जम्मू कश्मीर पुलिस : अपनी जमीन के रखवाले, जम्मू कश्मीर पुलिस के जांबाज निराले
हाल ही में डिस्कवरी चैनल पर भी पुलिस के विशेष अभियान दल जिसे एसओजी के नाम से जानते हैं के बारे में एक डाक्यू-ड्रामा प्रसारित हुआ है। एसओजी के जवान किसी भी तरह से एसएसजी और एनएसजी के कमांडों से कम नहीं होते।
जम्मू, नवीन नवाज : अकसर पुलिस की छवि को लेकर तरह-तरह धारणाएं होती हैं, लेकिन जम्मू कश्मीर पुलिस के तेवर कुछ अलग ही हैं। कश्मीर को लेकर कट्टरपंथी और आतंक के आका पाकिस्तान के मंसूबोें को विफल करने के लिए जम्मू कश्मीर पुलिस के जवान ही सीना ताने खड़े हैं। पुलिस को मिले कीर्तिचक्र, अशोक चक्र और शौर्य चक्र समेत सैकड़ों वीरता पदक व सम्मान इसकी शौर्यगाथा का प्रमाण हैं जिसके आसपास दुनिया का शायद ही कोई पुलिस संगठन ठहरे। यह देश-दुनिया का एक मात्र ऐसा पुलिस संगठन है जो पाकिस्तान के छेड़े छद्म युद्ध का सीधे मुकाबला कर रहा है।
कानून व्यवस्था हो या प्राकृतिक आपदाओं में राहत कार्य, अपराधियों से निपटना या फिर आतंकरोधी अभियान। हरेक जगह पुलिस के जांबाज अग्रिम मोर्चाें पर नजर आते हैं। 30 वर्षों में हजारों आतंकियों को पुलिस ने मार गिराया है। इनमें कई पाकिस्तानी सेना के नियमित सिपाही और कमांडो भी थे। जम्मू कश्मीर पुलिस ने भी बलिदान का गौरवशाली इतिहास लिखा है। करीब 1700 पुलिस अधिकारी, जवान और एसपीओ वीरगति को प्राप्त हुए हैं।
हाल ही में डिस्कवरी चैनल पर भी पुलिस के विशेष अभियान दल जिसे एसओजी के नाम से जानते हैं, के बारे में एक डाक्यू-ड्रामा प्रसारित हुआ है। एसओजी के जवान किसी भी तरह से एसएसजी और एनएसजी के कमांडों से कम नहीं होते। इसका गठन आतंकियों से निपटने के लिए ही 1994 में हुआ था। इसमें पुलिस के जवान और अधिकारी स्वेच्छा से शामिल होते हैं। यह किसी भी घटना की सूचना मिलते ही पलक झपकते मौके पर पहुंचते हैं। पुलिस का अपना खुफिया तंत्र कई मामलों में केंद्रीय खुफिया एजेंसियों के तंत्र से आगे रहते हैं।
कई बार दुर्दांत आतंकियों को मार गिराने के लिए पुलिस के सिर्फ छह से आठ जवानों व अधिकारियों का दस्ता ठिकाने पर दाखिल होता और बहादुरी की नई कहानी लिखकर बाहर निकलता। आइएसआइ और पाकिस्तानी सेना सबसे अधिक पुलिस से डरती है। पुलिस के जवानों व अधिकारियों को मार गिराने के लिए पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आतंकियों के विशेष दस्ते तक तैयार किए हैं। आतंकवाद के खात्मे में अहम योगदान देने वालों में के राजेंद्रा, एसएम सहाय, फारूक खान, अशकूर वानी, मनोहर सिंह, मुनीर खान, इम्तियाज हुसैन मीर, डा. हसीब मुगल, अल्ताफ खान, मुस्तफा आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। आइएसआइ ने जम्मू कश्मीर पुलिस के अधिकारी अशकूर वानी पर किताब भी निकाली थी।
डीजीपी का पद 1982 में सृजित हुआ, पीर गुलाम को पहला प्रभार : कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालने के साथ पाकिस्तान के छद्मम युद्ध का भी मुकाबला करने वाली पुलिस 1873 में अस्तित्व में आई। उस समय एक कोतवाल और 14 थानेदार थे जो चौकीदारों और हरकारों की मदद से कानून व्यवस्था संभालते थे। इसके बाद इंपीरियल पुलिस (आइपी) अधिकारी ब्राडवे ने जून 1973 में बतौर महानिरीक्षक जम्मू कश्मीर पुलिस की कमान संभाली। 1947 तक 11 आइपी अधिकारियों में सिर्फ कर्नल गंधर्व सिंह आइपी अधिकारी थे जिन्होंने 1927 से 1931 तक प्रदेश पुलिस की कमान संभाली। आजादी के बाद पृथीनंदन सिंह पुलिस प्रमुख बने थे। पुलिस महानिदेशक का पद 1982 में सृजित हुआ। पीर गुलाम हसन शाह पहले महानिदेशक बने। मौजूदा महानिदेशक दिलबाग सिंह पुलिस की कमान संभालने वाले 15वें महानिदेशक हैं।1948 के दौरान पुलिस में जवानों व अधिकारियों की संख्या साढ़े तीन हजार थी। इस समय एक लाख है। पुलिस के एक दर्जन विंग हैं जो कईं जिम्मेदारियां संभाल रहे हैं। प्रदेश में थानों की संख्या 190 है।
जवानों ने जो सीखा है,अपने अनुभव से सीखा है : रक्षा मामलों के विशेषज्ञ डा. अजय चुरंगु ने कहा कि निस्संदेह अगर आज जम्मू कश्मीर भारतीय गणराज्य का एक अटूट हिस्सा है तो उसमें जम्मू कश्मीर पुलिस की भूमिका सबसे अहम है। पुलिस ने बीते 30 सालोें में जिस तरह से आतंकवाद का मुकाबला किया है, वह दुनियाभर के सैन्य, खुफिया और पुलिस संगठनों के एक केस स्टडी है। पुलिस ने जो सीखा है,अपने अनुभव से सीखा है,अपने जवानों की वीरता और बलिदान से सीखा है। इसलिए कहते हैं कि जम्मू कश्मीर पुलिस के जांबाज निराले।
दुनिया की सबसे पेशेवर पुलिस : जम्मू कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ और इतिहासकार प्रो. हरि ओम ने कहा कि जम्मू कश्मीर पुलिस में जिहादी संगठनोें ने हर मौके पर सेंध लगाने का प्रयास किया है, लेकिन नाकाम रहे हैं। जम्मू कश्मीर पुलिस सिर्फ भारत की नहीं बल्कि पूरी दुनिया की सबसे पेशेवर पुलिस में एक ही कही जाएगी।