MakeSmallStrong: ट्रांसपोर्टर विपिन ने साझा किया सफलता का राज, कहा-अच्छा व्यवहार ही व्यापार की सफलता की कुंजी है
ट्रैवल के पास कमीशन एजेंट के तौर पर तीन वर्षों तक काम करने के उपरांत वर्ष 1988 में 20 वर्ष की आयु में दुकान खरीदकर कश्मीर हालिडे ट्रैवल्स के नाम से ट्रैवल एजेंसी बनाकर ट्रांसपोर्ट का कारोबार शुरू किया। वर्ष 1990 में पहली बार टू बाय टू बस खरीदी।
जम्मू, विकास अबरोल: होनहार बिरवान के होत चिकने पात, यह कथन अक्षरश सटीक बैठता है जमना ट्रैवल्स के मालिक विपिन शर्मा पर। बाल्यकाल से कुशाग्र बुद्धि और पढ़ाई लिखाई में बहुत चतुर थे लेकिन घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण 17 वर्ष की उम्र में ही ट्रैवल एजेंट का काम करना शुरू कर दिया और आज 26 बसों के मालिक हैं। साईं बाबा के प्रति अटूट आस्था रखने वाले विपिन शर्मा का मानना है कि किसी भी व्यापार में सफलता शार्टकट तरीके से नहीं मिलती है। इसके लिए कड़ी साधना करना पड़ती है। अच्छा व्यवहार से ही व्यापार को सफलता के मुकाम पर ले जाया जा सकता है। वह जिस व्यापार में हैं उसमें कड़ी प्रतिस्पर्धा है और मार्केट में गुडविल और अच्छे संबंध होने के बाद ही एक बार आया ग्राहक आपके पास बार-बार आता है। यहीं वजह है कि कुशल व्यवहार की वजह से ही आज जमना ट्रैवल्स के जम्मू के अलावा चंडीगढ़, अमृतसर, दिल्ली, लुधियाना, श्रीनगर और मंडी में भी आफिस हैं।
जिस उम्र में पढ़ाई करनी चाहिए उस उम्र में ट्रांसपोर्ट के व्यापार में भाग्य आजमाया: विपिन शर्मा ने बताया कि उनका वास्तविक नाम सुदर्शन शर्मा परंतु सिर्फ परिजन ही उनके इस नाम से वाकिफ हैं। उनके पिता स्वर्गीय बद्रीनाथ शर्मा जम्मू-कश्मीर पुलिस से डीएसपी के पद से सेवानिवृत्त हुए। शहर के नई बस्ती में दो कमरों के मकान में परिवार के नौ सदस्य रहते थे, जिनमें उनके माता-पिता, पांच भाई और दो बहनें शामिल हैं। चूंकि उनके पिता ईमानदार पुलिस अधिकारी थे और इतने बड़े परिवार का लालन-पालन करने में काफी कठिनाई हो रही थी। वर्ष 1982 में मैट्रिक करने के उपरांत ग्यारहवीं कक्षा में दाखिला लिया और इंदिरा चौक स्थित जगत ट्रैवल के पास कमीशन एजेंट के तौर पर काम करना शुरू कर दिया। तीन वर्षों तक काम करने के उपरांत वर्ष 1988 में 20 वर्ष की आयु में दुकान खरीदकर कश्मीर हालिडे ट्रैवल्स के नाम से ट्रैवल एजेंसी बनाकर ट्रांसपोर्ट का कारोबार शुरू किया।
कड़ी मेहनत से 16 सालों में खरीदी 12 डीलक्स बसें: वर्ष 1990 में पहली बार टू बाय टू बस खरीदी और कड़ी मेहनत करते हुए वर्ष 2006 तक 12 डीलक्स बस खरीद ली। चूंकि उस समय जम्मू में अंतर राज्यीय रूट के लिए डीलक्स बसों के परमिट नहीं मिलते थे। इस वजह से उन्होंने सभी बसों दिल्ली के नंबर से ही पंजीकृत करवाई। वर्ष 2007 में जब जम्मू-कश्मीर में स्लीपर बसों के परमिट खुले तो उन्होंने पुरानी सभी बसें बेचकर जम्मू से पंजीकृत नई बसें खरीदना शुरू कर दी। अब साईं बाबा की कृपा से 26 बसें उनकी दिल्ली, चंडीगढ़, लुधियाना, अमृतसर, हरिद्वार और मनाली रूट पर दौड़ती हैं। मंडी में स्थित डेंटल कॉलेज और हरिद्वार में गंगा मैया में अस्थियां विसर्जन करने के लिए काेरोना काल से पहले प्रतिदिन बस दौड़ती थी, जिसका काफी अच्छा रिस्पांस भी था। जम्मू यात्री भवन के अध्यक्ष पवन शास्त्री के आग्रह पर ही आज से सात वर्ष पहले जमना ट्रैवल्स ने हरिद्वार के लिए बस सेवा शुरू की थी। क्योंकि अस्थियां विसर्जन करने वाले अधिकतर लोगों को हरिद्वार की टिकट नहीं मिल पाती थी। इसी को मद्देनजर रखते हुए हरिद्वार के लिए बस सेवा शुरू की गई। बस सेवा हर रोज शाम को सात बजे जम्मू से हरिद्वार के लिए रवाना होती और अगली सुबह आठ बजे हरिद्वार में पहुंच जाती। इसके उपरांत शाम को हरिद्वार से पांच बजे बस सेवा जम्मू के लिए निकलती थी और अगले दिन सुबह सात बजे जम्मू पहुंचती।
कोरोना कॉल में भी कर्मचारियों को अपनी जेब से दे रहे हैं तनख्वाह : कोरोना महामारी ने अच्छे-अच्छे व्यापारियों का व्यवसाय चौपट कर दिया है। सबसे ज्यादा ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय प्रभावित हुआ है जो आज भी पूरी तरह से पटरी पर नहीं आया है। मार्च महीने से अब तक जारी अक्टूबर महीने तक अंतर जिला रूट की बसों को छोड़कर अंतर राज्यीय रूट का परिचालन प्रदेश में पूरी तरह से ठप है। बावजूद इसके विपिन शर्मा अपने पास पिछले 20 वर्षों से काम कर रहे 12 कर्मचारियों को अभी तक हर महीने नियमित रूप से वेतन की अदायगी करते आ रहे हैं। उनका मानना है कि वह अपने कर्मचारियों को परिवार का एक हिस्सा मानते हैं। भले ही आज काेरोना के कारण अंतर राज्यीय रूट पर बस सेवा बंद होने से उनके पास कमाई का कोई भी साधन नहीं है लेकिन साईं बाबा के प्रति गहरी आस्था और उनके दिखाए गए मार्ग पर चलते ही वह किसी को दुखी नहीं देखना चाहते हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि जल्द ही हालात सामान्य होंगे और एक बार फिर कामकाज पुन: पटरी पर लौट आएगा।