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Kashmiri Pandit: कश्मीरी पंडित चाहते हैं विधानसभा में अपनी भागीदारी

यूथ आल इंडिया कश्मीरी समाज के प्रधान आरके भट्ट ने कहा कि पिछले तीस साल से कश्मीरी पंडित वोट तो अपने विधानसभा के लिए डालते हैं। मगर जिसको वोट डाल रहे हैं उसका भी सही तरीके से कोई परिचय समाज के साथ नही होता।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Mon, 08 Mar 2021 12:00 PM (IST)Updated: Mon, 08 Mar 2021 12:02 PM (IST)
Kashmiri Pandit: कश्मीरी पंडित चाहते हैं विधानसभा में अपनी भागीदारी
वोट लेकर जीतने वाले पलट कर भी नही देखते।

जम्मू, जागरण संवाददाता: पिछले 30 साल से विस्थापन का दर्द झेल रहे कश्मीरी पंडितों की नजर अब जम्मू कश्मीर विधानसभा में समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित करने की ओर है।यही कारण है कि कश्मीरी पंडित समाज अब विधानसभा में पांच सीटें आरक्षित किए जाने की मांग उठा रहा है। इसको लेकर कश्मीरी संगठनों की आपस में बैठकें हो रही हैं ताकि अपनी इस मांग को सशक्त तरीके से उठाया जा सके।

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नगरोटा जगटी में विस्थापित कश्मीरी पंडितों के हक के लिए संघर्ष कर रहे शादी लाल पंडिता ने कहा कि पिछले तीस साल से कश्मीरी पंडित कश्मीर में अपने अपने विधानसभा क्षेत्र के लिए जम्मू या ऊधमपुर के मतदान केंद्रों पर जाकर वोट डालते रहे हैं। इस उम्मीद से कि चुनाव जीतने के बाद यह प्रतिनिधि कश्मीरी पंडितों की बात को उठाएंगे। लेकिन वोट लेकर जीतने वाले पलट कर भी नही देखते।

ऐसे में कश्मीरी पंडितों के हक की आवाज वहीं की वहीं रह जाती है। इसलिए विधानसभा में कश्मीरी पंडितों का अपना प्रतिनिधि होना बेहद जरूरी है। वहीं कश्मीरी पंडितों की संस्था पनुन कश्मीर के प्रधान विरेंद्र रैना का कहना है कि कश्मीरी पंडितों के विकास के लिए अब विधानसभा में भागेदारी चाहिए। इसलिए घाटी में जहां जहां कश्मीरी पंडितों की अच्छी आबादी रही है, वहां की सीटें कश्मीरी पंडितों के लिए आरक्षित की जानी चाहिए।

यूथ आल इंडिया कश्मीरी समाज के प्रधान आरके भट्ट ने कहा कि पिछले तीस साल से कश्मीरी पंडित वोट तो अपने विधानसभा के लिए डालते हैं। मगर जिसको वोट डाल रहे हैं, उसका भी सही तरीके से कोई परिचय समाज के साथ नही होता। लेकिन कश्मीरी पंडित भले ही अब पलायन कर विस्थापित बन चुका है, मगर वह वोट आज भी अपनी विधानसभा के लिए डालता है। लेकिन इसमें कश्मीरी पंडितों का विकास कहां हैं।

वोट ले लिए जाते हैं और जीतने वाला प्रतिनिधि कश्मीरी पंडितों की आवाज नही उठाता। अब समय आ गया है कि कश्मीरी पंडितों को विधानसभा में आरक्षण चाहिए।


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