स्वास्थ्य क्षेत्र में यूं बदलता गया जम्मू-कश्मीर, 9 मेडिकल कालेज-3 एम्स स्तर के संस्थान वाला बना इकलौता प्रदेश
जम्मू-कश्मीर में स्वास्थ्य के क्षेत्र में पहले निजी अस्पताल नहीं आ रहे थे। आचार्य श्री चंद्र कालेज आफ मेडिकल सांइसेस को छोड़ कर कोई भी बड़ा निजी स्वास्थ्य संस्थान नहीं था। लेकिन पिछले एक दशक से इसमें भी सुधार आया है।
जम्मू, रोहित जंडियाल : राष्ट्रीय स्तर पर कई बार प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं में नंबर एक रह चुके जम्मू-कश्मीर में स्वास्थ्य के क्षेत्र में सात दशक में कई अहम बदलाव आए हैं। बाल मृत्युदर से लेकर अस्पतालों में सुविधाओं तक में सुधार हुआ है। अब हर दूसरे जिले में मेडिकल कालेज खुल गया है। यही नहीं कई निजी अस्पताल भी अब जम्मू-कश्मीर में आ रहे हैं। सबसे बड़ा बदलाव हर परिवार को पांच लाख रुपयों तक का स्वास्थ्य बीमा का लाभ मिलना है।
स्वतंत्रता के बाद देश के अन्य भागों की तरह ही जम्मू-कश्मीर भी स्वास्थ्य सुविधाओं में पिछड़ा हुआ था। हालांकि श्री महाराजा गुलाब सिंह अस्पताल जम्मू में और श्री महाराजा हरि सिंह अस्पताल श्रीनगर में मरीजों को राहत दे रहा था। लेकिन पहला मेडिकल कालेज स्थापित करने में 12 साल लगे और साल 1959 में पहला मेडिकल कालेज श्रीनगर में स्थापित हुआ और कर्नल जीवीएस मूर्ति को इसका पहला प्रिंसिपल बनाया गया।
वर्तमान के एलडी अस्पताल के पास डिस्पेंसरी वाली जगह पर इसे शुरू किया गया। 25 मई 1961 को इसे जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री बख्शी गुलाम माेहम्मद ने इसे कर्णनगर में औपचारिक तौर पर शुरू किया। इसके बाद स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा में जम्मू-कश्मीर लगातार तरक्की करता रहा। साल 1973 में राजकीय मेडिकल कालेज जम्मू भी अस्थायी इमारत में शुरू हुआ। लेकिन पिछले दशक में तेजी के साथ विकास हुआ। कठुआ, डोडा, राजौरी, बारामुला और अनंतनाग में जहां नए मेडिकल कालेज खुले। वहीं इसी वर्ष हंदवाड़ा और ऊधमपुर में भी दो नए मेडिकल कालेज खुलने जा रहे हैं। अब बीस में से नौ जिलों में मेडिकल कालेज हैं। सरकारी स्तर पर जम्मू-कश्मीर में दो सुपर स्पेशलिटी अस्पताल भी हैं।
चार दशक पहले खुला स्किम्स : जम्मू-कश्मीर में चार दशक पहले ही अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की तर्ज पर शेर-ए-कश्मीर इंस्टीटयूट आफ मेडिकल सांइसेस की नींव रखी गई थी। साल 1976 में इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ था और पांच दिसंबर 1982 को इसे आंशिक रूप से मरीजों के लिए खोल दिश्या गया। 19 अगस्त 1983 को विधानसभा में एक अधिनियम से डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया। अब जम्मू-कश्मीर में दो अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान बनाए जा रहे हैं। एक जम्मू के विजयपुर और दूसरा कश्मीर में। जम्मू-कश्मीर इकलौता ऐसा राज्य है जहां पर इस स्तर के तीन संंस्थान होंगे।
हर किसी को स्वास्थ्य बीमा : जम्मू-कश्मीर में पहले कुल सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 0.74 फीसद ही स्वास्थ्य के क्षेत्र में खर्च होता था लेकिन अब इसे भी बढ़ाया गया है। यही नहीं जम्मू-कश्मीर देश का इकलौता ऐसा प्रदेश है जहां पर प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत जन आरोग्य योजना सेहत के तहत सभी लोेगों को पांच साल तक का स्वास्थ्य बीमा मिला हुआ है। इसमें मरीज पचास से अधिक निजी अस्पतालों के अलावा सरकारी अस्पतालों में कैशलेस इलाज की सुविधा ले सकते हैं।
यह हैं सुविधाएं : जम्मू-कश्मीर में अब दो कैंसर संस्थान बनाए जा रहे हैं। श्रीनगर के बाद जम्मू में भी बोन और ज्वाइंट अस्पताल बनाया जा रहा है। यहां पर विशेष यह है कि जम्मू और श्रीनगर दोनों ही जगहों पर सुविधाएं लगभग एक जैसी बनाने की कोशिश होती है।
निजी अस्पताल भी आ रहे आगे : जम्मू-कश्मीर में स्वास्थ्य के क्षेत्र में पहले निजी अस्पताल नहीं आ रहे थे। आचार्य श्री चंद्र कालेज आफ मेडिकल सांइसेस को छोड़ कर कोई भी बड़ा निजी स्वास्थ्य संस्थान नहीं था। लेकिन पिछले एक दशक से इसमें भी सुधार आया है। नारायणा अस्पताल ने श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के साथ मिलकर अस्पताल खोला है। वहीं अमेरिकन आनकालोजी ने भी अपना अस्पताल शुरू किया। अब अपोलो जैसे संस्थान भी यहां पर दस्तक दे रहे हैं। देश के कई प्रतिष्ठित निजी अस्पतालों के डाक्टर यहां पर ओपीडी चला रहे हैं।
स्वास्थ्य मानकों में आगे : जम्मू-कश्मीर में ढाई हजार हजार लोगों पर एक स्वास्थ्य केंद्र है। 1800 लोगों के लिए एक डाक्टर है। आठ सौ लोगों पर अस्पतालों में एक बिस्तर है। जम्मू-कश्मीर स्वास्थ्य के कई मानकों पर देश से आगे है। चाहे नवजात शिशु मृत्यु दर हो या फिर शिशु मृत्यु दर, राष्ट्रीय औसत के मुकाबले जम्मू-कश्मीर में स्थिति बेहतर है।