Move to Jagran APP

कश्मीर की वादियों में घुला है बॉलीवुड का रोमांस, फिल्मों के बेहद शौकीन हैं यहां के लोग

Bollywood in Kashmir कश्मीर में जिन स्थानों पर फिल्म के दृश्य दर्शाए गए उनके नाम उन फिल्मों के नाम पर पड़ गए।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Sun, 08 Dec 2019 12:10 PM (IST)Updated: Sun, 08 Dec 2019 12:21 PM (IST)
कश्मीर की वादियों में घुला है बॉलीवुड का रोमांस, फिल्मों के बेहद शौकीन हैं यहां के लोग
कश्मीर की वादियों में घुला है बॉलीवुड का रोमांस, फिल्मों के बेहद शौकीन हैं यहां के लोग

रजिया नूर, श्रीनगर। कितनी खूबसूरत यह तस्वीर है, मौसम बेमिसाल बेनजीर है, यह कश्मीर है, यह कश्मीर है..। यह गीत जब भी गूंजता है तो आंखों के सामने कश्मीर का बेपनाह हुस्न आ जाता है। कश्मीर न केवल विश्वभर के पयर्टकों की पहली पसंद है बल्कि सिनेजगत में कश्मीर पहले पायदान पर है। बालीवुड की अधिकांश हिट फिल्में कश्मीर के प्राकृतिक नजारों के बीच फिल्माई हैं। कश्मीर का रहन-सहन, परपंरा फिल्मों के माध्यम से दुनिया भर में पहुंची है।

loksabha election banner

या यूं कहें कि कश्मीरियत को बालीवुड ने खास रंग और एक पहचान दी। कम बजट में फिल्में हिट करनी हो तो कश्मीर चलो की सोच आज भी बरकरार है। नौवें दशक में घाटी में आतंकवाद पनपने से बालीवुड ने तो फिल्मों के लिए विदेशों का रुख जरूर किया, लेकिन बकौल फिल्म निमार्ताओं के लिए विदेशों में करोड़ों खर्च करके उनकी फिल्मों में वह चार्म नजर नहीं आता था जो उन्हें धरती का स्वर्ग मेंअद्भुत नजारों में। यह घाटी की सुंदरता का ही जादू है कि शम्मी कपूर जैसे सितारे से लेकर बालीवुड किंग शाहरुख खान और ऋतिक रोशन तक को कश्मीर शूटिंग के मसले में आइिडयल जगह लगती है।

आतंकवाद के प्रभाव को दशार्या : कश्मीर में 1989 में आतंकवाद पनपने के बाद कुछ वषों तक बालीवुड कश्मीर से दूर रहा, लेकिन हालात में आए सुधार के बाद फिर कश्मीर का रुख किया। फिल्मों के थीम रोमांस से आतंकवाद के इर्द-गिर्द घूमने लगे। इन फिल्मों में हैदर, मिशन कश्मीर, रोजा, दिल से, फना, बजरंगी, सिकंदर, शीन, फेनटम शािमल है।

फिल्मों के नाम पर कई जगहें, सन्नी की बेताब घाटीः कश्मीर में जिन स्थानों पर फिल्म के दृश्य दर्शाए गए उनके नाम उन फिल्मों के नाम पर पड़ गए। फिल्म अभिनेता सनी देओल व अमृता सिंह की पहली फिल्म बेताब पयर्टन स्थल पहलगाम से कुछ किलोमीटर की दूरी पर फिल्माई थी। जहां फिल्म के दृश्य दर्शाए उस स्थान का नाम बेताब वेली पड़ गया। राजेश खन्ना व मुमताज की फिल्म आपकी कसम का एक गीत जय जय शिव शंकर, गुलमर्ग में एक मंदिर की सीढ़ियों पर फिल्माया था। गीत को दर्शाए कई दशक बीत गए, लेकिन उस मंदिर को देख लोगों के मुंह से जय जय शिव शंकर निकलता है। गुलमर्ग की सैर करने वाले पयर्टक मंदिर की उन सीढिय़ों पर कुछ देर बैठना पसंद करते हैं जहां राजेश खन्ना व मुमताज ने जय जय शिव शंकर के गीत पर ठुमके लगाए थे।

शम्मी कपूर व शर्मीला टैगोर की फिल्म कश्मीर की कली का वह गीत यह चांद सा रोशन चेहरा इतना लोकिप्रय हुआ कि एक हाउसबोट वाले ने हाउसबोट व शिकारे का नाम कश्मीर की कली रख दिया। फिल्म बजरंगी भाई जान की उस कव्वाली (भर दे झोली मेरी) को लीजिये जो पहलगाम से सटी प्रसिद्ध दरगाह में फिल्माई थी उस कव्वाली की बदौलत जब भी पयर्टक उस दरगाह पर जाते हैं तो बजरंगी भाई जान को जरूर याद करते हैं।

