Jammu and Kashmir Reorganization Day: लोगों में उम्मीदें हैं, जोश है और देश के साथ आगे बढ़ने की तमन्ना
Jammu and Kashmir Reorganization Day अनुच्छेद 370 व 35 ए के खात्मे और भूस्वामित्व कानून के अमल में आने के बाद सही मायने में अब जम्मू कश्मीर का नवनिर्माण शुरू हुआ है। लोगों में उम्मीदें हैं जोश है और देश के साथ आगे बढ़ने की तमन्ना है।
अजय शर्मा। Jammu and Kashmir Reorganization Day कश्मीर के संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक सत्य और तथ्य यही है कि महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर 1947 को भारत के साथ विलयपत्र पर हस्ताक्षर किया। उस दिन से यह भारत का अभिन्न् अंग बन गया। इस विलयपत्र पर हस्ताक्षर के दौरान न महाराजा ने कोई शर्त रखी थी और न तो भारत सरकार ने कोई आश्वासन ही दिया था। 26 जनवरी 1950 को भारत गणतंत्र हुआ और उसके कुछ समय बाद जम्मू कश्मीर की संविधान सभा ने विलय प्रस्ताव पर मुहर लगा दी। जम्मू कश्मीर के पहले संविधान की प्रस्तावना में भी स्पष्ट तौर पर लिखा गया था कि यह रियासत भारत का अभिन्न अंग है और इसे कभी बदला नहीं जा सकता। 70 वर्ष तक इस एक सत्य को झूठ के पहाड़ के नीचे दबाकर रखा गया और दुष्प्रचार के बूते यहां की आवाम को इस भ्रमजाल में फंसाकर रखा गया कि जम्मू कश्मीर देश के अन्य हिस्सों से अलग है।
इस झूठ को सच साबित करने के दुष्चक्र ने आम नागरिक को बदहाल व्यवस्था और भ्रष्ट तंत्र के गहरे चक्र में उलझा कर रख दिया। रोजगार के अवसर छूटते चले गए और निराश युवा आसानी से अलगाववादियों के बहकावे में फंसते चले गए। इस तरह सत्ता पर काबिज लोगों की महत्वाकांक्षा में आम जन पीछे छूटता चला गया। विकास के दावे बेमानी हो गए। जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन के बाद पहली बार जनभावनाओं की आवाज सुनवाई देने लगी है। बहुत से सुखद बदलाव दिखे और यह सिलसिला अभी भी जारी है।
प्रदेश की आधी से अधिक आबादी युवा है और युवाओं की अपनी अपेक्षाएं हैं। अलगाववाद से किनारा कर रहे युवाओं को मुख्यधारा से जोड़े रखने के लिए बेहतर शिक्षा के साथ रोजगार के अवसर भी चाहिए। उन्हें बेहतर सुविधाएं चाहिएं। सरकारी क्षेत्र में रोजगार के अवसर सीमित हैं और निवेश न आने से निजी क्षेत्र में भी पर्याप्त अवसर पैदा नहीं हो पाए। यही वजह है कि 25 फीसद युवा आबादी रोजगार के अवसर तलाश रही है। शिक्षित युवा रोजगार मांग रहे हैं। जम्मू कश्मीर में 2015 में हुए सर्वे के अनुसार प्रदेश में करीब 90 हजार उच्च शिक्षित युवाओं के पास रोजगार के अवसर नहीं थे।
ऐसे में नया भू स्वामित्व कानून निश्चिततौर पर उद्यमियों और युवाओं के लिए बड़ी उम्मीद लेकर आया है। सियासी दल भले ही इस कानून को भावनाएं भड़काकर उस पर सियासत की रोटियां सेंकने का अवसर मानें लेकिन युवाओं के लिए यह बड़ा अवसर भी है और बेहतरी की उम्मीद भी। औद्योगिक विकास के साथ शिक्षा और स्वास्थ्य ढांचे की मजबूती की आस इस बदलाव ने युवा पीढ़ी को दी है। सात दशक में एक भी निजी विश्वविद्यालय जम्मू कश्मीर में नहीं आ पाया। इसीलिए बेहतर शिक्षा के लिए प्रतिवर्ष 20 हजार से अधिक स्थानीय युवाओं को देश के अन्य राज्यों में जाना पड़ता है। बड़े और मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल न आ पाने के कारण उच्चस्तरीय चिकित्सा सुविधाओं के लिए लोगों को चंडीगढ़, दिल्ली, अमृतसर और देश के अन्य शहरों का रुख करना पड़ता है।
जम्मू और श्रीनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेज को छोड़ दें तो प्रदेश के अधिकतर हिस्से में सामान्य सर्जरी तक की व्यवस्था नहीं हो सकी। नए भूमि अधिकार कानून के बाद अपेक्षा है कि बड़े शिक्षण संस्थान और अस्पताल जम्मू कश्मीर में निवेश करेंगे और युवा पीढ़ी और आमजन के लिए उम्मीदों के नए द्वार खुलेंगे। लाखों परिवार दशकों से जम्मू कश्मीर में रोजगार व मजदूरी के लिए आते हैं पर दशकों यहां बिताने के बाद उनके लिए एक छत का सपना देखना भी संभव नहीं था। अब वह दिल से जम्मू कश्मीर को अपना सकेंगे, यहां बस सकेंगे और इसे अपना कह सकेंगे।
पर्यटन की अपार संभावनाओं के बावजूद अब तक कोई ठोस काम नहीं हुआ। अब केंद्र सरकार प्रदेश में नए तीन धाíमक टूरिस्ट सíकट पर काम कर रही है। इनमें दो कश्मीर और एक जम्मू में हैं। जम्मू में शिवखोड़ी-पुरमंडल और माता शुकराला सíकट और कश्मीर में शंकराचार्य-खीर भवानी और मार्तंड मंदिर के सíकट को विकसित किया जा रहा है। इसके अलावा तीसरे सूफी सíकट का विकास किया जा रहा है। अब निवेश आएगा तो उम्मीद है यहां बड़े रिसोर्ट और होटल खुलेंगे। आधारभूत ढांचा मजबूत होगा। स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के अनगिनत अवसर पैदा होंगे।
[अकादमिक समन्वयक, जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र]