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जम्‍मू-कश्‍मीर: सौ बसंत देख चुके इस शख्‍स ने कभी 45 किलोमीटर पैदल चल कर किया था मतदान

बसोहली के दूरदराज द्रमण गांव के निवासी 101 वर्षीय मतलबी राम बताते हैं- 1967 में वोट डाला था तब 45 किलोमीटर पैदल चल कर मतदान केंद्र जाकर वोट डाला था दूसरे दिन घर पहुंचे थे।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 20 Mar 2019 09:24 AM (IST)Updated: Wed, 20 Mar 2019 09:24 AM (IST)
जम्‍मू-कश्‍मीर: सौ बसंत देख चुके इस शख्‍स ने कभी 45 किलोमीटर पैदल चल कर किया था मतदान
जम्‍मू-कश्‍मीर: सौ बसंत देख चुके इस शख्‍स ने कभी 45 किलोमीटर पैदल चल कर किया था मतदान

कठुआ, राकेश शर्मा। लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिज्ञों, विभिन्न दलों के कार्यकर्ताओं और युवा मतदाताओं में उत्साह है। वहीं जीवन के सौ बसंत देख चुके बुजुर्ग मतदाता भी लोकतंत्र के इस महापर्व में आहुति डालने के लिए उत्सुक है। भले ही शरीर उन्हें मतदान केंद्र तक खुद पहुंचने में सहयोग न करे, लेकिन अपने परिजनों के साथ मतदान केंद्र में पहुंच कर मत का प्रयोग कर अगली सरकार चुनने में अपना योगदान देने के लिए तैयार हैं। इस तरह के कई चुनाव देख चुके बुजुर्ग के पास काफी अनुभव है।

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चार दशक पहले वाले और अब के चुनाव में काफी अंतर मानते हैं, लेकिन उनमें भी केंद्र में अगली मजबूत, ईमानदार और सभी वर्गों का हित सोचने वाली सरकार बनने की ललक जरूर है। उनमें आने वाले समय और भावी पीढ़ी के भविष्य की उन्हें चिंता है। जागरण ने चुनावी माहौल में उनकी दिल की बात जानने का प्रयास किया।

इसी वर्ष जीवन के सौ साल पूरे कर चुके छन्न रोडिय़ां गांव के बुजुर्ग शिव राम शर्मा, जो अब शरीरिक रूप से काफी कमजोर हो चुके है, लेकिन मतदान जरूर करेंगे। चुनावी अनुभवों को साझा करते हुए शिव राम शर्मा बताते हैं कि अब के चुनाव और पहले के चुनाव काफी बदल गए हैं। उन्होंने सबसे पहले वर्ष 1967 में मतदान किया था। उस समय भी गांव में ही मतदान केंद्र था तब न तो चुनावी शोर होता था और न ही चुनाव प्रचार के लिए पोस्टर। उस समय तो उम्मीदवार गांवों तक नहीं पहुंच पाते थे।

पहले चुनाव में उनके गांव में उम्मीदवार वोट मांगने तक नहीं आया था, बल्कि उम्मीदवार के समर्थक ही बैठक करने पहुंचे थे, उसी ने गांव में चौपाल लगाकर मुखिया लोगोंं को चुनाव मैदान में उतरे उम्मीदवार के बारे में बताया। उम्मीदवार के उसी समर्थक के कहने पर गांव के लगभग सभी लोगों ने वोट डाले।

एक जीप में सवार होकर पहुंचे उम्मीदवार के समर्थक के पास इतना तामझाम नहीं होता था। जितना आज होता है, हालांकि अब की वोट की राजनीति काफी स्वार्थी होती जा रही है। सिर्फ वोट बटोरने तक सीमित होते हैं। उसके बाद पांच साल के बाद वोट मांगने आते हैं। आज का चुनाव पैसों के बल पर जीता जाता है। उनके समय में उम्मीदवार की ईमानदारी, बेदाग छवि एवं उसकी योग्यता को देखा जाता था।

बसोहली के दूरदराज द्रमण गांव के निवासी 101 वर्षीय मतलबी राम इस बार भी चुनाव में मतदान में भाग लेने के लिए उत्साहित है। मतलबी राम बताते हैं कि अब और पहले समय के चुनाव में काफी अंतर है। सबसे पहले उन्होंने 1967 में वोट डाला था, तब उन्हें 45 किलोमीटर पैदल चल कर बसोहली में बनाए गए मतदान केंद्र में जाकर वोट डाला था और दूसरे दिन घर पहुंचे थे। इतनी दूर मतदान केंद्र होने पर कई लोग मतदान करने भी नहीं जाते थे।

अब तो गांव-गांव में ही मतदान केंद्र बन गए हैं। गांवों में सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं था उस समय कोई इतना प्रचार भी नहीं होता था। सिर्फ गांव के या क्षेत्र के मुखिया ही उन्हें उम्मीदवार के बारे में बताते थे,हालांकि उस समय वोट किसे डालना है,ये गांव के मुखिया या स्थानीय मुख्य कार्यकर्ता ही तय कर देते थे। उसके बाद जैसे-जैसे समय बदला चुनाव के तौर तरीके भी बदलने लगे हैं। अब तो उत्सव की तरह चुनाव के दिन माहौल रहता है। चुनाव में कौन उम्मीदवार, उसकी कैसी छवि है, सब जान लेते हैं। अब तो चुनाव के मायने बदलते जा रहे हैं। मशीनों के जरिए मतदान होने लगा है। जिसके चलते मतदान करते समय अपने परिजन की मदद भी लेनी पड़ती है।  


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