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Jammu: जम्मू राजकीय मेडिकल कालेज अस्पताल में नहीं हो रही लेप्रोस्कोपिक सर्जरी, नहीं है साजो सामान

सूत्रों का कहना है कि अगर मरीज ज्यादा देर तक अस्पताल में भर्ती रहेगा तो संक्रमण होने की आशंका ज्यादा रहती है। इसलिए तीमारदार बड़ी सर्जरी करवाने से बचते हैं। एपेंडेक्स के दर्द से कराह रहे इमरजेंसी में आने वाले मरीजों काे मजबूरी में बड़ी सर्जरी करनी पड़ रही है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Thu, 19 Nov 2020 02:59 PM (IST)Updated: Thu, 19 Nov 2020 03:15 PM (IST)
Jammu: जम्मू राजकीय मेडिकल कालेज अस्पताल में नहीं हो रही लेप्रोस्कोपिक सर्जरी, नहीं है साजो सामान
लेप्रोस्कोपिक सर्जरी के लिए केवल निजी अस्पताल ही फिलहाल उपलब्ध है।

जम्मू, अवधेश चौहान: जम्मू राजकीय मेडिकल कालेज अस्पताल में पहले ऑक्सीजन और वेंटीलेटरों की कमी और अब लेप्रोस्कोपिक सर्जरी के लिए साजो सामान न होने से मरीजों के साथ-साथ तीमारदारों को भी दरबदर भटकना पड़ रहा है। वैसे तो जम्मू राजकीय मेडिकल कालेज अस्पताल प्रबंधन ने कोराेना काल के करीब साढ़े सात माह बाद संभाग के सबसे बड़े अस्पताल में मेजर सर्जरी करने का फैसला लिया था। इससे उन तीमारदारों ने राहत की सांस ली थी, जो प्राइवेट अस्पतालों में लाखों रुपये ऑप्ररेशन में नही खर्च सकते थे।

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जम्मू राजकीय मेडिकल कालेज के अधिकारिक सूत्राें के मुताबिक अस्पताल में लेप्रोस्कोपिक सर्जरी करने में इस्तेमाल होने वाले उपकरण नहीं हैं। जिस कारण अस्पताल में मरीजों को लेकर पहुंच रहे उनके तीमारदारों को कुछ और समय इंतजार करने की सलाह दी जा रही है। औपचारिक तौर पर चीरफाड़ वाले हरनिया, गाल बलैडर,एपेंडेक्स पत्थरी, हरनिया जैसे आप्रेशन तो हो रहे हैं, लेकिन ऐसे मरीजों काें ऑप्ररेशन के बाद अस्पतालों में 12 से 18 दिनों तक भर्ती रहना पड़ता है। जिस कारण तीमारदार भी कोरोना काल में मरीजों को अस्पताल में ज्यादा देर भर्ती नही रहने नहीं देना चाहते।

आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि अगर मरीज ज्यादा देर तक अस्पताल में भर्ती रहेगा तो संक्रमण होने की आशंका ज्यादा रहती है। इसलिए तीमारदार बड़ी सर्जरी करवाने से बचते हैं। एपेंडेक्स के दर्द से कराह रहे इमरजेंसी में आने वाले मरीजों काे मजबूरी में बड़ी सर्जरी करनी पड़ रही है। यहां तक प्लैन लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में इस्तेमाल होने वाले साजो सामान अस्पताल ने अभी परचेज नहीं किए हैं। जिस कारण ऐसे मरीजों की लंबी फहरिस्त है जो लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में यकीन रखते है।

लेप्रोस्कोपिक सर्जरीज दूरबीन से की जाती है। मरीज को ज्यादा दिनों तक अस्पताल में नही रहना पड़ता। दो दिनों बाद अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है। लेप्रोस्कोपिक सर्जरी के लिए केवल निजी अस्पताल ही फिलहाल उपलब्ध है। अस्पताल प्रबंधन की कमी की वजह से गरीब मरीज इलाज के लिए दरबदर हो रहे हैं।

तीमारदार अमरीक सिंह का कहना है कि उनकी पत्नी को गाल ब्लैडर की बीते एक वर्ष से शिकायत है। लेकिन अस्पताल में लेप्रोस्कोपिक सर्जरी का साजो सामान नहीं है। ऐसे में उन्हें पत्नी के ऑप्रेशन के लिए कुछ और दिन इंतजार करना पड़ेगा। पहले ही परहेज करवाने से पत्नी की सेहत कमजोर है। ऐसे में उनके पास सिवाए लेप्रोस्कोपिक सर्जरी के कोई दूसरा उपाय नहीं है। लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में खून रिसाव कम होता है। करीब एक इंच का चीरा देने के बाद दूरबीन अंदर डाल कर प्रभावित जगह को काट दिया जाता है। इसमें कई बार मरीज को पूरा बेहोश भी नहीं करना पड़ता। केवल उतनी जगह को ही बेहोश किया जाता है जहां हल्का सा चीरा देना पड़ता है।

उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने बीते माह जम्मू राजकीय मेडिकल कालेज अस्पताल के दौरे के दौरान यह दावा किया था कि अस्पताल के लिए फंड्स की कोई कमी नहीं है। इसका मतलब पर्याप्त फंड्स होने के बावजूद लेप्रोस्कोपिक सर्जरीज नहीं हो पाना अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही को दर्शाता है। दो माह पहले जीएमसी अस्पताल में ऑक्सीजन और वेंटीलेटरो की कमी के कारण मरीजों को काफी दिक्कते पेश आई थी। अस्पताल में अभी ऑक्सीजन की कमी बाजार से सिलेंडर खरीद कर पूरी की जा रही है। जीएमसी अस्पताल परिसर में ऑक्सीजन स्टोरेज टैंक का निर्माण किया जा रहा है। तब तक ऑक्सीजन के लिए अस्पताल बाजार पर ही निर्भर है।


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