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Jammu Kashmir: सरकार की 'छाया' में मुस्कुराएंगी बेसहारा जिंदगियां, कोरोना महामारी में अनाथ हुए बच्चों की पहचान शुरू

अनाथ हुए बच्चों और बेसहारा परिवारों को सरकारी मदद में जिंदगी की नई उम्मीद नजर आई है। कुछ परिवार तो ऐसे हैं जो एक-दो हजार रुपये की पेंशन में दो वक्त की रोटी की आस लगाए हैं। उनका कहना है कि उनके लिए एक-एक दिन निकालना मुश्किल हो रहा है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Sat, 05 Jun 2021 08:00 AM (IST)Updated: Sat, 05 Jun 2021 11:42 AM (IST)
Jammu Kashmir: सरकार की 'छाया' में मुस्कुराएंगी बेसहारा जिंदगियां, कोरोना महामारी में अनाथ हुए बच्चों की पहचान शुरू
अगर सरकार की योजनाओं का सही समय पर लाभ न मिला तो आगे की राह बहुत कठिन होगी।

जम्मू, राज्य ब्यूरो : पिछले डेढ़ साल में कोरोना वायरस ने जम्मू कश्मीर में चार हजार से अधिक लोगों के घरों की खुशियां छीन ली हैं। महामारी की दूसरी लहर ने तो ऐसा कहर बरपाया कि सैकड़ों बच्चे अनाथ हो गए। कई बच्चों के सामने सुनहरे भविष्य का सपना तो दूर भरण-पोषण का भी संकट है। मां-पिता की छाया हटने के बाद इन बच्चों की दुनिया वीरान हो गई है। प्रदेश में अब तक करीब 450 बच्चों की पहचान कर ली गई है जो मां या पिता या फिर दोनों को खो चुके हैं। ऐसे और भी सभी बच्चों को संभालने और उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए जम्मू कश्मीर सरकार ने हाथ बढ़ा दिए हैं। केंद्र सरकार भी आगे आ गई है ताकि कोई बच्चा खुद को बेसहारा न समझे।

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प्रदेश सरकार ने ऐसे परिवारों के लिए कुछ दिन पहले ही सक्षम योजना शुरू की है। इसके तहत परिवार में कमाने वाले सदस्य की कोरोना से मौत हो गई है तो उसके घर के बड़े सदस्य और एक बच्चे को एक-एक हजार रुपये प्रति माह पेंशन मिलेगी। इसके अलावा स्कूल जाने वाले बच्चे को बीस हजार रुपये स्कालरशिप और कालेज जाने वाले को चालीस हजार रुपये स्कालरशिप दी जाएगी। केंद्र सरकार ने भी ऐसे परिवारों के लिए अलग से योजनाएं घोषित की हैं।

जम्मू में सबसे अधिक बच्चे चिह्नित: सक्षम योजना की घोषणा के बाद से ही जम्मू-कश्मीर के सभी जिलों में बेसहारा हुए बच्चों की तलाश शुरू हो गई है। अब तक करीब साढ़े चार सौ बच्चों को चिह्नित किया जा चुका है। जम्मू जिले में सबसे अधिक 81 बच्चों की तलाश हो चुकी है। श्रीनगर जिले में अब तक ऐसे 70 बच्चे मिले हैं। इसके अलावा ऊधमपुर में सात, कठुआ में 29, डोडा में 29, किश्तवाड़ में तीन, रामबन में 16, पुंछ में 38, राजौरी में 74 और रियासी में 15 बच्चे मिले हैं, जो बेसहारा हो गए हैं।

सरकारी मदद में नई उम्मीद: अनाथ हुए बच्चों और बेसहारा परिवारों को सरकारी मदद में जिंदगी की नई उम्मीद नजर आई है। कुछ परिवार तो ऐसे हैं, जो एक-दो हजार रुपये की पेंशन में दो वक्त की रोटी की आस लगाए हैं। उनका कहना है कि उनके लिए एक-एक दिन निकालना मुश्किल हो रहा है। पहले तो कुछ लोग मदद के लिए आगे आए, लेकिन अगर सरकार की योजनाओं का सही समय पर लाभ न मिला तो आगे की राह बहुत कठिन होगी।

...तो मदद से संभाल लेंगी बच्चों की जिंदगी: जम्मू के खौड़ के मंजीत सिंह की इसी साल अप्रैल में कोरोना से मौत हो गई। वह इलेक्ट्रिशियन का काम करते थे। घर में कमाने वाला कोई नहीं है। पांच और तीन साल के दो बच्चे हैं। दोनों बच्चे अपनी मां और दादी के साथ रहते हैं। मंजीत की पत्नी जासमीन कौर का कहना है कि सरकार की ओर से बच्चों का बैंक खाता नंबर मांगा गया है, लेकिन उनका बैंक में कोई खाता नहीं है। दो दिनों से कभी आधार कार्ड तो कभी बैंक के लिए चक्कर लगा रही हैं। कमाई का कोई साधन नहीं है। सरकार से कुछ रुपये भी हर महीने मिलें तो बच्चों को पाल लेंगी। दोनों बच्चे स्कूल जाने के योग्य हैं। स्कालरशिप मिलेगी तो बहुत सहायता हो जाएगी।

जल्द मदद की आस: रामबन के परिस्तान के रहने वाले फरीद खान की 21 मई को कोरोना से मौत हो गई थी। वह मजदूरी करते थे। उनके पांच बच्चे हैं। घर में कमाई का अब कोई स्रोत नहीं बचा है। अब पूरा बोझ शमीमा अख्तर पर आ गया है। उनका कहना है कि अगर सरकार जल्द सहायता देगी तो बच्चों को दो वक्त खाना दे सकेंगी।

इनका दर्द भी कम नहीं: डोडा जिले के ठाठरी क्षेत्र के रहने वाले रंजीत कोतवाल की पिछले साल कोरोना से मौत हो गई। घर में कमाने वाले वह अकेले थे। वह सरकारी कर्मचारी थे। उनके तीन बच्चे हैं। बच्चे मां के पास रह रहे हैं। वहीं, डोडा जिले की तहसील काहरा की शमीमा बेगम की इस साल मई में मौत हुई। संक्रमण का पता लगने के तीन दिन बाद ही उसकी मौत हो गई। पति को डिस्क की समस्या है। वह मजदूरी कर अपने चार बच्चों का पालन-पोषण करती थी। अब कमाई का कोई साधन नहीं है।  


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