Jammu Kashmir : पहाड़ों पर भारी बर्फबारी से निचले इलाकों में आए तेंदुए, पांच माह में दो लोगों की तेंदुए के हमले में गई जान
कठुआ और बिलावर वन डिवीजन 1111 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इसमें से 40 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र को ही वन्य जीवों के लिए चिह्नित किया है।
कठुआ, राकेश शर्मा । जिले के पहाड़ी क्षेत्र में पिछले पांच साल में तेंदुओं के हमले काफी बढ़ गए हैं। आमतौर पर वे पशुपालकों के मवेशियों को अपना शिकार बनाते हैं, लेकिन कभी-कभी ग्रामीणों पर भी हमला कर देते हैं। पिछले पांच माह में रामकोट व बिलावर क्षेत्र में तेंदुए ने दो लोगों पर हमला कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया। चार दिन पहले वन्य जीव विभाग की टीम ने रामकोट क्षेत्र से एक तेंदुए को पकड़ा है, लेकिन इसके दो दिन बाद ही फिर उस इलाके में तेंदुए की दस्तक देखी गई। इससे लोग दहशत में हैं। विभाग को भी समझ में नहीं आ रहा है कि रिहायशी क्षेत्र में इतनी संख्या में तेंदुए कैसे आ रहे हैं। हालांकि इसकी बड़ी वजह उच्च पर्वतीय इलाकों में भारी बर्फबारी को माना जाता है।
रामकोट के अलावा हाईवे से सटे कंडी क्षेत्र के जंगलोट पंचायत में भी पांच दिन पहले स्थानीय किसान देवराज ने अपने इलाके में तेंदुआ देखे जाने के बारे में वन्य जीव विभाग को दी। देवराज ने बताया था कि झाडिय़ोंं से गुर्राने की अवाज से वे काफी डर गए थे, जिसके बाद से वे उस क्षेत्र में नहीं जा रहे हैं। पांच साल पहले हाईवे के निचले झांडी गांव में भी तेंदुए ने दस्तक दी थी। ग्रामीणों की मानें तो वन विभाग को तेंदुओं के प्राकृतिक आवास को बेहतर बनाने का प्रयास करना चाहिए। जब तक उन्हें जंगलों में पर्याप्त आहार नहीं मिलेंगे, वे रिहायशी इलाकों की तरफ आते रहेंगे।
जिले के जंगलों में करीब 50 तेंदुए सक्रिय
कठुआ और बिलावर वन डिवीजन 1111 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इसमें से 40 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र को ही वन्य जीवों के लिए चिह्नित किया है। उसमें से जसरोटा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी सिर्फ करीब 10.50 वर्ग किलोमीटर में है, जबकि थैं वन्य जीव क्षेत्र 28.50 वर्ग किलोमीटर में है। वन्य जीव विभाग के अधिकारियों के मुताबिक जब उच्च पर्वतीय इलाकों में भारी बर्फबारी होती है तो करीब 50 तेंदुए निचले इलाकों में सक्रिय हो जाते हैं। ऊंचे पहाड़ों पर भारी बर्फबारी होने पर गुज्जर बक्करवाल अपनी भेड़-बकरियों और मवेशियों को लेकर हर साल निचले इलाकों में आ जाते हैं। ऐसा भी हो सकता है कि उनके मवेशियों का पीछा करते तेंदुए भी नीचे आ जाते हों। इस समय रामकोट, मांडली और गुज्जरू नगरोटा में तेंदुए देखे जाने की सूचनाएं मिल रही हैं। तेंदुओं के जंगलोट, खरोट, सौला, बसोहली के सांधर आदि इलाकों में भी देखे जाने की सूचना है।
आदमी से डरता है तेंदुआ, डर कर ही करता है हमला
वन्य जीव अधिकारियों की मानें तो जानवरों पर हमला करने वाला तेंदुआ आमतौर पर इंसान पर हमला नहीं करता है। वह आदमी से डरता है। यह उसी समय किसी इंसान पर हमला करता है जब उसका अचानक किसी मनुष्य से आमना-सामना हो जाता है। मनुष्य से खुद को असुरक्षित महसूस कर ही वह उस पर हमला करता है। वैसे तो तेंदुआ शिकार की तलाश में 24 घंटे में 40 किलोमीटर तक जाता है, लेकिन जब उसे अपना शिकार मिल जाता है तो वह आमतौर पर एक सप्ताह तक शांत रहता है। साल भर में कठुआ जिले के अलग-अलग स्थानों पर सक्रिय तेंदुए करीब 100 मवेशियों को अपना शिकार बना लेते हैं। इनमें से ज्यादातर घरेलू मवेशी होते हैं।
जिस भी क्षेत्र में तेंदुआ दिखाई देने या उसके हमले की सूचना मिलती है, वहां पर पहुंचकर वन्य जीव विभाग की टीम पिंजरा लगाती है। तेंदुए के पकड़े जाने पर उसे वाइल्ड लाइफ सेंचुरी में ले जाकर रखा जाता है। सरकार का आदेश है कि वन्य जीवों के लुप्त होने के संकट को देखते हुए उनका संरक्षण किया जाए। इसका विभाग प्रयास करता है। लोगों की सुरक्षा को देखते हुए ही तेंदुओं को पकडऩे के लिए अभियान चलाया जाता है।
-बिशंभर सिंह, रेंज अधिकारी, वन्य जीव विभाग