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कश्मीर की एक पीढ़ी ने नहीं देखे सिनेमाघर

90 के दशक में आतंकवाद की आग ऐसी फैली कि कहीं सिनेमाघरों को जला दिया गया तो कहीं बंदूक के डर से उन पर ताला लटक गया।

By Sachin MishraEdited By: Published: Sun, 16 Sep 2018 11:54 AM (IST)Updated: Sun, 16 Sep 2018 12:04 PM (IST)
कश्मीर की एक पीढ़ी ने नहीं देखे सिनेमाघर
कश्मीर की एक पीढ़ी ने नहीं देखे सिनेमाघर

श्रीनगर, रजिया नूर। कश्मीर की एक पीढ़ी ने तो सिनेमाघर देखे तक नहीं हैं। 90 के दशक में आतंकवाद की आग ऐसी फैली कि कहीं सिनेमाघरों को जला दिया गया तो कहीं बंदूक के डर से उन पर ताला लटक गया। यह वही कश्मीर है जो 30 वर्ष पहले तक बॉलीवुड की पहली पसंद था। किसी भी फिल्म की शूटिंग कश्मीर में हुए बिना अधूरी मानी जाती थी। यही वजह है कि कश्मीरी जनता फिल्म जगत से काफी करीबी महसूस करती थी।

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1990 से पहले यहां के सिनेमाघरों में खूब रौनक रहती। टिकट काउंटर पर भीड़ और रात तक शो आम बात थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। बंद हो चुके सिनेमाघरों के भवनों का इस्तेमाल अलग-अलग तरीकों से हो रहा है। कई जगह अब शॉपिंग माल खड़े हो चुके हैं, कुछ की जगह अस्पताल तो कइयों में सुरक्षाबलों के कैंप हैं।

हालांकि, कश्मीर में सिनेमाघर खुलवाने के प्रयास हो रहे हैं। इसे लेकर पूर्व पीडीपी-भाजपा सरकार ने समाज के सभी वगरें से सहयोग की मांग की थी। फिल्म जगत से जुड़े लोगों का कहना है कि यदि राज्य में सेंसर बोर्ड कमेटी स्थापित कर दी जाए जो राज्य की सामाजिक, राजनीतिक व धार्मिक आस्थाओं के अनुकूल फिल्मों को आगे बढ़ाए तो राज्य में सिनेमाकल्चर बहाल हो सकता है।

कश्मीर में थे 17 सिनेमाघर

वर्ष 1989 तक घाटी में 17 सिनेमाघर थे। रीगल, प्लेडयम, नाज, अमरीश, फिरदौस, शीराज, ब्रॉडवे, शाह और नीलम श्रीनगर शहर, समद टॉकीज, हीवन, थिमाया, कापरा, रेगिना, मराजी तथा हीमाल सिनेमा बारामूला, कुपवाड़ा व अनंतनाग में थे। 1989 में अल्लाह गाइगर्स नामक आतंकी संगठन ने चेयरमैन एयर मार्शल नूर खान के नेतृत्व में सिनेमाघरों को बंद करने के लिए अभियान चलाया। तीन महीनों में सिनेमाघरों तथा शराब की दुकानों को बंद करवा दिया। 1990 में लालचौक में रीगल सिनेमा में आतंकियों ने ग्रेनेड हमले कर घाटी के तमाम सिनेमाघर बंद करवा दिए। वर्ष 2002 में पीडीपी व कांग्रेस शासन में कुछ सिनेमाघर फिर से खोले गए, लेकिन लोग दहशत के चलते नहीं आए। सिनेमाघर फिर बंद हो गए। अधिकांश सिनेमाघरों का निर्माण 1960 में हुआ।

स्थानीय युवाओं को प्राथमिकता मिले

घाटी के प्रसिद्ध फिल्म निर्माता व निदेशक मुश्ताक अली अहमद खान का कहना है कि सिनेमा कल्चर को बहाल करने के लिए सब से पहले यहां के युवाओं को फिल्मों में प्राथमिकता मिले। उन्हें फिल्म निर्माण तथा निर्देशन की तरफ आकर्षित किया जाए। घाटी के लोगों ने बॉलीवुड का सदा ही खुले दिल से स्वागत किया।


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