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Article 35A: बदला कश्मीर, न हिंसा-न पत्थरबाजी, सुरक्षा एजेंसियां इसके कई मुख्य कारण मान रहीं

Kashmir Situationराज्य में इंटरनेट सेवाओं पर पाबंदी को लगभग 92 दिन बीत चुके हैं और इसका असर वादी में आतंकी गतिविधियों पर भी नजर आ रहा है। न आतंकी हिंसा-न पत्थरबाजी।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 06 Nov 2019 09:47 AM (IST)Updated: Wed, 06 Nov 2019 10:22 AM (IST)
Article 35A: बदला कश्मीर, न हिंसा-न पत्थरबाजी, सुरक्षा एजेंसियां इसके कई मुख्य कारण मान रहीं
Article 35A: बदला कश्मीर, न हिंसा-न पत्थरबाजी, सुरक्षा एजेंसियां इसके कई मुख्य कारण मान रहीं

जम्मू, राज्य ब्यूरो। राज्य में इंटरनेट सेवाओं पर पाबंदी को लगभग 92 दिन बीत चुके हैं और इसका असर वादी में आतंकी गतिविधियों पर भी नजर आ रहा है। न आतंकी हिंसा-न पत्थरबाजी। स्थानीय युवकों की आतंकी संगठनों में भर्ती भी अपने निम्न स्तर पर जा पहुंची है। मुठभेड़ में मारे जाने वाले आतंकियों के जनाजे पर न राष्ट्रविरोधी नारे लगाती अब भीड़ नजर आती है और न हवा में गोलियां दागते उनके साथी आतंकियों के वीडियो नजर आ रहे हैं।

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स्थानीय भर्ती में कमी से हताश पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ अब बड़े पैमाने पर पाकिस्तानी आतंकियों को कश्मीर में खून खराबे के लिए घुसपैठ कराने का हर संभव मौका तलाश रही है।राज्य गृह विभाग के मुताबिक, इस साल पहली जनवरी से 30 अक्टूबर तक लगभग 40 स्थानीय लड़के ही आतंकी बने हैं। वर्ष 2018 में पहली जनवरी से 31 मार्च तक ही 40 लड़के आतंकी बन चुके थे, जबकि पूरे साल के दौरान आतंकी बनने वाले कुल लड़कों की संख्या करीब 70 थी।

आतंकरोधी अभियानों में अहम भूमिका निभा रहे एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि यहां बहुत सी अफवाहें चलती रहती हैं। आपको कोई बताएगा कि बीते तीन माह के दौरान 100 लड़के आतंकी बन गए हैं तो कोई 500 बताएगा, लेकिन सच्चाई इसके उलट है। पांच अगस्त के बाद से पूरे कश्मीर में हमारे मुताबिक, करीब 11 लड़के गायब हुए और इन सभी के परिजनों ने पुलिस से संपर्क किया। इनमें छह वापस अपने घरों को लौट आए। अन्य तीन के ही आतंकी बनने की पुष्टि हुई और उनमें से एक तीन दिन पहले सोपोर में पकड़ा गया है। इसलिए आप यह कह सकते हैं कि स्थानीय स्तर पर आतंकियों की भर्ती लगभग थम गई है।

सोशल मीडिया पर जिहादी मानसिकता का प्रचार थमा :एसएसपी रैंक के अधिकारी ने कहा कि कश्मीर में अब बहुत कुछ बदल चुका है। कश्मीर में बीते कुछ वर्षो के दौरान आतंकी संगठनों में जो भर्ती हो रही थी, उसमें एक बड़ा कारण सोशल मीडिया पर होने वाला जिहादी मानसिकता का प्रचार था। सोशल मीडिया पर आए दिन मारे गए आतंकियों के जनाजे पर उमड़ने वाली भीड़, सोशल मीडिया पर खुद को नायक की तरह पेश करते आतंकियों की तस्वीरें और आतंकी संगठनों के सरगनाओं के भाषण बेरोक टोक जारी थे। खैर, बीते तीन माह से यह सब कश्मीर में बंद हो चुका है।

उन्होंने कहा कि कश्मीर के हर गली मोहल्ले में होने वाली पत्थरबाजी की घटनाएं भी पांच अगस्त के बाद से लगभग थम चुकी हैं। अगर यह बदलाव आया है तो इसका एक बड़ा कारण यहां इंटरनेट और सोशल मीडिया पर पाबंदी ही है। सोशल मीडिया पर होने वाले दुष्प्रचार से स्थानीय युवक पूरी तरह इस समय दूर हैं।

हिंसा के लिए किसी जगह जमा होने का नहीं मिल रहा संदेश :

अधिकारी ने कहा कि आतंकियों के अधिकांश ओवरग्राउंड वर्कर और समर्थक जेलों में बंद हैं या फिर गिरफ्तारी से बचने के लिए पूरी तरह शांत बैठे हुए हैं। इसके अलावा वर्ष 2016, वर्ष 2017 और वर्ष 2018 की तरह अब कश्मीर में पत्थरबाजी की सुनियोजित घटनाएं पूरी तरह थम चुकी हैं। अगर बीते तीन माह में कहीं हुई हैं तो उनकी तीव्रता बहुत कम रही है, क्योंकि अब पत्थरबाजों और राष्ट्रविरोधी तत्वों को किसी जगह विशेष पर हिंसा के लिए जमा होने का सोशल मीडिया पर कोई संदेश नहीं निकल रहा है।

सेना ने भी माना, हालात सामान्य करने में मिली मदद :

सेना में ब्रिगेडियर रैंक के एक अधिकारी ने कहा कि हमने भी स्थिति का जो आकलन किया है, वह यही बता रहा है कि सोशल मीडिया और इंटरनेट पर पाबंदी ने कश्मीर में हालात सामान्य बनाए रखने और आतंकी तत्वों पर काबू पाने में अहम भूमिका निभाई है। अगर सोशल मीडिया या इंटरनेट पूरी तरह से बहाल होता तो स्थिति यूं शांत नहीं होती। उन्होंने कहा कि स्थानीय आतंकियों की भर्ती के लगभग थम जाने से हताश पाकिस्तानी सेना और आइएसआइ अब सरहद पार से ही ज्यादा से ज्यादा संख्या में आतंकियों को कश्मीर में घुसपैठ कराने के लिए हर मौका तलाश रही है। एलओसी पर बीते कुछ समय से घुसपैठ की कोशिशों में आई तेजी और बार-बार होने वाला संघर्ष विराम का उल्लंघन भी इसी तरफ संकेत करता है। 


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