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खेत से लेकर सरहद तक, हर मोर्चे पर मुस्तैद ज्योति; पढ़ें- इनके संघर्ष की दास्तां

ज्योति जम्मू के संगानी गांव में बदलाव की प्रतीक बन गई हैं। उनके जज्बे से प्रभावित हो अन्य बेटियां न सिर्फ स्वावलंबी बन रही हैं, बल्कि समाज भी इस बदलाव में उनका साथ दे रहा है।

By Arti YadavEdited By: Published: Fri, 09 Nov 2018 08:17 AM (IST)Updated: Fri, 09 Nov 2018 10:46 AM (IST)
खेत से लेकर सरहद तक, हर मोर्चे पर मुस्तैद ज्योति; पढ़ें- इनके संघर्ष की दास्तां
खेत से लेकर सरहद तक, हर मोर्चे पर मुस्तैद ज्योति; पढ़ें- इनके संघर्ष की दास्तां

जम्मू,[सुरेंद्र सिंह]। चिनाब किनारे बसे अखनूर का छोटा सा गांव है संगानी। परंपराओं और रूढ़ियों में सिमटे अधिकतर परिवार। हालात यह कि कुछ समय पहले तक बेटियों के घर से निकलने पर भी पाबंदी थी। उन्हें चूल्हे-चौके तक ही सीमित रखा जाता। नौकरी करना तो दूर, लड़कियां साइकिल चलाने से भी हिचकती थीं, पर इन्हीं हालात के बीच ज्योति ने ट्रैक्टर चलाकर परिवार को संभाला और अब बंदूक थाम सरहदों की रक्षा कर रही हैं।

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ज्योति जम्मू के इस इलाके में बदलाव की प्रतीक बन गई हैं। उनके जज्बे से प्रभावित हो अन्य बेटियां न सिर्फ स्वावलंबी बन रही हैं, बल्कि समाज भी इस बदलाव में उनका साथ दे रहा है। ज्योति अखनूर ही नहीं पूरे क्षेत्र की आंखों की नूर बन चुकी हैं। अखनूर के छोटे से गांव संगानी में जन्मी ज्योति देवी छह बहनों में पांचवें नंबर पर हैं, लेकिन उन्होंने अपने बुलंद इरादों से कुछ ऐसा कर दिखाया, जो मिसाल बन गया। वह जम्मू कश्मीर की पहली ऐसी युवती हैं, जिसके पास ट्रैक्टर चलाने का लाइसेंस है। पिता पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी थी और महंगाई के इस दौर में गुजारा आसान नहीं था। ज्योति ने खेतों में ट्रैक्टर चलाकर परिवार को संभालने में अपने पिता का हाथ बंटाया।

ज्योति के पिता सोबा राम खेती के साथ शटरिंग का काम भी करते हैं। पिता पर बोझ बढ़ता देख धीरे-धीरे ज्योति ने उनका हाथ बंटाना शुरू किया और खेती संभालने लगीं। ट्रैक्टर चलाना सीख लिया। करीब दो वर्ष पहले ज्योति ने आरटीओ कार्यालय जम्मू से ट्रैक्टर चलाने का लाइसेंस हासिल किया। यह जम्मू-कश्मीर में किसी महिला को ट्रैक्टर चलाने के लिए दिया गया पहला लाइसेंस था। ज्योति न केवल खेती करतीं, बल्कि ट्रैक्टर लेकर शटरिंग का सामान भी पहुंचाने को जाने लगीं। शुरू में लोगों को उसे ट्रैक्टर चलाता देख हैरानी हुई और कुछ को आपत्ति भी। पिता को नसीहत भी दी गई, पर पिता ने इन बातों को दरकिनार कर बेटी को आगे बढ़ने दिया। उसके बाद ज्योति यहीं नहीं थमीं और देश सेवा की राह चुन ली। अपने हौसले की बदौलत वह लिखित परीक्षा व अन्य चुनौतियां पार कर बीएसएफ में भर्ती होने में कामयाब हो गईं।

पिता सोबा राम कहते हैं, जो लोग पहले मुझे नसीहतें देते थे और अब वही कहते हैं कि उनकी बेटी भी ज्योति जैसी बने। ज्योति ने आरटीओ कार्यालय में ट्रायल देकर ट्रैक्टर का लाइसेंस हासिल किया। उस समय वहां तैनात आरटीओ एके खजूरिया उसके जज्बे को देखकर हैरानी भी जताते हैं और उसके हौसले को सलाम भी करते हैं। कहते हैं, वास्तव में ऐसी बेटी पर सब को गर्व होना चाहिए। ज्योति कहती हैं कि वह बचपन से ही सुरक्षा बलों में जाने का सपना देखा करती थीं। बारहवीं कक्षा में पढ़ते हुए तैयारी शुरू कर दी थी और पहले ही प्रयास में बीएसएफ में भर्ती हो गई। कहती हैं, गर्व है कि देश की सेवा करने का मौका मिला है। अपने इलाके में लड़कियों की रोल मॉडल बन चुकी ज्योति गांव की बेटियों को अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए प्रेरित करती है। ज्योति का कहना है कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं है। बस आपका इरादा ठीक होना चाहिए।


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