फिल्मों के दीवाने हैं कश्मीरीः कश्मीरी बालीवुड फिल्मों के दीवाने रहे हैं। आतंकवाद से पहले यहां के सिनेमाघरों में फिल्म प्रेमियों का जमावड़ा रहता था। नाइट शो में फिल्म प्रेमियों की उतनी ही भीड़ रहती थी जितनी दिन के शो में। आतंकवाद बढऩे के बाद वादी में सिनेमा घर तो बंद हैं। फिल्म प्रेमियों का कहना है कि वह बड़े स्क्रीन पर तो फिल्में नहीं देख पाते। अलबत्ता छोटे स्क्रीन (टीवी) और यूट्यूब पर वह बालीवुड फिल्में देखने का अपना शौक पूरा कर लेते हैं। इद्रीस फारूक नामक युवक ने कहा कि मैं फिल्में खासकर बालीवुड फिल्में देखने का शौकीन हूं। मुङो जब भी घाटी से बाहर जाने का मौका मिलता है तो मैं पहली फुर्सत में सिनेमा घर में जाकर फिल्म देखता हूं। अब्बास ने कहा कि यूट्यूब पर लेटेस्ट मूवी सर्च कर वह देखना और बालीवुड में क्या हो रहा है इसकी खबर रखना हाबी है।

टिकट लेना हुआ करता था चैलैंज, मारपीट तक होती थीः वादी में आतंकवाद पनपन से पहले जब सिनेमा घरों में कोई नई फिल्म लगती थी तो सैलाब उमड़ आता था। फिल्म देखने टिकट प्राप्त करना आपमें चैलैंज हुआ करता था। फिल्म प्रेमियों के अनुसार टिकट प्राप्त करने के लिए अधिकांश सिनेमाघरों में फिल्म प्रेमियों के बीच बहस व हाथापाई भी होती थी। 70 वषीय गुलाम नबी जान ने कहा कि मुङो याद है कि 45 साल पहले की बात है। यहां फिल्म मुगल-ए अजम रिलीज हुई। मैं तीन दोस्तों के साथ फिल्म देखने गया। टिकटें सारी बिक गई थी। तीन टिकटें मिलीं। एक टिकट पर मारपीट तक हो गई। मेरा दो दोस्त अस्पताल पहुंचे। मैं तीन और लोगों के साथ दो दिन तक लॉकअप में रहा। जान ने मुस्कुराते हुए कहा, जब भी मुगल ए आजम फिल्म का जिक्र होता है,मुङो वह किस्सा याद आजाता है।

कश्मीर की सुंदरता दशाईः कश्मीर में बनी अधिकांश फिल्मों में यहां की सुंदरता ही दशाई जाती थी। इन फिल्मों का थीम रोमांस होता था। फिल्मों में बेमिसाल, कश्मीर की कली, रोटी, आपकी कसम, जब जब फूल खिले, लावारिस, मास्टर नटवर लाल, जानी दुश्मन, सिलसिला, तुम से अच्छा कौन है, अंदाज जंगली, फितूर, नोटबुक ऑफ द इयर, जब तक है जान, स्टूडेंट ऑफ द इयर, यह जवानी है दीवानी, हाईवे, राजी आदि कई फिल्में शामिल है।

स्टाइल अपनाते हैं युवाः कश्मीर के लोग पसंदीदा फिल्म सितारों के हेयर स्टाल, खानपान व चलने फिरने व बात करने के ढंग तक की नकल कर अपनाने की कोशिश करते हैं। युवा पीढ़ी अजय देवगन व सलमान का हेयर कट पसंद करते हैं। फिल्म तेरे नाम में सलमान खान का हेयर कट आज भी युवाओं का फेवरेट है। अभिनेत्री साधना का साधना हेयर कट, नीलम का नीलम कट, कंगना के घुंघराले बालों का स्टाइल भी युवतियों में काफी लोकिप्रय है।

बदल सकती है घाटी की छविः अधिकांश लोगों का मानना है कि बालीवुड घाटी की छवि को फिर से बदल सकता है। फिल्म प्रेमी एजाज यतू ने बताया कि फिल्में लोगों की जिंदगी पर गहरी छाप छोड़ देती हैं। फिल्मों में दिखाई जानी वाली कहानी और इसके किरदारों को लोग अपनाने की कोशिशें करते हैं। घाटी में आतंकवाद को अपनी फिल्मों का विषय बना फिल्म निमार्ताओं ने इसकी छवि को नकारात्मक छाप छोड़ दी है। उन्हें चाहिए कि आतंकवाद से ज्यादा वह यहां की सुंदरता पर ज्यादा फोक्स करें।

कश्मीर में थे 17 सिनेमाघर, आतंकियों ने करा दिए बंदः वर्ष 1989 तक घाटी में 17 सिनेमाघर थे। रीगल, प्लेडयम, नाज, अमरीश, फिरदौस, शीराज, ब्रॉडवे, शाह और नीलम श्रीनगर शहर, समद टॉकीज, हीवन, थिमाया, कापरा, रेगिना, मराजी तथा हीमाल सिनेमा बारामूला, कुपवाड़ा व अनंतनाग में थे। 1989 में अल्लाह गाइगर्स नामक आतंकी संगठन ने चेयरमैन एयर मार्शल नूर खान के नेतृत्व में सिनेमाघरों को बंद करने के लिए अभियान चलाया। तीन महीनों में सिनेमाघरों तथा शराब की दुकानों को बंद करवा दिया। 1990 में लालचौक में रीगल सिनेमा में आतंकियों ने ग्रेनेड हमले कर घाटी के तमाम सिनेमाघर बंद करवा दिए। वर्ष 2002 में पीडीपी व कांग्रेस शासन में कुछ सिनेमाघर फिर से खोले गए, लेकिन लोग दहशत के चलते नहीं आए। सिनेमाघर फिर बंद हो गए। अधिकांश सिनेमाघरों का निर्माण 1960 में हुआ।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.