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Kashmir Saffron: केसर के रिकार्ड उत्पादन से महक रही कश्‍मीर घाटी; राष्ट्रीय केसर मिशन ने बदली किस्मत, मिल रहे बेहतर दाम

Kashmir Safforn जीआइ टैग मिलने से अब केसर के दाम भी अच्छे मिलना शुरू हो जाएंगे। भारत ही नहीं अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी इसका मांग बढ़ रही है। केसर की लाचा किस्म जो कि 80 रूपये प्रतिग्राम बेची जाती थी इस साल 175 से 185 रुपये प्रतिग्राम बेची जाएगी।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Fri, 22 Jan 2021 11:35 AM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 03:00 AM (IST)
Kashmir Saffron: केसर के रिकार्ड उत्पादन से महक रही कश्‍मीर घाटी; राष्ट्रीय केसर मिशन ने बदली किस्मत, मिल रहे बेहतर दाम
जीआइ टैग मिलने से अब केसर के दाम भी अच्छे मिलना शुरू हो जाएंगे।

श्रीनगर, नवीन नवाज। कश्मीर के लिए अच्छी खबर है। पहले जीआइ टैग और अब बंपर उत्पादन, कश्मीर में केसर उत्पादकों के लिए अच्छे दिनों का संकेत लेकर आया है। बंजर हो चुकी केसर की क्यारियों को फिर से उपजाऊ बनाने और कृषि सुविधाओं में विस्तार के कारण केसर का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 4.92 किलोग्राम पहुंच गया है, जो 10 साल पहले दो किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से भी गिर गया था। कश्मीर में इस सीजन में 18 टन केसर पैदा हुआ है और दो तिहाई उत्पादन उन खेतों में हुआ, जिन्हेंं पिछले कुछ वर्षों में फिर से उपजाऊ बनाया गया है। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने भी इस पर खुशी जताई है।

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पिछले वर्ष कश्मीर में 12.49 टन केसर पैदा हुआ था हालांकि कुछ बाजार के आंकड़े इसे 17 टन बता रहे हैं लेकिन पिछले पांच साल में यह तेजी से फिर बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान केसर क्रांति लाने का आह्वान किया था। इसका असर अब साफ दिखने लगा है। इस बार सिर्फ उत्पादन ही नहीं, केसर के दाम भी बढ़े हैं। केसर के शौकीनों को प्रति ग्राम 228 से 300 रुपये तक अदा करने पड़ रहे हैं।

अनियोजित शहरीकरण, सिंचाई का अभाव, औद्योगिक प्रदूषण, मौसम की मार और आतंकवाद ने कश्मीर में केसर की खेती को बहुत नुकसान पहुंचाया। वादी में इसकी खेती ज्यादातर बारिश के पानी पर निर्भर करती थी। करीब 40 साल पहले तक वादी में 5707 हेक्टेयर जमीन पर केसर की खेती होती थी, जो वर्ष 2010 में सिमटकर 3715 हेक्टेयर रह गई थी। इसी दौरान केसर उत्पादन भी प्रति हेक्टेयर 3.13 किलोग्राम से घटकर 1.88 किलोग्राम रह गया था। उस समय विशेषज्ञों ने चिंता जताई थी कि यह एक टन से भी नीचे जा सकता है और कश्‍मीर से केसर गायब भी हो सकता है।

केसर मिशन के बाद बदलने लगे हालात :

केसर के घटते उत्पादन और सिकुड़ते खेतों से पैदा हालात से निपटने के लिए वर्ष 2010 में केसर उत्पादकों की मदद के लिए 411 करोड़ रुपये की लागत वाला राष्ट्रीय केसर मिशन शुरू किया। दुस्सु में अंतरराष्ट्रीय स्तर का मसाला पार्क बनाया गया है। इसमें केसर की ग्रेडिंग, उसे सुखाने, पैकिंग व मार्केटिंग की सुविधा प्रदान की गई है। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केसर क्रांति लाने का आह्वान किया। इसके बाद 2015 में केसर उत्पादन और निर्यात प्राधिकरण का गठन किया गया। इसके बाद तेजी से जमीनी हालात बदले और किसानों की सुविधाओं में तेजी से इजाफा हुआ।

इन आंकड़ों से समझें कश्‍मीर और केसर का रिश्‍ता

पैदावार : पुलवामा, पांपोर, बडग़ाम और श्रीनगर

खेती : पांच हजार हेक्टेयर जमीन पर

उत्पादन : प्रति हेक्टेयर 4.92 किलो

बिजाई : जून-जुलाई में बिजाई और अक्टूबर-नवंबर में फसल तैयार

जुड़ाव : 260 गांवों के करीब 22 हजार परिवार केसर की खेती से जुड़े

कीमत : प्रति ग्राम 228 से 300 रुपये

गुण : अपने रंग, खुशबू और औषधीय गुणों के कारण विदेशी केसर पर भारी

बरसों पुराना केसर का इतिहास :

