Jammu Kashmir: मुर्मू ने बनाई राह, अब सिन्हा करेंगे नए जम्मू कश्मीर की तामीर
जीसी मुर्मू ने अपने नौ माह के कार्यकाल में जम्मू कश्मीर में प्रशासनिक तंत्र में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व की भावना को बढ़ाने का निरंतर प्रयास किया।
श्रीनगर, नवीन नवाज: पांच अगस्त, 2019 को जिस तरह अनुच्छेद 370 हटने से सभी हैरान रह गए थे, ठीक उसी तरह एक साल बाद पांच अगस्त को ही केंद्र शासित जम्मू कश्मीर प्रदेश के पहले उपराज्यपाल जीसी मुर्मू ने अपने पद से इस्तीफा देकर सभी को अचरज में डाल दिया। स्थानीय हल्कों में बहुत पहले से प्रदेश के प्रशासनिक तंत्र में बड़े फेरबदल की चर्चा थी, लेकिन यह सब पांच अगस्त के जश्न के बीच होगा, किसी को उम्मीद नहीं थी।
खालिस नौकरशाह जीसी मुर्मू ने जम्मू कश्मीर में अपने करीब नौ माह के छोटे से कार्यकाल में प्रशासनिक तंत्र को चुस्त-दुरुस्त बनाने के साथ विकास को गति देने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन उनके कार्यकाल के दौरान जम्मू कश्मीर के राजनीतिक-प्रशासनिक परिवेश में सामंजस्य न बैठा पाना उनके इस्तीफे का कारण माना जा रहा है, जिसका संकेत पूर्व केंद्रीय रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा को उनके स्थान पर जम्मू कश्मीर की कमान सौंपने से भी मिलता है। जानकारों का मानना है कि मुर्मू ने प्रशासनिक गतिविधियों को धार देकर राह बना दी है अब सिन्हा को उसपर चलकर नए जम्मू कश्मीर की तामीर करनी है।
31 अक्टूबर 2019 को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में देश के नक्शे पर उभरे जम्मू कश्मीर की प्रशासनिक बागडोर संभालना और सभी वर्गों को साथ लेकर चलना अत्यंत चुनौतिपूर्ण था। 1985 बैच के गुजरात कैडर के आइएएस जीसी मुर्मू ने अपने नौ माह के कार्यकाल में जम्मू कश्मीर में प्रशासनिक तंत्र में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व की भावना को बढ़ाने का निरंतर प्रयास किया। उन्होंने पंचायतों व नगर निकायों को लालफीताशाही के चंगुल से मुक्त करा उन्हेंं हर तरीके से मजबूत बनाने की राह में खड़ी रुकावटों को दूर करने का प्रयास किया, जिसमें वह कामयाब भी रहे।
सुरक्षा के मुद्दे पर भी वह कहीं भी भी ढुलमुल रवैया अपनाते नजर नहीं आए। इसके बावजूद उनका सियासी पृष्ठभूमि का न होना उनके लिए कहीं न कहीं मुश्किल पैदा करता रहा। हालांकि उनके कार्यकाल में जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी समेत एक दो नए दलों का गठन भी हुआ, लेकिन राजनीतिक गतिविधियों की पूरी तरह बहाली नहीं हो पाई। इसके बावजूद उन्होंने बीते दिनों जम्मू कश्मीर में जारी परिसीमन की प्रक्रिया और विधानसभा चुनाव जल्द होने की बात कही। इस पर केंद्रीय गृह मंत्रालय के अलावा चुनाव आयोग ने भी उनके प्रति अपनी नाराजगी जताई। इसके अलावा उनका जम्मू कश्मीर में 4जी इंटरनेट सेवा बहाली का समर्थन करना भी गृह मंत्रालय को नागवार गुजरा था। जम्मू कश्मीर की नौकरशाही जो किसी न किसी तरीके से राजनीतिक व्यवस्था का हिस्सा रही है, ऐसे में उनके साथ भी उनकी पटरी पूरी तरह नहीं बैठ रही थी।
जीसी मुर्मू से जुड़े प्रदेश के एक पूर्व नौकरशाह के मुताबिक, वह हर मुद्दे को नौकरशाही और तय नियमों के मुताबिक हल करना चाहते थे, जो हमेशा ही कारगर या व्यवहारिक नहीं रहता। इसके अलावा उनके साथ प्रदेश में अहम पदों पर बैठे कुछ लोग भी पुराने नौकरशाह हैं और जीसी मुर्मू से वरिष्ठ रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री के करीबी मुख्य सचिव बीवीआर सुब्रह्मण्यम के साथ उनकी न जमने की खबरें भी अक्सर आती रही हैं।
इसलिए मनोज सिन्हा के नाम पर लगाई गई मुहर : कश्मीर मामलों के जानकार रशीद राही ने कहा कि जम्मू कश्मीर एक सियासी मसला भी है, इसलिए यहां सियासी सूझबूझ वाले मंझे हुए सियासतदान की जरूरत है। पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक सियासी आदमी थे। नौकरशाह जीसी मुर्मू बेशक बहुत सादे और सरल हैं, लेकिन मनोज सिन्हा सियासतदान हैं। इसलिए केंद्र ने उन्हेंं जम्मू कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया की बहाली, चुनावी सियासत शुरू कराने के लिए ही उपराज्यपाल बनाने पर मुहर लगाई है।