Kashmir: श्रीनगर की शान कृष्णा भोजनालय फिर खुला, मालिक रमेश ने कहा-बेटा खोया, हौसला नहीं
Militancy in Kashmir भोजनालय के मालिक रमेश कुमार ने इस अवसर पर कहा कि आज फिर से उन्होंने अपना काम शुरू किया है। वह यहां पर सुरक्षित हैं। यह वह जगह है जहां उनका जन्म हुआ। यहीं पर उनका पालन-पोषण हुआ। यहां उन्हें किसी प्रकार का खतरा नहीं है।
श्रीनगर, जेएनएन। कश्मीर में बसे अल्पसंख्यकों पर 90 के दशक से ही हमले कर उन्हें घाटी छोड़ने के लिए मजबूर किया गया, लेकिन कई ऐसे परिवार हैं जो कि अपने बुलंद हौसलों से आज भी कश्मीर में रहकर आतंकियों को मुंह तोड़ जवाब दे रहे हैं। इन्हीं में एक श्रीनगर का मशहूर कृष्णा वैष्णो भोजनालय भी है। इस भोजनालय को चलाने वाले परिवार के एक सदस्य को फरवरी में आतंकियों ने गोली मार दी थी। लेकिन इसके बावजूद परिवार का हौसला कम नहीं हुआ। आज मंगलवार को चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मालिक रमेश कुमार ने भोजनालय खोलकर यह संदेश दिया कि कोई भी हमला उनके इरादों को कमजोर नहीं कर सकता।
आतंकियों ने 17 फरवरी को रमेश कुमार के बेटे आकाश मेहरा को इसी भोजनालय में गोली मार दी थी। इस हमले में तीन स्थानीय आतंकी शामिल थे। जिन्हें हमले के एक सप्ताह के भीतर ही कश्मीर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। वहीं आकाश मेहरा कुछ दिनों तक श्रीनगर के श्री महाराजा हरि सिंह अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जूझता रहा। 28 फरवरी को उसने अंतिम सांस ली। इसके बाद यह भोजनालय करीब दो महीने तक बंद रहा। इस घटना का राजनीतिक दलों ने भी खूब विरोध किया। जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रधान डॉ फारूक अब्दुल्ला सहित कई राजनेता आकाश मेहरा के घर दुख जताने पहुंचे थे। उन्होंने भी परिवार का हौसला बढ़ाया।
सभी को यह लग रहा था कि अब शायद ही कृष्णा वैष्णो भोजनालय फिर से कश्मीर में पहले की तरह शुरू हो। लेकिन इस परिवार ने हिम्मत नहीं हारी और आज फिर से इसे खोलकर लोगों को यह संदेश दिया कि वह कश्मीर को कभी भी छोड़ने वाले नहीं है। भोजनालय के मालिक रमेश कुमार ने इस अवसर पर कहा कि आज फिर से उन्होंने अपना काम शुरू किया है। वह यहां पर सुरक्षित हैं। यह वह जगह है, जहां उनका जन्म हुआ। यहीं पर उनका पालन-पोषण हुआ। यहां उन्हें किसी प्रकार का खतरा नहीं है।
उनका इतना-सा बयान ही उनके इरादों को स्पष्ट करता है और आतंकवादियों व अलगाववादियों को संदेश देता है कि अब 90 के दशक का दौर नहीं है। यह नया जम्मू-कश्मीर है, यहां पर आतंकवाद और उसके समर्थकों के लिए कोई भी जगह नहीं है। अब कोई भी हमला हो जाए यहां से कोई भी परिवार छोड़कर जाने वाला नहीं है। अब तो यहां से जो परिवार वापस चले गए हैं, उन्हें फिर से घाटी लाया जा रहा है, ताकि एक बार फिर से कश्मीर की धरती पर विभिन्न समुदायों के लोग आपस में मिलकर रहें। सांप्रदायिक सौहार्द्र का संदेश दें।