स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी बढ़ा रही जम्मू का दर्द, बाल रोग-गर्भवती महिलाओं के इलाज में कश्मीर से कोसों दूर है जम्मू
कश्मीर में बच्चों के लिए शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल सांइसेस में भी अलग से नियोनैटालोजी और पेडियाट्रिक्स विभाग है। इसमें विशेषज्ञ डाक्टर मरीजों का इलाज करते हैं। शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेस जेवीसी बेमिना में भी बच्चों के इलाज की सुविधा है।
जम्मू, रोहित जंडियाल : देश के अन्य भागों की तरह जम्मू कश्मीर भी कोरोना की तीसरी लहर से निपटने के लिए तैयारियों में जुटा है। इस लहर में बच्चों और गर्भवती महिलाओं के सबसे अधिक प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही है, लेकिन इन दोनों ही वर्गों में जम्मू संभाग सुविधाओं में पीछे है, हालांकि कश्मीर संभाग में स्थिति यहां से बेहतर है। अस्पतालों से लेकर वेंटीलेटर और अन्य उपकरणों तक में कश्मीर में बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए सुविधाएं हैं। इनका और विस्तार हो रहा है। मगर पिछली सरकारों की अनदेखी का खमियाजा जम्मू भुगत रहा है।
कोरोना लहर आने से पहले तक कश्मीर के श्रीनगर जिले में बच्चों की देखभाल के लिए जीबी पंत अस्पताल है। इस अस्पताल में सिर्फ बच्चों का इलाज होता है। इसमें 254 बिस्तरों की क्षमता है। वर्ष 2005 में हजूरी बाग के बच्चों के अस्पताल को इसमें शिफ्ट किया गया था। इसी तरह ललदद अस्पताल गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए हैं। इसमें 350 बिस्तरों की क्षमता है। यह बढ़ाकर 500 हो रही है।
श्रीनगर के रैनावाड़ी में जेएलएनएम अस्पताल है। इस अस्पताल में भी गायनाकालोजी और बाल रोग विशेषज्ञ दोनों है। गौसिया अस्पताल में भी दोनों के लिए सुविधा है। इसी तरह कश्मीर में बच्चों के लिए शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल सांइसेस में भी अलग से नियोनैटालोजी और पेडियाट्रिक्स विभाग है। इसमें विशेषज्ञ डाक्टर मरीजों का इलाज करते हैं। शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेस जेवीसी बेमिना में भी बच्चों के इलाज की सुविधा है।
वहीं जम्मू की बात करें तो यहां पर बच्चे और गर्भवती महिलाएं सिर्फ श्री महाराजा गुलाब ङ्क्षसह अस्पताल और गांधीनगर अस्पताल पर ही निर्भर हैं। जम्मू में 1980 से 90 के दशक में अंबफला में बच्चों का अस्पताल जरूर था, लेकिन उस अस्पताल का एक भाग गिरने से वहां इलाज करवा रहे कुछ बच्चों की मौत के बाद अस्पताल को ही बंद कर दिया गया। उसके बाद श्री महाराजा गुलाब ङ्क्षसह अस्पताल में ही बच्चों का इलाज होता है। इस अस्पताल में बाल रोग विभाग के अलावा स्त्री रोग, ईएनटी और त्वचा रोग विभाग भी हैं। अस्पताल की क्षमता 700 बिस्तरों के आसपास है। वहीं, गांधीनगर अस्पताल में बच्चों के अलावा गर्भवती महिलाओं का इलाज होता है। लेकिन सीमित डाक्टर होने के कारण अधिक मरीजों का इलाज नहीं हो पाता। सरवाल अस्पताल में भी ऐसी ही स्थिति हैं। इसके अलावा जम्मू में बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए अलग से कोई अस्पताल नहीं है।
जम्मू के गांधीनगर में 200 बिस्तरों की क्षमता वाला जच्चा-बच्चा अस्पताल जरूर बनाया गया है, लेकिन अभी उसे शुरू नहीं किया गया है। यह अभी कोविड अस्पताल ही है। इसी तरह का अस्पताल श्रीनगर के बेमिना में भी बन रहा है।
उपकरणों में भी पीछे : जम्मू के अस्पताल बच्चों और गर्भवती महिलाओं के इलाज में उपकरणों और मशीनरी में भी श्रीनगर के आगे कहीं नहीं टिकते हैं। श्रीनगर के बच्चों के जीबी पंत अस्पताल में कोरोना से पहले 22 वेंटीलेटर, 37 पोर्टेबल वेंटीलेटर, एक ट्रांसपोर्ट वेंटीलेटर, आठ सीपैप, 80 मोनीटर, 102 इनफ्यूजन पंप, 70 नैबुलाइजर, 70 वार्मर थे। इसके अलावा इको कार्डियोग्राफी, एक्स-रे, सिटी स्कैन, अल्ट्रासाउंड सभी सुविधाएं थी। कोरोना के मामले आने के बाद इस अस्पताल में 100 से अधिक और वेटीलेंटर लगाए गए हैं। लेकिन जम्मू में श्री महाराजा गुलाब ङ्क्षसह अस्पताल में बच्चों के लिए मात्र 14 वेंटीलेटर हैं। इसके अलावा 60 के करीब वार्मर और फोटोथेरेपी यूनिट हैं। गांधीनगर अस्पताल में भी आठ वेंटीलेटर बच्चों के लिए हैं। वहीं श्रीनगर के एलडी अस्पताल में 35 बिस्तरों की क्षमता वाला पेडियाट्रिक आइसीयू है। अस्पताल में 32 वेंटीलेटर, 40 बेबी वार्मर, 10 फोटो थेरेपी मशीनें हैं। श्रीनगर के जेएलएनएम अस्पताल में करीब 30 वेंटीलेटर हैं।
अब बनाई है कमेटी: सरकार ने तीसरी लहर को देखते हुए अस्पतालों में सुविधाओं को बढ़ाने के लिए विशेषज्ञों की एक कमेटी बनाई है। प्रो. एमएस खुरू को इसका चेयरमैन बनाया गया है। अब देखना यह है कि जम्मू में स्वास्थ्य सुविधाओं में कितना विस्तार हो पाता है।