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Jammu Kashmir: एमबीबीएस की 15 फीसद सीटें पड़ रही हजारों विद्यार्थियों पर भारी

कई बार जम्मू-कश्मीर में मेरिट अधिक होने से यहां पर विद्यार्थी एमबीबीएस की सीट से वंचित हो जाते हें लेकिन अगर यहां के विद्यार्थियों को अन्य प्रदेशों के सरकारी मेडिकल कालेजों में सीटें मिलें तो डेढ़ सो से अधिक को मौका मिल सकता है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Fri, 06 Nov 2020 11:34 AM (IST)Updated: Fri, 06 Nov 2020 11:34 AM (IST)
Jammu Kashmir: एमबीबीएस की 15 फीसद सीटें पड़ रही हजारों विद्यार्थियों पर भारी
सरकार को सोचना चाहिए और जो भ्रम विद्यार्थियों में पैदा किया है, उसे भी दूर किया जाना चाहिए।

जम्मू, रोहित जंडियाल: केंद्रीय पूल में जम्मू-कश्मीर की ओर से एमबीबीएसकी पंद्रह फीसद सीटें न देने से यहां पर अन्य प्रदेशों के विद्यार्थी प्रवेश नहीं ले पाते हें। लेकिन इसका एक बड़ा नुकसान जम्मू-कश्मीर के विद्यार्थियों को भी उठाना पड़ता है। यहां के विद्यार्थियों को भी अन्य प्रदेशों के सरकारी मेडिकल कालेजों में प्रवेश से वंचित होना पड़ता है। सिर्फ निजी कालेज व डीम्ड विश्वविद्यालयों में ही यहां के विद्यार्थी एमबीबीएस कर सकते हैं।

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केंद्र सरकार सभी मेडिकल कालेजों में प्रवेश के लिए नीट परीक्षा आयोजित करता है। इसमें 85 फीसद सीटें तो राज्यों में स्थानीय विद्यार्थियों के लिए होती हैं लेकिन पंद्रह फीसद सीटें केंद्रीय पूल के लिए रखी होती है। इन सीटों पर देश भर से कहीं से भी विद्यार्थी किसी भी राज्य के सरकारी मेडिकल कालेज में मेरिट के आधार पर प्रवेश ले सकता है। इन सीटों के लिए काउंसलिंग भी केंद्र सरकार ही करती है। लेकिन जम्मू-कश्मीर में ऐसी स्थिति नहीं है। यहां पर पहले अनुच्छेद 370 के चलते जम्मू-कश्मीर को छोड़ कर अन्य कोई भी ऐसा विद्यार्थी यहां के सरकारी मेडिकल कालेजों में प्रवेश नहीं ले सकता था जिसके पास राज्य का स्थायी नागरिकता प्रमाणपत्र नहीं होता था।

पिछले साल पांच अगस्त को जब केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 हटा दी तो उसके पास अन्य प्रदेशों के विद्यार्थियाें के लिए भी यहां पर एडमिशन लेने का रास्ता खुल गया। लेकिन इस बार भी जम्मू-कश्मीर ने केंद्रीय पूल में पंद्रह फीसद सीटें नहीं दी। इस कारण अन्य प्रदेशों के विद्यार्थियों को जो उम्मीद बंधी थी कि वे भी यहां पर प्रवेश ले सकते हैं, वे टूट गई। ऐसा ही जम्मू-कश्मीर के विद्यार्थियों के साथ भी हुआ। वे भी अन्य प्रदेशों के सरकारी मेडिकल कालेजों में प्रवेश लेने से वंचित रह गए। जेएंडके बोर्ड आफ प्रोफेशनल एंट्रेस एग्जामिनेशन ने नीट के आधार पर जो मेरिट सूची बनाई है, उसमें सिर्फ जम्मू-कश्मीर के विद्यार्थियों का ही मेरिट बनाया जा रहा है। इस बार बदलाव सिर्फ इतना सा आया है कि पहले केवल स्थायी नागरिकता प्रमाणपत्र वाले ही एमबीबीएस में एडमिशन ले सकते थे लेकिन इस बार डोमिसाइल वाले भी एडमिशन ले सकते हैं।

राजकीय मेडिकल कालेज के एक वरिष्ठ प्रोफेसर के अनुसार केंद्रीय पूल में पंद्रह फीसद सीटें न देने का नुकसान जम्मू-कश्मीर के विद्यार्थियों को ही है। उनका कहना है कि अगर यहां की पंद्रह फीसद सीटों पर देश भर के विद्यार्थी एडमिशन ले भी लेते हैं तो भी डेढ़ सौ के आसपास ही उनकी संख्या होगी। लेकिन इसका लाभ यह है कि यहां के हजारों विद्यार्थियों को अन्य प्रदेशों की पंद्रह फीसद सीटों पर भी एडमिशन का मौका मिल जाता है। कई बार जम्मू-कश्मीर में मेरिट अधिक होने से यहां पर विद्यार्थी एमबीबीएस की सीट से वंचित हो जाते हें लेकिन अगर यहां के विद्यार्थियों को अन्य प्रदेशों के सरकारी मेडिकल कालेजों में सीटें मिलें तो डेढ़ सो से अधिक को मौका मिल सकता है। उनका कहना है कि इस पर सरकार को सोचना चाहिए और जो भ्रम विद्यार्थियों में पैदा किया है, उसे भी दूर किया जाना चाहिए।

एक हजार से अधिक हैं एमबीबीएस की सीटें: जम्मू-कश्मीर में इस समय सरकारी और निजी मेडिकल कालेजों में करीब 1100 एमबीबीएस की सीटें हें। इस साल डोडा मेडिकल कालेज में एमबीबीएस की 100 सीटें बढ़ी है। वहीं राजौरी मेडिकल कालेज में आर्थिक आधार पर कमजोर वर्ग में 15 सीटें बढ़ी हैं। राजौरी, डोडा, कठुआ, अनतंनाग और बारामुला मेडिकल कालेजों में लड़कियों के लिए पचास फीसद सीटें आरक्षित हैं।  


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