जम्मू-कश्मीर : कॉलेज खोलें पर शिक्षक और भवन भी तो दें महामहिम
राज्यपाल प्रशासन जम्मू कश्मीर में डिग्री कॉलेजों की संख्या बढ़ाने की कवायद में जुटा हुआ है लेकिन अहम सवाल यही है कि क्या इन नए कॉलेजों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जा सकेगी।
जम्मू, राज्य ब्यूरो। राज्यपाल प्रशासन जम्मू कश्मीर में डिग्री कॉलेजों की संख्या बढ़ाने की कवायद में जुटा हुआ है लेकिन अहम सवाल यही है कि क्या इन नए कॉलेजों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जा सकेगी। जो नए कॉलेज खुल रहे हैं, उनके लिए इमारत और पर्याप्त स्टॉफ होना बेहद जरूरी है, जो फिलहाल पूरा होता नहीं नजर आ रहा है।
राज्यपाल प्रशासन ने 52 डिग्री कॉलेजों के बाद 50 नए कॉलेज खोलने को मंजूरी दे दी है। इससे उच्च शिक्षा घर-घर तक तो पहुंचाने में मदद तो मिलेगी लेकिन बुनियादी ढांचा व गुणवत्ता लाना किसी चुनौती से कम नहीं होगा। जितने कालेज जम्मू कश्मीर में पिछले पचास साल में नहीं खुल पाए है उतने कालेज खोलने का फैसला राज्यपाल प्रशासन ने मात्र छह महीने में ले लिया है। इस अकादमिक सत्र से 52 नए कालेजों में पढ़ाई शुरु होने जा रहा है। इनकी कक्षाएं किराए इमारतों, नजदीकी हायर सेकेंडरी स्कूलों, पंचायत घरों में लगने जा रही है। करीब आठ वर्ष पहले खोले गए कालेजों की इमारतें भी तैयार नहीं हुई है।
करीब बीस ऐसे डिग्री कालेज है जो पिछले पांच से आठ वर्ष से हायर सेकेंडरी स्कूलों या किराए की इमारतों में चल रहे है। राज्य में पचास से अधिक कालेज है जो नेशनल एक्रीडेशन एंड असेसमेंट काउंसिल (नैक) से मान्यता प्राप्त नहीं है। पिछले दो महीनों से उच्च शिक्षा विभाग जोर देकर कह रहा है कि सभी कालेजों को नैक से मान्यता हासिल करनी चाहिए। नैक शिक्षा की गुणवत्ता को परखने वाली यूजीसी की स्वायत्त बाडी है। इतना ही नहीं पहले से स्थापित कालेजों में पिछले पांच सालों से कोई नया कोर्स शुरु नहीं हो पाया है। पहले से स्थापित प्रमुख कालेजों की बात करें तो पता चलता है कि साइंस कालेज, मौलाना आजाद मेमोरियल कालेज, कामर्स कालेज, महिला कालेज गांधी नगर में कोई नया कोर्स शुरु नहीं हो पाया है।
हालांकि उच्च शिक्षा विभाग ने पिछले वर्ष बिना जमीनी सतह के काम करने के नए कोर्सों का लम्बा चौड़ा दस्तावेज बनाया था। हैरानगी की बात यह है कि कोर्सों के लिए कोई बुनियादी ढांचा उपलब्ध नहीं करवाया गया और न ही कोर्सों का पाठ्यक्रम तैयार किया गया।फैक्लटी का कोई अता पता नहीं था। इस तरह से उच्च शिक्षा में क्या गुणवत्ता आ पाएगी, यह एक सवाल खड़ा हो गया है। राज्यपाल शासन के बाद क्या नई सरकार इन कालेजों को चला पाएगी। इनके लिए धनराशि जारी होगी या इनकी हालत भी पांच छह साल पहले खोले गए कालेजों जैसी हो जाएगी। कई कालेजों में तो अभी तक आटर्स विषय इसलिए चल रहे है क्योंकि साइंस के लिए लैब ही नहीं है।
हालांकि हर क्षेत्र को कवर करने का राज्यपाल प्रशासन का फैसला सही है लेकिन घर घर उच्च शिक्षा को पहुंचाने के लिए एक व्यापक नीति पर काम करना होगा ताकि हर कालेज के पास पर्याप्त बुनियादी ढांचा, फैक्लटी हो। अभी भी तो हर वर्ष अकादमिक प्रबंधन पर एक हजार के करीब कांट्रेंक्ट नियुक्तियां होती है। यह कहना गलत नहीं होगा कि उच्च शिक्षा के लिए एक व्यापक नीति बनाना समय की जरूरत है।
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