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लद्दाख : रैंचों के स्कूल द्रुक पद्मा कारपो को सीबीएसई की ‘हां’ का इंतजार

स्कूल की प्रिंसिपल मिनगुर अंगमो का कहना है कि हम स्कूल को सीबीएसई से मान्यता दिलाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। हमारे पास बेहतर शिक्षा का ढांचा बेहतर परिणाम रिकॉर्ड र्टींचग लर्निंग का सिस्टम उपलब्ध है। कई वर्षों के बाद हमें जम्मू कश्मीर शिक्षा बोर्ड से एनओसी मिली है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Mon, 24 Jan 2022 08:49 AM (IST)Updated: Mon, 24 Jan 2022 08:49 AM (IST)
लद्दाख : रैंचों के स्कूल द्रुक पद्मा कारपो को सीबीएसई की ‘हां’ का इंतजार
अभी लद्दाख के स्कूलों को मान्यता जम्मू कश्मीर शिक्षा बोर्ड से प्राप्त है।

जम्मू, राज्य ब्यूरो : फिल्म थ्री इडियट्स में दिखाए गए रैंचो के स्कूल द्रुक पद्मा कारपो को स्थापित हुए दो दशक से अधिक हो गए हैं। लद्दाख में स्थित यह स्कूल केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा (सीबीएसई) से मान्यता के इंतजार मेंं है।

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फिलहाल, अभी स्कूल जम्मू-कश्मीर शिक्षा बोर्ड से मान्यता प्राप्त है। सीबीएसई से मान्यता हासिल करने के लिए संबंधित बोर्ड से एनओसी हासिल करनी होती है जो हाल ही में स्कूल को मिल गई है। उम्मीद है कि सीबीएसई प्रशासन जल्द मान्यता देगा। इस स्कूल में साल 2009 में आमिर खान की फिल्म थ्री इडियट्स की र्शूंटग हुई थी। उसके बाद स्कूल रैंचों के नाम से मशहूर हो गया।

स्कूल की प्रिंसिपल मिनगुर अंगमो का कहना है कि हम स्कूल को सीबीएसई से मान्यता दिलाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। हमारे पास बेहतर शिक्षा का ढांचा, बेहतर परिणाम रिकॉर्ड, र्टींचग लर्निंग का सिस्टम उपलब्ध है। कई वर्षों के बाद हमें जम्मू कश्मीर शिक्षा बोर्ड से एनओसी मिली है।

हमें उम्मीद है कि इस साल काम केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से मान्यता हासिल कर लेंगे। अब कोई अड़चन पेश नहीं आएगी। स्कूल एनओसी लेने की कोशिश तब से कर रहा है जब लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश नहीं बना था। हालांकि, जम्मू कश्मीर और लद्दाख अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश हैं। अभी लद्दाख के स्कूलों को मान्यता जम्मू कश्मीर शिक्षा बोर्ड से प्राप्त है। लद्दाख में नया बोर्ड बनाने साबित करने के लिए पिछले साल कमेटी का गठन किया था।

पदमा कारपो के नाम पर रखा स्कूल का नाम : 21 साल पुराने स्कूल का नाम स्कालर मिपहम पदमा कारपो पर रखा था। पदमा कारपो का मतलब स्थानीय बोती भाषा में सफेद कमल होता है। स्कूल की दीवार जो 2010 की बाढ़ में नष्ट हो गई थी, अभी भी कैंपस में है। पहले पहली मंजिल ईंट की बनी थी जिसे लकड़ी से बदला गया है।

साल 2018 में स्कूल ने फैसला किया था कि रैंचो दीवार को दूसरी जगह ले जाया ताकि पर्यटकों के आने से स्कूल में बच्चों की पढ़ाई पर असर ना पड़े। यहां के विद्यार्थी बोती, इंग्लिश, हिंदी, सोशल साइंस विषय पढ़ते हैं। उन्हें टीम वर्क, कौशल विकास की ट्र्रेंनग दी जाती है। स्कूल इस समय सर्दी की छुट्टियों के लिए बंद है। कोरोना के कारण आनलाइन कक्षाएं लगाई जाती रही हैं। 


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