Jammu Kashmir: IFS अधिकारी मुफ्ती लद्दाख स्थानांतरित, वर्ष 2014 में दिया था नौकरी से इस्तीफा, जानिए क्या है मामला!
वर्ष 1990 में जम्मू कश्मीर वन विभाग में बतौर रेंजर सरकारी नौकरी शुरु करने वाले सज्जाद हुसैन को जम्मू कश्मीर सेवाओं के कोटे से वन विभाग में आईएफएस कैडर प्रदान किया गया।
श्रीनगर, नवीन नवाज। सरकारी सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृृत्ति प्राप्त करने के बाद राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने वाला क्या नौकरशाह दोबारा नौकरी पर जा सकता है? आप कहेंगे नहीं, लेकिन केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में ऐसा होता है। प्रदेश प्रशासन ने केंद्र शासित लद्दाख में सज्जाद हुसैन मुफ्ती को स्थानांतरित किया है। आइएफएस कैडर के नौकरशाह सज्जाद ने वर्ष 2014 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी। वह पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय मुफ्ती मोहम्मद सईद के भतीजे और पूर्व मुख्यमंत्री व पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्षा महबूबा मुफ्ती के चचेरे भाई हैं।
केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर प्रदेश महाप्रशासनिक विभाग में अतिरिक्त सचिव चरणदीप सिंह ने उपराज्यपाल जीसी मुर्मू के निर्देशानुसार एक आदेश जारी किया है। इसमें कहा गया है कि सज्जाद हुसैन मुफ्ती, आइएफएस (जेके:2008), जो इस समय मुख्य वन संरक्षक जम्मू के कार्यालय में अटैच हैं, कि सेवाएं तत्काल प्रभाव से अगले आदेश तक या फिर केंद्र सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 की धारा 88(4) के तहत अंतिम आवंटन किए जाने तक केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के अधीन की जाती हैं।
पीडीपी-भाजपा सरकार बनने के बाद दिया था इस्तीफा: वर्ष 1990 में जम्मू कश्मीर वन विभागमें बतौर रेंजर सरकारी नौकरी शुरू करने वाले सज्जाद हुसैन को जम्मू-कश्मीर सेवाओं के कोटे से वन विभाग में आइएफएस कैडर प्रदान किया गया। वर्ष 2014 में जब पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और भाजपा ने स्वर्गीय मुफ्ती मोहम्मद सईद के नेतृत्व में सांझा सरकार बनायी थी तो सज्जाद हुसैन ने नाकरी से स्वैच्छिक त्यागपत्र दे दिया था। वह पीपुल्स डेमाक्रेटिक पार्टी में पूरी तरह सक्रिय हो गए। उन्हें अनंतनाग में पीडीपी का संयोजक बनाया गया। उस समय उनकी नियुक्ति को लेकर पीडीपी के नेताओं व कार्यकर्ताओं में रोष पैदा हो गया था। मुफ्ती सईद के निधन के बाद जब महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री बनी तो सज्जाद हुसैन को एमएलसी व मंत्री बनाए जाने की चर्चा भी खूब हुई थी। दक्षिण कश्मीर में पीडीपी के कार्यकर्ता जहां सज्जाद मुफ्ती पर सिर्फ परिवारवाद को बढ़ावा देने के आरोप लगाते थे तो वहीं प्रशासनिक अधिकारी उन पर अनावश्यक रूप से प्रशासनिक कार्यों में हस्तक्षेप का आरोप लगाते थे। सज्जाद कई बार राजनीतिक प्राथमिकताओं के आधार पर स्थानीय प्रशासनिक कार्यों को अमलीजामा पहनाए जाने का प्रयास करते थे। इस बारे में कई बार तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को भी शिकायत की गई थी।
चार साल के दौरान इस्तीफे पर नहीं हुई कोई कार्रवाई: प्रदेश प्रशासन से जुड़े़ उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो सज्जाद हुसैन मुफ्ती ने बेशक इस्तीफा दिया था, लेकिन किन्हीं कारणों से न उनका इस्तीफा स्वीकार किया गया और न खारिज। अलबत्ता 15 अक्तूृबर 2015 को मुख्य वन संरक्षक, जम्मू कार्यालय में उन्हें अटैच कर दिया गया। वह राजनीति में सक्रिय होने के बावजूद निरंतर इस दौरान अपनी तनख्वाह व अन्य भत्ते प्राप्त करते रहे हैं। उन्होंने महबूबा मुफ्ती द्वारा एमएलसी न बनाए जाने पर वर्ष 2017 पर अपना इस्तीफा वापस ले लिया, लेकिन नौकरी पर रिपोर्ट नहीं किया। वर्ष 2018 में जब पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार भंग हुई तो उन्होंने ड्यूटी पर रिपोर्ट किया। सज्जाद हुसैन मुफ्ती पर बीते साल बीजबेहाड़ा में 19 जुलाई काे आतंकी हमला भी हुआ था। वह मस्जिद में नमाज पढ़ने गए थे। जब बाहर निकलने लगे तो आतंकियों ने उन पर गोलियां चलाई जिसमें वह तो बाल-बाल बच गए परंतु उनका एक अंगरक्षक फारुक अहमद शहीद हो गया था।
सत्ता का लाभ उठाने के लिए पार्टी में हुए थे शामिल: पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने अपना नाम न छापे जाने की शर्त पर कहा कि सज्जाद हुसैन जैसे लोगों के कारण ही हमारी तंजीम की यह हालत हुई है। यह लोग सिर्फ सत्ता का लाभ लेने के लिए संगठन में शामिल हुए। जब लगा कि यहां कुछ नहीं मिलने वाला तो वापस नौकरशाही की तरफ मुढ़ गए। आज सज्जाद हुसैन कह सकते हैं कि उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया था, लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कई बार कहा है कि सज्जाद हुसैन ने लोगों के लिए पीडीपी के लिए सरकारी नौकरी छोड़ दी। सज्जाद हुसैन मुफ्ती के भाषण लोगों ने खूब सुने होंगे। वह उनमें क्या बोलते थे यह भी सभी को पता हैं। इस संदर्भ जब सज्जाद हुसैन मुफ्ती से संपर्क करने का प्रयास किया गया तो वह उपलब्ध नहीं हो पाए।