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Jammu: शहर के आवारा मवेशियों के गोबर से गैस व खाद बनाकर दिया जा रहा पर्यावरण संरक्षण का संदेश

जम्मू नगर निगम इस प्रयास डेयरी वालों पर भी इस्तेमाल करना चाहता है ताकि मुहल्लों में चल रही डेयरियों से निकलने वाला गोबर भी ठिकाने लग जाए और शहर को इस कचरे से भी निजात मिले।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Thu, 13 Aug 2020 04:33 PM (IST)Updated: Thu, 13 Aug 2020 04:35 PM (IST)
Jammu: शहर के आवारा मवेशियों के गोबर से गैस व खाद बनाकर दिया जा रहा पर्यावरण संरक्षण का संदेश
Jammu: शहर के आवारा मवेशियों के गोबर से गैस व खाद बनाकर दिया जा रहा पर्यावरण संरक्षण का संदेश

जम्मू, अंचल सिंह: शहर से निकलने वाले गोबर से गैस व खाद बनाने का काम शहर के डोगरा हाल में किया जा रहा है। जम्मू नगर निगम ने इस बायो गैस प्लांट को बनाया है। इसमें शहर के आवारा मवेशियों के गोबर का निस्तारण करते हुए गैस और खाद बनाई जा रही है। इतना ही नहीं निगम ने यहां गौमूत्र का अर्क भी तैयार किया है।

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निगम ने पिछले वर्ष शहर के डोगरा हाल स्थित मवेशीवाड़ा परिसर में इस बायोगैस प्लांट को लगाया था। इसमें शहर भर से पकड़े जाने वाले मवेशियों से जो गोबर प्राप्त होता है, उससे गैस व खाद तैयार की जाती है। निगम शहर से रोजाना 10 से 20 मवेशियों को पकड़ता है। चूंकि डोगरा हाल मवेशीवाड़े में 60-70 मवेशी रखने की ही जगह है तो ज्यादा मवेशियों को नहीं पकड़ा जाता। इस प्लांट के लगने से अब गोबर गंदगी का सबब नहीं रह गया। इतना ही नहीं इससे कइयों को रोजगार भी मिल रहा है। निगम का राजस्व भी इससे बढ़ा है।

डेयरियों में भी बॉयोगैस की तैयारी: जम्मू नगर निगम इस प्रयास डेयरी वालों पर भी इस्तेमाल करना चाहता है ताकि मुहल्लों में चल रही डेयरियों से निकलने वाला गोबर भी ठिकाने लग जाए और शहर को इस कचरे से भी निजात मिले। निगम ने खादी एवं विलेज इंडस्ट्रीज कमीशन के साथ मिलकर डेयरियों में बायो गैस प्लांट लगाने की अपील भी की है। निगम ने सभी डेयरी वालों से कहा है कि वे आगे आएं। खादी विलेज एंड इंडस्ट्रीज के सहयोग से जम्मू नगर निगम डेयरी वालों को 30 हजार रुपये में यह प्लांट लगाने का मौका देगा। इसमें से 13 हजार रुपये सब्सिडी दी जाएगी। पांच से ज्यादा मवेशी रखने वालों के लिए खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग इस योजना के तहत बायो गैस प्लांट लगाकर देगा। इस प्लांट की पांच साल की गारंटी भी रहेगी।

बायोगैस प्लांट से लाभ: तराई एवं मैदानी क्षेत्रों में गोबर को ऊपलों के रूप में सुखा कर ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। इससे गोबर में मौजूद पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। ऊपला बनाने में प्रतिदिन करीब 1-2 घंटे का समय भी लगता है। अत: खाना पकाने के लिए गोबर के ऊपलों के स्थान पर गोबर से बायो गैस बना कर इसे ईंधन के रूप में प्रयोग करने से पोषक तत्वों कि हानि नहीं होती। बायो गैस से प्राप्त बायो गैस स्लरी में पौधों के लिए उपयोगी सभी पोषक तत्व उपलब्ध रहते हैं। साथ ही खाना बनाने में धुंआ नहीं होता। इससे गृहिणियों की आंखों पर कोई प्रतिकूल असर भी नहीं पड़ता। बायो गैस स्लरी को सीधे या छाया में सुखाकर या वर्मी कंपोस्ट बनाकर खाद के रूप में खेतों में प्रयोग करना चाहिए। बायो गैस से आजकल डीजल पंप सेट भी चला सकते हैं

  • डोगरा हाल में बायो गैस प्लाट चल रहा है। फिलहाल महामारी का प्रभाव है। अगर यह प्लांट पूरी तरह चले तो 300 के करीब घरों को रोशनी दे सकते हैं। हम गैस भी बनाते है तो बिजली कम रह जाती है। इतना ही नहीं हमने इससे खाद भी बनाना शुरू की है। इसके अलावा गौमूत्र का अर्क भी बनाते हैं जिसे निगम के काउंटरों पर बेचा जाता है। हम डेयरी वालों को भी ऐसे प्रोजेक्ट लगाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। 5-10 मवेशियों से चार चूल्हों के लिए गैस और दस बल्ब जलाने की बिजली मिल सकती है।- डॉ. सुशील शर्मा, म्यूनिसिपल वेटनरी ऑफिसर, जम्मू 

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