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Kashmiri Pandit: अपनी अपेक्षा-बेरोजगारी से आहत घाटी में रह रहे कश्मीरी पंडितों ने दी आमरण अनशन की चेतावनी

अधिकांश कश्मीरी पंडित परिवार आर्थिक रुप से कमजोर हैं। वादी न छोड़ने वाले कश्मीरी पंडितों ने अपने बुनियादी हक व न्याय के लिए कश्मीरी पंडित संघर्ष नामक एक संगठन बना रखा है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Sat, 08 Aug 2020 04:25 PM (IST)Updated: Sat, 08 Aug 2020 06:56 PM (IST)
Kashmiri Pandit: अपनी अपेक्षा-बेरोजगारी से आहत घाटी में रह रहे कश्मीरी पंडितों ने दी आमरण अनशन की चेतावनी
Kashmiri Pandit: अपनी अपेक्षा-बेरोजगारी से आहत घाटी में रह रहे कश्मीरी पंडितों ने दी आमरण अनशन की चेतावनी

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। आतंकियों की धमकियों के बावजूद घाटी न छोडऩे वाले कश्मीरी पंडितों ने अपनी उपेक्षा औेर बेरोजगारी से आहत होकर केंद्र सरकार को आमरण अनशन की चेतावनी दी है। अपनी दयनीय स्थिति के लिए पूरी तरह केंद्र को जिम्मेदार ठहराते हुए यह वर्ग कहता है कि केंद्र और प्रदेश में बेशक निजाम बदला, लेकिन हमारी किस्मत नहीं। हमें सिर्फ वोटों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। हमें नौकरशाही के फेर में फंसाकर रखा गया है। कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू ने कहा कि मैं सबसे पहले आमरण अनशन करुंगा।

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1990 में जब कश्मीर में पाक प्रायोजित जिहादी तत्वों के कारण घाटी सें कश्मीरी पंडितों को जम्मू समेत देश के विभिन्न हिस्सों में सामूहिक पलायन करना पड़ा तो उस समय कुछ कश्मीरी पंडित परिवारों ने कश्मीर नहीं छोड़ा। इनमें से अधिकांश परिवार घाटी के विभिन्न जिला मुख्यालयों में या फिर श्रीनगर में बसे हैं। इन परिवारों की संख्या लगभग 808 के करीब हैं। इनमें से अधिकांश परिवार आर्थिक रुप से कमजोर हैं। वादी न छोड़ने वाले कश्मीरी पंडितों ने अपने बुनियादी हक व न्याय के लिए कश्मीरी पंडित संघर्ष नामक एक संगठन बना रखा है। 

घाटी में रह रहे कश्मीरी पंडितों की कोई बात नहीं करता: कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कु ने कहा कि अब बहुत हो गया। किसी भी चीज की एक हद होती है। हमने आतंकियों की धमकियों के बावजूद कश्मीर नहीं छोड़ा, हमने यहां हर हालात में तिरंगा उठाए रखा। हमारे समुदाय के जो लोग यहां पलायन कर चले गए, उनकी सभी बात करत हैं, हमारी कोई सुध नहीं लेता। हमारी याद उस समय आती है जब सरकार को यह बताना होता कि कश्मीर में आज भी मजहबी भाईचारा जिंदा है। देखो कश्मीरी पंडितों का एक वर्ग आज भी कश्मीर में रह रहा है। यह लोग किस हालात में रह रहे हैं, यह सरकार नहीं बताती।

कोर्ट के फैसले के बाद भी घाटी रहे पंडितों को नहीं मिला हक: कश्मीर से पलायन न करने वाले कश्मीरी पंडितों को भी पलायन करना पड़ा है। कइयों ने अपने पैतृृक गांव को छोड़ श्रीनगर, पुलवमा, बारामुला जैसे शहर में शरण ली है। कई लोग यहां किराए के मकानों में रहते हैं। पलायन न करने वाले परिवारों की यहां हर स्तर पर उपेक्षा हुई है। इन परिवारों में कई पढ़े-लिखे बच्चे हैं, जो नौकरी की आयु सीमा पार कर चुके हैं। विस्थापित कश्मीरी पंडितों की वादी वापसी और पुनर्वास के लिए योजनाएं बनी हैं, हमारे लिए नहीं। हमने बड़ी मुश्किल से अदालत का दरवाजा खटखटाकर प्रधानमंत्री रोजगार पैकेज के तहत घोषित नौकरियों में सिर्फ 500 को वादी से पलायन न करने वाले कश्मीरी पंडित परिवारों के लिए सुनिश्चित कराया। लेकिन आज तक इनका लाभ नहीं मिल रहा है। हमारी फाइल राहत, पुनर्वास विभाग में पड़ी हुई है, लेकिन उस पर कार्रवाई नहीं हो रही है।

घाटी में रह रहे पंडितों की कहीं सुनवाई नहीं: संजय टिक्कु ने कहा कि हमारे समुदाय के करीब 450 युवक, 5 युवतियां ही इस समय कश्मीर में नौकरी की हकदार हैं। इनकी सूची भी प्रशासन के पास है। अगर इन पांच सौ पदों की भर्ती हाेती है तो यह सभी नौकरी प्राप्त कर लेंगे। लेकिन इन पदों को नहींं भरा जा रहा है। बीते तीन माह से प्रदेश प्रशासन के संबधित अधिकारी इस विषय में हमारे किसी पत्र, ज्ञापन का भी जवाब नहीं दे रहे हैं। हमारी दूसरी प्रमुख मांग वादी में हिंदु समुदाय के सभी धर्म स्थलों का संरक्षण किया जाए, उनकी संपत्तियों को अवैध कब्जों से मुक्त कराया जाए। बीते तीन दशकों के दौरान वादी मे हिंदु समुदाय के धर्मस्थलों की परिसपंत्तियों की खरीदो-फरोख्त को रद किय जाए। हमारे शमशान घाट आज समाप्त हो चुके हैं। उनकी बहली के लिए कई बार-बार आग्रह किया, लेकिन यहां कोई नहीं सुनता।

कश्मीरी पंडित सिर्फ सियासत और वोट का जरिया: पनुन कश्मीर के अध्यक्ष डाॅ अजय चिरंगू ने कहा कि कश्मीरी पंडित सिर्फ सियासत और वोट का जरिया हैं। यह केंद्र ने साबित कर दिया है। जब कश्मीर में रहने वाले कश्मीरी पंडितों के सामाजिक-आर्थिक हितों को संरक्षित नहीं किया जा सका है तो फिर देश के अन्य भागों में विस्थापन की जिंदगी जी रहे कश्मीरी पंडित कैसे घाटी में लौटेंगे।

मैं आमरण अनशन के लिए तैयार हूं: संजय टिक्कु ने कहा कि सभी ओर से थकहार जाने के बाद ही हमने आमरण अनशन का फैसला लिया है। जब से मेरे इस फैसले की जानकारी सार्वजनिक हुई है, बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडित युवक-युवतियां आमरण अनशन का संकल्प लेकर मेरे साथ संपर्क कर चुकी हैं। हम अगले एक सप्ताह तक केंद्र के रुख को देखेंगे, अगर वह कोरे आश्वासनों के बजाय व्यावहारिक तौर पर हमारी सुध लेता है तो ठीक अन्यथा मैं आमरण अनशन के लिए तैयार हूं।


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