौर करें तो हर डेढ़ से दो हजार बच्चों में एक बच्चा ऐसा पैदा होता है। विशेषज्ञों के अनुसार जम्मू संभाग के पुंछ और राजौरी जिलों में ऐसे सबसे अधिक मामले रहे हैं। इनके कुछ आनुवांशिक व परिस्थिति जनक कारण हो सकते हैं। जम्मू के अस्पताल में दो दिन पहले ही पुंछ जिले के दो ऐसे बच्चों की सर्जरी हुई है।
आनुवांशिक गड़बड़ी है प्रमुख कारण
पेडियाट्रिक सर्जन डा. लक्की गुप्ता के अनुसार सेक्स डिसआर्डर का मुख्य कारण आनुवांशिक गड़बड़ी है। इसके अलावा गुणसूत्रों व हार्मोन में अनियमितता भी शारीरिक बनावट में गड़बड़ी पैदा करती है। कुछ अन्य कारणों पर भी शोध चल रहा है। कीटनाशकों के अति इस्तेमाल वाले क्षेत्रों में भी बच्चों में इस तरह की गड़बडिय़ां देखी गई हैं। हालांकि कीटनाशकों के दुष्प्रभाव की अभी पुष्टि नहीं हो पाई है। ऐसे बच्चों में लिंगभेद संभव नहीं हो पाता। ऐसे बच्चों को थर्ड जेंडर नहीं कहा जा सकता और इलाज के बाद उनकी जिंदगी बदल रही है।
जांच के बाद आगे बढ़ता है इलाज
ऐसे बच्चों के टेस्ट से हार्मोन की स्थिति का पता किया जाता है।इसके अलावा अल्ट्रासाउंड व अन्य टेस्ट कर शरीर की आंतरिक संरचना की जांच की जाती है।
डा. लक्की गुप्ता के अनुसार एम्स में कार्यकाल के दौरान भी जम्मू कश्मीर से काफी संख्या में ऐसे बच्चे इलाज करवाने के लिए आते थे। अभी भी अभिभावकों की जागरूकता के अभाव में बहुत से बच्चे सामान्य जीवन नहीं जी पा रहे हैं। या फिर उन्हें थर्ड जेंडर मान लिया जाता है।
लड़के के शरीर में थी बच्चादानी
राजौरी जिले के अठारह वर्षीय एक युवक को स्वास्थ्य संबंधी समस्या आ रही थी। जब वह संबंधित डाक्टर के पास पहुंचा और उन्होंने उसकी जांच की तो पाया कि उसके शरीर में बच्चादानी भी है। सर्जरी कर बच्चादानी को निकाल दिया। अब उस लड़के को दाढ़ी-मूंछ भी आ गई है।
इसी तरह कठुआ की एक किशोरी के जनन अंग सही से विकसित नहीं हो पाए थे। बाद में सर्जरी के बाद उसकी शारीरिक संरचना को सही रूप दिया गया।
अभी भी सामाजिक कारणों से सामने नहीं आते अभिभावक
सामाजिक बदनामी के भय से अभिभावक इलाज के लिए नहीं आते हैं। जम्मू में पिछले साल में आठ ऐसे बच्चों का ही इलाज हो पाया है। चिकित्सकों के अनुसार परिवार जागरूक हों तो उन्हें ऐसी समस्या से निजात मिल जाए।