केसर दुनिया के सबसे महंगे मसालों में एक है। कश्मीर में केसर की कृषि का इतिहास बरसों पुराना है। 500 ईसा पूर्व चीन के महान चिकित्सक वान जेन ने कश्मीर को केसर का घर बताया था। दक्षिण कश्मीर के पुलवामा, पांपोर और सेंट्रल कश्मीर के बडग़ाम व श्रीनगर में भी केसर की पैदावार होती है। दुनिया में सबसे अधिक करीब 400 टन केसर ईरान पैदा करता है और भारत में करीब 18-20 टन केसर पैदा होता है। उसका ज्यादातर हिस्सा जम्मू कश्मीर में ही होता है। इनके अलावा स्वीडन, स्पेन, इटली, फ्रांस और ग्रीस में भी केसर खूब होता है, लेकिन कश्मीरी केसर अपने गुणों के कारण सब पर भारी पड़ता है। ईरान दुनिया का 90 फीसद केसर पैदा करता है।

दक्षिण कश्मीर में पांपोर को केसर की क्यारी भी कहते हैं। वादी में कुल 260 गांवों के करीब 22 हजार परिवार केसर की खेती से जुड़े हैं।

किसानों को उन्नत बीज और तकनीक  प्रदान की

कश्मीर के कृषि निदेशक चौधरी मोहम्मद असलम इकबाल ने कहा कि अब राष्ट्रीय केसर मिशन रंग दिखा रहा है। वादी में करीब पांच हजार हेक्टेयर जमीन पर केसर की खेती होती है। इसमें 3715 हेक्टेयर जमीन केसर मिशन के तहत चिह्नित की गई है। इस जमीन पर कभी केसर की पैदावार खूब होती थी, लेकिन यह जमीन लगभग बंजर हो गई थी। इसे फिर से उपजाऊ बनाने के साथ किसानों को उन्नत बीज, तकनीक प्रदान की। बोरवेल, स्प्रिंकलर और ड्रिप इरिगेशन की सुविधा दी। इस साल केसर 18.05 टन पैदा हुआ। इसमें से 13.36 टन केसर मिशन के तहत फिर से उपजाऊ बनाए गए खेतों में ही पैदा हुआ है। चिह्नित 3715 हेक्टेयर में से करीब 2600 हेक्टेयर जमीन केसर की खेती के लिहाज से पूरी तरह उपजाऊ हो चुकी है। मिशन के तहत बहाल की गई जमीन में हमने प्रति हेक्टेयर चार से पांच किलोग्राम केसर प्राप्त किया है।

केसर के दाम भी बढ़े : कृषि निदेशक चौधरी मोहम्मद असलम इकबाल ने कहा कि लच्छा केसर के लिए 150-200 रुपये प्रति ग्राम चुकाने पड़ रहे हैं, जबकि साफ किए हुए मोगरा केसर की कीमत उसकी ग्रेडिंग के आधार पर 225 से 300 रुपये प्रति ग्राम तय है। कुछ लोग 350 रुपये तक भी बेच रहे हैं। कश्‍मीरी केसर को 2020 में ही जीआइ टैग मिला है। जीआइ टैग दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले केसर उत्पादक मजीद वानी ने कहा कि केसर मिशन और जीआइ टैग का हमें बहुत फायदा पहुंचाया है।

रंग, खुशबू और औषधीय गुणों के कारण विदेशी केसर पर भारी :

शेरे कश्मीर कृषि विश्वविद्यालय के प्रो. संदीप के मुताबिक, कश्मीर का केसर अपने रंग, खुशबू और औषधीय गुणों के कारण विदेशी केसर पर भारी है। यह पूरी तरह से आर्गेनिक है। बीते छह सालों में केसर की खेती के प्रति किसानों में दिलचस्पी बढ़ी है।

केसर उर्फ जाफरान

अरबी में केसर को जाफरान भी कहा जाता है। इसका अर्थ है 'पीलाÓ। केसर का एक पुंकेसर करीब दो मिलीग्राम का होता है और एक फूल पर करीब तीन पुंकेसर होते हैं। इस तरह एक किलोग्राम केसर को निकालने के लिए करीब डेढ़ लाख फूल चुने जाते हैं। इस तरह एक-एक फूल को चुनकर केसर बनता है। इतनी कड़ी मेहनत के बाद उसे सुखाया जाता है। इसकी महंगी कीमत के कारण ही इसे ग्राम में बेचा जाता है।


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