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Jammu Kashmir: नौकरी और सियासत के 'अनोखे' खिलाड़ी सज्जाद मुफ्ती लद्दाख स्थानांतरित

वर्ष 2014 में आइएफएस के पद से ली थी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति सियासत में सक्रिय रहने के बाद 2017 में चुपचाप वापस ले लिया इस्तीफा

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 22 Jul 2020 09:00 AM (IST)Updated: Wed, 22 Jul 2020 09:00 AM (IST)
Jammu Kashmir: नौकरी और सियासत के 'अनोखे' खिलाड़ी सज्जाद मुफ्ती लद्दाख स्थानांतरित
Jammu Kashmir: नौकरी और सियासत के 'अनोखे' खिलाड़ी सज्जाद मुफ्ती लद्दाख स्थानांतरित

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। सरकारी सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद सियासत के मैदान में दांव और सियासत से रहते हुए गुपचुप नौकरी में वापसी। सुनने में थोड़ा अटपटा अवश्य लग सकता था पर जम्मू कश्मीर में सत्ता और सियासत के घालमेल में सब संभव था। नौकरी और सियासत के इस अजब खिलाड़ी आइएफएस अधिकारी और पूर्व पीडीपी नेता सज्जाद हुसैन मुफ्ती को अब लद्दाख स्थानांतरित कर दिया गया है।

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सज्जाद पूर्व मुख्यमंत्री स्व. मुफ्ती मोहम्मद सईद के भतीजे और पूर्व मुख्यमंत्री व पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती के चचेरे भाई हैं। अब जम्मू कश्मीर महाप्रशासनिक विभाग में अतिरिक्त सचिव चरणदीप ने उपराज्यपाल जीसी मुर्मू के हवाले से जारी आदेश में सज्जाद मुफ्ती को अगले आदेश तक लद्दाख स्थानांतरित करने का आदेश दिया है। सज्जाद इस समय जम्मू में मुख्य वन संरक्षक के कार्यालय में अटैच हैं।

रेंजर से आइएफएस और फिर सियासत के खिलाड़ी तक

वर्ष 1990 में जम्मू कश्मीर वन विभाग में बतौर रेंजर से सेवा शुरू करने वाले सज्जाद हुसैन मुफ्ती को 2008 में जम्मू कश्मीर के कोटे से वन विभाग में आइएफएस कैडर प्रदान किया गया। वर्ष 2014 में पीडीपी और भाजपा की संयुक्त सरकार के गठन के बाद सज्जाद हुसैन ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की घोषणा कर दी। वह पीडीपी में सक्रिय हो गए। उन्हें अनंतनाग में पीडीपी का संयोजक बनाया गया। पर उनकी नियुक्ति पीडीपी नेताओं व कार्यकर्ताओं को ही रास नहीं आई।

मुफ्ती सईद के निधन के बाद महबूबा मुख्यमंत्री बनी तो सज्जाद हुसैन को एमएलसी व मंत्री बनाए जाने की चर्चा रही। पीडीपी के कार्यकर्ता उन पर परिवारवाद को बढ़ावा देने के आरोप लगाते थे तो वहीं प्रशासनिक अधिकारी अनावश्यक तौर पर हस्तक्षेप का।

बाद में पता चला इस्तीफा स्वीकार ही नहीं था

प्रशासन से जु़डे़ उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो सज्जाद ने इस्तीफा भले ही दे दिया हो पर न इस्तीफा स्वीकार किया गया और न खारिज किया गया। अलबता, उन्हें 15 अक्टूबर 2015 को जम्मू में मुख्य वन संरक्षक कार्यालय में अटैच कर दिया गया। वह निरंतर तनख्वाह व भत्ते प्राप्त करते रहे। महबूबा द्वारा उन्हें एमएलसी न बनाए जाने पर वर्ष 2017 में इस्तीफा वापस ले लिया, लेकिन नौकरी पर रिपोर्ट नहीं किया। वर्ष 2018 में महबूबा सरकार गिरने के बाद ही डयूटी पर लौटे।

पिछले साल हुआ था हमला

सज्जाद हुसैन पर बीते साल 19 जुलाई को बिजबेहाड़ा में आतंकी हमला भी हुआ था। वह मस्जिद में नमाज पढ़ने गए थे और जब बाहर निकलने लगे तो आतंकियों ने गोली चला दी। इस हमले में उनका एक अंगरक्षक शहीद हो गया था।

सत्ता का लाभ लेने का था खेल

पीडीपी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि यह लोग सिर्फ सत्ता का लाभ लेने के लिए संगठन में शामिल हुए और जब लगा कि यहां कुछ नहीं मिलने वाला तो वापस नौकरशाही की तरफ मुड़ गए। अब सज्जाद हुसैन कह सकते हैं कि उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया था, लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती बार-बार कहती थी कि सज्जाद ने लोगों के लिए पीडीपी के लिए सरकारी नौकरी छोड़ दी। इस संदर्भ में सज्जाद से संपर्क करने का प्रयास किया गया पर वह उपलब्ध नहीं हो पाए। 


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