Militancy In Kashmir: सूफीवाद से आतंकवाद को खत्म करने में निकली युवाओं की टोली
Militancy in Kashmir जेकेवाईडीएफ के अध्यक्ष फारूक अहमद डार ने दैनिक जागरण के साथ बातचीत में कहा कि कश्मीर को सूफी-संतों पीरों-दरवेशों का घर कहा जाता है। यहां आपको हर जगह सूफी जियारतगाह मिलेंगी। लेकिन आज यहां इस्लाम की अन्य विचारधाराएं भी अपनी जड़ें मजबूत बना चुकी हैं।
श्रीनगर, नवीन नवाज : इंसानियत की बेहतरी के लिए काम करना ही इस्लाम है। कश्मीर में इस्लाम का नाम लें तो सूफी इस्लाम ही दिमाग में आता है, लेेकिन कट्टरवादी और धर्मांध जिहादी तत्वों ने कश्मीर में इसे बहुत नुकसान पहुंचाया, जिसके बाद तबाही का दौर शुरू हुआ। इस सच्चाई को अवगत कराने और सूफी इस्लाम को फिर से मजबूत बनानेे के लिए कश्मीर में एक नई मुहिम खड़ी हो रही है। इस मुहिम को कोई बुजुर्ग इस्लामिक विद्वान और बुजुर्ग उलेमा नहीं चला रहे हैं बल्कि आतंकवाद के दौर में पैदा और बड़े हुए कश्मीरी नौजवान चला रहे हैं। मुहिम का एलान गांदरबल में पांच मार्च शुक्रवार को होगा। इस मुहिम का मकसद आतंकवाद को जड़ से खत्म करना और विशेषकर युवाओं को हिंसा और इंसानियत का पाठ पढ़ाना है।
जम्मू कश्मीर यूथ डेवलेपमेंट फोरम (जेकेवाईडीएफ) ने कश्मीर में सूफीवाद को फिर से मजबूत बनाने का बीड़ा उठाया है। जेकेवाईडीएफ ने वादी के हर शहर, गांव और गली-मोहल्ले में अलग-अलग मजलिस, सेमीनार और बैठकों के आयोजन का एक रोडमैप तैयार किया है। वादी के विभिन्न स्कूलों और कालेजों में भी सूफीवाद को लेकर सेमीनार और संगोठियां होंगी। जहां भी कोई मजलिस होगी, वहां के स्थानीय उलेमाओं, मौलवियों और नौजवानों को मंच पर अपनी बात कहने का पूरा मौका मिलेगा। अगर किसी के मन में कोई शंका होगी तो उसका समाधान भी होगा।
सद्भाव और इंसानियत सिखाता है सूफीवाद : जेकेवाईडीएफ के अध्यक्ष फारूक अहमद डार ने दैनिक जागरण के साथ बातचीत में कहा कि कश्मीर को सूफी-संतों, पीरों-दरवेशों का घर कहा जाता है। यहां आपको हर जगह सूफी जियारतगाह मिलेंगी। लेकिन आज यहां इस्लाम की अन्य विचारधाराएं भी अपनी जड़ें मजबूत बना चुकी हैं। जब आपके मन में यह विचार आ जाए कि आप सबसे बेहतर हैं तो आप दूसरों को अपने से नीच मानने लगते हैं। कट्टरपंथी विचारधारा हमारे अंदर यही मानसिकता पैदा करती है और अंतत: वह हमें हिंसा की तरफ ले जाती है। सूफीवाद ऐसा नहीं करता, वह सभी के साथ सद्भाव सिखाता है, दूसरों को साथ लेकर चलना सिखाता है, इंसानियत सिखाता है।
कट्टरपंथी विचारधारा से पहुंचा नुकसान : डार ने कहा कि आज पूरी दुनिया में अगर इस्लाम और मुस्लिमों को दहशतगर्दी के साथ जोड़कर देखा जा रहा है तो इस्लाम की गलत व्याख्या के आधार पर फैली कट्टरपंथी विचारधारा के कारण। आतंकी हिंसा का इतिहास अगर अच्छी तरह से समझा जाए तो आपको पता चलेगा कि यहां सूफीवाद के कमजोर होनेे के साथ कट्टरपंथी ताकतें और आतंकवाद ने अपनी जड़ें मजबूत की हैं। आज भी यहां कई नौजवानों को इस्लाम के नाम पर हिंसा के लिए भड़काया जाता है और कई युवक गुमराह होकर आतंकी बन जाते हैं।
सूफीवाद मजबूत होगा तो आतंकवाद जड़ से खत्म होगा : फारूक अहमद डार ने कहा कि अगर कश्मीर को फिर से खुशहाल बनाना है, कश्मीरी नौजवानों को मौत और तबाही से बचाना है तो हमें कश्मीर में सूफीवाद को मजबूत बनाना है। इसी मकसद के साथ हमने यहां एक मुहिम चलाई है। हम कश्मीर के हर शहर, गली-मोहल्ले, स्कूलों और कालेजों में भी जाएंगे। हम जगह-जगह सेमीनार आयोजित करेंगे। हमारे साथ कश्मीर में सूफीवाद की परंपरा और इस्लाम के जानकार हैं। इनमें वरिष्ठ लेखक अब्दुल रशीद राहिल, कश्मीर के जाने माने समाजसेवी डा. खुर्शीद, कश्मीर के नामवर सूफी शायर और शिया नेता नजीर अहमद रिजवी, लेखक गुलाम मोहम्मद शाहीन और प्रो. सन्नाउल्लाह बट जैसी शख्सियतें हैं। इसके अलावा जहां भी हम सेमीनार आयोजित करेंगे, वहां के उलेमा और मजहबी नेता भी लोगों को इस्लाम व सूफीवाद के बार में समझाएंगे। सूफीवाद के मजबूत होने के साथ ही कश्मीर में आतंकवाद जड़ से समाप्त होगा।
कश्मीर का नौजवान कट्टरपंथी या पत्थरबाज नहीं : कश्मीर के वरिष्ठ लेखक अब्दुल रशीद राहिल ने कहा कि आज लोग जिस कश्मीरियत की बात करते हैं, वह सूफीवाद ही है। सूफीवाद हमें मिलकर रहना सिखाता है, एक दूसरे के खुशियां-गम बांटना सिखाता है। यह हिंसा नहीं अहिंसा और प्रेम सिखाता है। सभी लोग यह मानकर चलते हैं कि कश्मीर का नौजवान कट्टरपंथी है, पत्थरबाज है, लेकिन ऐसा नहीं है। कश्मीरी नौजवान बहुत ही समझदार है और वह इस्लाम के आदर्शाें पर चलने वाला है, यही कारण है कि आज यहां के नौजवान सूफीवाद के लिए आंदोलन चला रहे हैं। मैं इन नौजवानों के साथ जुड़कर बहुत खुश हूं। खुदा, इन्हें इनके मकसद में कामयाब करे।