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Kashmir Apple Growers: स्कैब नहीं, ब्लैकनिंग व आल्टरनेरिया बीमारी झेल रहा कश्मीर का सेब

करीब सात लाख परिवार प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से सेब उत्पादन और इससे संबंधित औद्योगिक व कृषि गतिविधियों से जुड़े हुए हैं। जम्मू कश्मीर में करीब 20 लाख टन सेब हर साल पैदा होता है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Wed, 19 Aug 2020 09:27 PM (IST)Updated: Wed, 19 Aug 2020 09:27 PM (IST)
Kashmir Apple Growers: स्कैब नहीं, ब्लैकनिंग व आल्टरनेरिया बीमारी झेल रहा कश्मीर का सेब
Kashmir Apple Growers: स्कैब नहीं, ब्लैकनिंग व आल्टरनेरिया बीमारी झेल रहा कश्मीर का सेब

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो : स्कैब से किसी तरह बच गए कश्मीर के सेब पर इस बार ब्लैकनिंग और आल्टरनेरिया की मार ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। बावजूद इसके बागवान और बागवानी विभाग दोनों ही सुधार को लेकर आशान्वित हैं।

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शेरे कश्मीर कृषि, विज्ञान एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. फारूक आरा ने कहा कि स्कैब का यहां कोई ज्यादा असर नहीं है। इस बार सेब की पैदावार पर कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए लॉकडाउन और मौसम की मार पड़ रही है। लॉकडाउन के कारण शुरू में कई बागवानों को समय रहते कीटनाशक नहीं मिल पाए और कई छिड़काव नहीं कर पाए। रही सही कसर मौसम ने पूरी कर दी है। इस साल गर्मियों में सामान्य से 50 फीसद से भी कम बारिश हुई है। तापमान भी बीते वर्षों की तुलना में ज्यादा है। अगर सेब की कुछ प्रजातियों को छोड़ दिया जाए तो अन्य प्रजातियां इससे प्रभावित हो रही हैं।

ब्लैकनिंग में काले पड़ जाते हैं फल, आल्टरनेरिया में गिर जाते है पत्ते: डॉ. फारूक आरा ने बताया कि कश्मीर में सेब के पेड़ों पर ब्लैकनिंग और आल्टरनेरिया का असर है। ब्लैकनिंग में पत्ते काले पड़ जाते हैं। फल भी काला हो जाता है। स्वाद और रस भी नहीं रहता। सेब की गुणवत्ता पूरी तरह प्रभावित होती है। ऐसा सेब आसानी से नहीं बिकता और बिकता है तो दाम नहीं मिलेगा। इसके अलावा कई जगह आल्टरनेरिया फैल रहा है। इसमें पेड़ों से पत्ते पूरी तरह गिर जाते हैं। उनके अंदर की नमी समाप्त हो जाती है और फसल भी खराब हो जाती है। अगर मौसम में सुधार नहीं हुआ तो स्थिति बिगड़ जाएगी। अभी प्रभावित फसल का आंकड़ा तो नहीं है, लेकिन कुछ जगह से शिकायत जरूर आ रही है।

गुल मस्ता व हजरतबली सेब का ही ज्यादा निर्यात हो रहा : बागवानी विभाग में सह निदेशक रैंक के एक अधिकारी ने कहा कि विभागीय स्तर पर मैं कोई सार्वजनिक जानकारी नहीं दे सकता, लेकिन स्कैब का असर एकाध जगह पर ही है। मार्च-अप्रैल में कुछ जगह लक्षण मिले थे, लेकिन स्थिति को हमने संभाल लिया। अब मौसम की मार से पैदा होने वाली बीमारियां जरूर चिंता बढ़ा रही हैं। कई बागवान पत्तों के झडऩे और उनके काले होने की शिकायत कर रहे हैं। यह शिकायतें भी कुछ खास इलाकों से ही मिल रही है। कृषि वैज्ञानिकों और बागवानी विभाग के क्षेत्रीय अधिकारियों के दल प्रभावित इलाकों में जा रहे हैं। इस समय कश्मीर से गुल मस्ता और हजरतबली सेब का ही ज्यादा निर्यात हो रहा है। दोनों किस्मों की पैदावार अच्छी हुई है। कश्मीर में सेब की मुख्य पैदावार सितंबर में होती है। तब तक स्थिति सामान्य हो जाएगी। इस बार कश्मीर में सेब की पैदावार पर उन्होंने कहा कि कुछ नहीं कह सकते, लेकिन पिछली बार की तरह 20 लाख टन के आसपास होगी।

पत्ते काले पड़ रहे, फसल प्रभावित हो रही : लाला हसन

छत्तरगाम में करीब 20 कनाल में फैले सेब बाग के मालिक लाला हसन ने बताया कि इस बार स्कैब नहीं मौसम की मार से पैदा हो रही बीमारियों से परेशान हैं। स्कैब का लक्षण नजर आते ही हम उस पर काबू पा लेते हैं। इस बार अप्रैल में वादी में कुछ जगहों पर स्कैब का असर देखा गया था, लेकिन बागवानों ने कृषि वैज्ञानिकों और बागवानी विभाग की मदद से स्थिति पर काबू पा लिया था। अब पत्ते काले पड़ रहे हैं या फिर पेड़ पूरी तरह नंगे होते जा रहे हैं। इससे फसल प्रभावित हो रही है।

देश में लगभग 80 फीसद सेब जम्मू कश्मीर में होता है पैदा: देश में पैदा होने वाले सेब का लगभग 80 फीसद जम्मू कश्मीर में ही पैदा होता है। करीब सात लाख परिवार प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से सेब उत्पादन और इससे संबंधित औद्योगिक व कृषि गतिविधियों से जुड़े हुए हैं। जम्मू कश्मीर में करीब 20 लाख टन सेब हर साल पैदा होता है। स्थानीय भाषा में सेब को स्यूंठ बोला जाता है। कश्मीर घाटी के लगभग हर शहर और गांव में सेब के पेड़ और बाग हैं। कश्मीर में 150 से ज्यादा किस्म का सेब पैदा होता है, जो अपने रंग, खुशबू, स्वाद और रस में लाजवाब माना जाता है। 


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