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बुलंद हौसलों से सपनों को दी नई उड़ान, दूसरे के लिए बने प्रेरणास्रोत

जम्मू कश्मीर में भी ऐसे कई लोग विशेषकर दिव्यांग हैं जिन्होंने अपने हौंसले से दूसरों के सपनों को नई उड़ान दी।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Mon, 03 Dec 2018 11:37 AM (IST)Updated: Mon, 03 Dec 2018 11:37 AM (IST)
बुलंद हौसलों से सपनों को दी नई उड़ान, दूसरे के लिए बने प्रेरणास्रोत
बुलंद हौसलों से सपनों को दी नई उड़ान, दूसरे के लिए बने प्रेरणास्रोत

जम्मू, राज्य ब्यूरो। कहते हैं कि मन में कुछ करने की तमन्ना हो तो कुछ भी असंभव नहीं है। तूफान के सीने को चीर कर आगे बढ़ने वाले तो हर किसी के लिए मिसाल होते हैं। जम्मू कश्मीर में भी ऐसे कई लोग विशेषकर दिव्यांग हैं जिन्होंने अपने हौंसले से दूसरों के सपनों को नई उड़ान दी।

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कश्मीर के बिजबेहाड़ा के रहने वाले जावेद अहमद साल 1997 में उस समय ग्रेजुएशन कर रहा था, जब आतंकवादियों ने उस पर गोलियां बरसाई थी। इसमें उसके शरीर के कई अंग प्रभावित हुए। वह दो साल तक बिस्तर पर ही रहा। मगर इससे उसके हौंसले और बुलंद हुए। दो-तीन साल के बाद वह बिस्तर से उठकर चल तो नहीं पाया मगर उसने मन में ठाना कि वह ऐसे बच्चों के लिए काम करेगा जो कि दिव्यांग हैं और उनके सपनों को पूरा करेगा।

व्हील चेयर पर बैठक कर ही जावेद ने पहले ग्रेजुएशन की और इसके बाद सोशल वर्क में पोस्ट ग्रेजुएशन की। इसके बाद जावेद ने घर में बच्चों को निशुल्क ट्यूशन पढ़ाना शुरू की। मगर उसमें दिव्यांग नहीं आते थे। जावेद को लगा कि दिव्यांग बच्चों के लिए कुछ करना चाहिए। इस दौरान राज्य सरकार ने उसे 75 हजार रुपये मुआवजा दिया। इससे जावेद ने विशेष बच्चों के लिए स्कूल खोला। इसमें अब कई विशेष बच्चे पए़ रहे हैं। जावेद ने इनकी जिंदगी को बदल दिया है। वह साल 2005 से ही अब ऐसे बच्चों के लिए स्कूल चला रहे हैं। कुछ साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मन की बात में जावेद अहमद की काफी प्रशंसा की थी।

रैना की दास्ता हर किसी को प्रेरित करती है

जम्मू के कोटली शाह दुल्ला के रहने वाले दीपक रैना की दास्तां हर किसी को प्रेरित करती है। दीपक जन्म से ही दिव्यांग है। उसका शरीर 75 प्रतिशत काम नहीं करता। इस कारण परिजन उसे कभी स्कूल भी नहीं भेज पाए। मगर उसका सपना ही कुछ और था। उसने घर बेठकर ही पढ़ना शुरू कर दिया। पहले नेशनल ओपन स्कूल से पढ़ाई की और फिर इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनविर्सटी से पहले ग्रेजुएशन की और इसके बाद पोस्ट ग्रेजुएशन की। जम्मू विश्वविद्यालय से उसने बीएड की। दो साल पहले वह सरकारी शिक्षक बन गया। दीपक घर स्कूटी में स्कूल जाता है और वहां पर व्हील चेयर में बैठक कर विद्यार्थियों को पढ़ाता है। उसे क्रिकेट खेलने का भी शौक है। इस साल दिल्ली में आयोजित हुई इंडियान व्हीलचेयर प्रीमियम लीग में भाग लेने वाला वह राज्य का पहला दिव्यांग खिलाड़ी था। दीपक का कहना है कि उसके लिए सब कुछ आसान नहीं है। शरीर का पचहतर प्रतिशत भाग काम नहीं करता है। मगर उसकी चाहत है कि समाज को वह यह संदेश दे सके कि दिव्यांग भी चाहें तो बहुत कुछ कर सकते हैं। दीपक पांच बहनों का इकलौता भाई है। उसके पिता अमरनाथ रैना और मां सत्यादेवी उसकी पूरी सहायता करते हैं।

दिव्यांगों के लिए संघर्ष कर रही संध्या

दो साल की उम्र में ही सेरिब्रल पैल्सि की शिकार होने वाले श्रीनगर की संध्या धर ने दिव्यांगता को कभी भी आड़े नहीं आने दिया। विद्या भवन नवाकदल से प्राथमिक शिक्षा हासिल करने बाद उनका परिवार जम्मू में आ गया। यहां उसने महिला कालेज गांधीनगर से बीकाम की। उसे कालेज में सर्वश्रेष्ठ छात्रा का पुरस्कार मिला। कुछ साल पहले उसकी वित्त विभाग में एकाउंट असिस्टेंट के पद पर नियुक्ति हुई। वह चल नहीं पाती है मगर व्हील चेयर पर बैठ कर काम करती है। उसका एक हाथ ही सिर्फ काम करता है। उसने गंग्याल में जिगर इंस्टीट्यूट खोला हुआ है जहां पर दिव्यांगों को प्रशिक्षित किया जाता है ताकि वह उन्हें जिंदगी जीने के लिए दूसरों पर निर्भर न होना पड़े। संध्या का कहना है कि दो साल की उम्र में ही सेरेब्रल पैल्सि से पीड़ित होने का दर्द क्या होता है, यह वह उसके परिजन भलीभांति समझते हैं। परिजनों के लिए यह बहुत ही दुखद था मगर उन्होंने इसे चुनौतीपूर्ण लिया। उन्होंने कई प्रतिष्ठित अस्पतालों में इलाज करवाया। नई दिल्ली के आईपीएच अस्पताल में दो साल भर्ती होने के बाद ही काम करने के योग्य बनी। इस समय संध्या जिगर इंस्टीट्यूट की डायरेक्टर, आल इंडिया ब्राह्मण एकता मंच की महासचिव, कश्मीरियों की आही संस्था की संयोजक हैं। उन्हें दिव्यांगों के लिए काम करने के लिए कई संस्थांए और संगठन सम्मानित कर चुके हैं।

नए अध्यादेश से हल होंगी दिव्यांगों की समस्याएं

राज्यपाल सत्यपाल मलिक का कहना है कि जम्मू कश्मीर दिव्यांग अधिकार विधेयक 2018 के हालिया अध्यादेश से दिव्यांगों से संबंधित मुद्दों को अच्छी तरीके से हल किया जा सकेगा। अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस पर अपने संदेश में मलिक ने ने अक्षमता के मुद्दों की बेहतर समझ को बढ़ावा देने और दिव्यागों की गरिमा, अधिकार और कल्याण के समर्थन के लिए इस दिवस को मनाने के उच्च महत्व पर बल दिया। उन्होंने कहा कि नए कानून न केवल दिव्यागों के अधिकारों को बढ़ाएगा बल्कि समाज में उनके सशक्तिकरण और सार्थक समावेश को सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी तंत्र भी प्रदान करेगा। राज्यपाल ने लोगों से एक समावेशी तथा न्यायसंगत माहौल स्थापित करने के लिए जोरदार प्रयास करने का आग्रह किया।


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