जम्मू-कश्मीर में आतंकियों-अलगाववादियों, देशविरोधी तत्वों पर अब पीएसए नहीं, यूएपीए की नकेल
अधिकारी ने बताया कि पीएसए के तहत किसी भी व्यक्ति को अगर बंदी बनाया गया है तो उसे दोबारा बंदी बनाने के लिए कानूनी प्रक्रिया को दोबारा पूरा करना पड़ता है। इसके अलावा अदालत में इसे चुनौती भी आसानी से दी जा सकती है। इसके विपरीत यूएपीए ज्यादा सख्त है।
श्रीनगर, राज्य ब्यूरो : जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रविरोधी तत्वों, आतंकियों और अलगाववादियों पर पूरी तरह नकेल कसने के लिए प्रदेश प्रशासन अब जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के बजाय गैर कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत कार्रवाई कर रहा है। पांच अगस्त, 2019 के बाद जम्मू कश्मीर में पीएसए के तहत बंदी बनाए जाने के मामले लगातार घटे हैं, जबकि यूएपीए के तहत दर्ज मामलों की संख्या बढ़ी है। अब तक करीब 2364 लोगों पर यूएपीए के तहत मामले दर्ज किए गए हैं। इसके तहत बंदी बनाए गए 2350 में से करीब 1110 आज भी जेल में हैं। वहीं, पांच अगस्त 2019 से पांच अगस्त 2021 तक पीएसए के तहत बंदी बनाए गए करीब 954 में से लगभग 282 ही जेलों में बंद हैं।
राज्य पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पांच अगस्त, 2019 के बाद जम्मू कश्मीर में आतंकी, अलगाववादी, हवाला व इससे संबंधित मामलों में पकड़े गए अधिकांश आरोपितों को यूएपीए के तहत ही बंदी बनाया गया था। वर्ष 2019 में यूएपीए के तहत दर्ज मामलों में 918 आरोपितों को पकड़ा गया। वर्ष 2020 में यूएपीए के तहत दर्ज 557 मामलों में 953 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इस वर्ष जुलाई के अंत तक प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में पुलिस ने 493 लोगों को यूएपीए के तहत दर्ज 275 मामलों में पकड़ा है। एडवोकेट राजेंद्र जंवाल ने कहा कि बीते तीन वर्षों में पुलिस अब राष्ट्रविरोधी और अलगाववादी तत्वों के खिलाफ अपनी नीतियों में बदलाव ला रही है। यह पीएसए से ज्यादा कठोर है। इसमें आपको किसी व्यक्ति को बंदी बनाए रखने के लिए बार बार कानूनी प्रक्रियाओं से नहीं गुजरना पड़ता। आसानी से अदालत में आरोपित जमानत हासिल नहीं कर पाता।
जम्मू की अपेक्षा कश्मीर में अधिक मामले दर्ज: अधिकारी ने बताया कि यूएपीए के तहत दर्ज मामलों की संख्या जम्मू की अपेक्षा कश्मीर में ज्यादा है। इस साल अब तक जम्मू संभाग में सिर्फ 26 मामले दर्ज किए गए हैं, जबकि कश्मीर में यूएपीए के तहत 249 मामले दर्ज किए गए हैं। यूएपीए के तहत पकड़े गए 2364 लोगों में से करीब 1110 जेलों में बंद हैं। अधिकारी ने बताया कि पीएसए के तहत वर्ष 2019 में 699, वर्ष 2020 में 160 और 2021 में 31 जुलाई तक लगभग 95 लोगों को बंदी बनाया गया है। पांच अगस्त 2019 के बाद इसी कानून के तहत ही पूर्व मुख्यमंत्री डा. फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को भी बंदी बनाया गया था।
शेख अब्दुल्ला ने लागू किया था पीएसए: जन सुरक्षा अधिनियम को जम्मू कश्मीर में तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. शेख अब्दुल्ला ने 1978 में लागू किया था। इसके बाद इसमें 1987, 1990, 2012 और अगस्त 2018 में संशोधन किया गया। इस कानून व्यवस्था के लिए खतरा पैदा करने वाले को तीन माह से एक वर्ष तक, देश की एकता व अखंडता के लिए घातक व्यक्ति को छह माह से दो साल तक और वनों के अवैध कटान पर इमारती लकड़ी की तस्करी में लिप्त व्यक्ति को 12 माह तक बंदी बनाए जाने का प्रविधान है। इसके लिए संबंधित जिला उपायुक्त या मंडलायुकत ही आदेश जारी करता है।
पीएसए की तुलना में यूएपीए अधिक सख्त: अधिकारी ने बताया कि पीएसए के तहत किसी भी व्यक्ति को अगर बंदी बनाया गया है तो उसे दोबारा बंदी बनाने के लिए कानूनी प्रक्रिया को दोबारा पूरा करना पड़ता है। इसके अलावा अदालत में इसे चुनौती भी आसानी से दी जा सकती है। इसके विपरीत यूएपीए ज्यादा सख्त है। इस कानून का मुख्य काम आतंकी गतिविधियों को रोकना होता है। इस कानून के तहत पुलिस ऐसे आतंकियों, अपराधियों या अन्य लोगों को चिह्नति करती है, जो आतंकी गतिविधियों में शामिल होते हैं, इसके लिए लोगों को तैयार करते हैं या फिर ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं। इस मामले में एनआइए के पास काफी शक्तियां होती है। इस कानून के तहत पुलिस को 30 दिन की कस्टडी मिल सकती है। न्यायिक हिरासत 90 दिन की भी हो सकती है। अग्रिम जमानत भी नहीं मिलती।