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Jammu Kashmir: स्कूलों में बच्चों को जिहादी और तालिबानी बना रहे थे अनंतनाग के चार अध्यापक

दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले के चार सरकारी अध्यापक स्कूलों में शिक्षा की अलख जगाने के बजाए बच्चों को जिहादी और तालिबानी बना रहे थे। सुरक्षा एजेंसियों की इनपर नजर थी और बीते सप्ताह ही प्रशासन ने इन्हें सेवामुक्त किया है।

By Vikas AbrolEdited By: Published: Sun, 18 Jul 2021 07:27 AM (IST)Updated: Sun, 18 Jul 2021 10:34 AM (IST)
Jammu Kashmir: स्कूलों में बच्चों को जिहादी और तालिबानी बना रहे थे अनंतनाग के चार अध्यापक
यह कश्मीर के बच्चों को जिहादी और तालिबानी बनाकर मौत के रास्ते पर धकेलते हैं।

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो : दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले के चार सरकारी अध्यापक स्कूलों में शिक्षा की अलख जगाने के बजाए बच्चों को जिहादी और तालिबानी बना रहे थे। सुरक्षा एजेंसियों की इनपर नजर थी और बीते सप्ताह ही प्रशासन ने इन्हें सेवामुक्त किया है। इससे लोगों ने राहत की सांस लेते हुए कहा कि यह काम पहले हुआ होता तो आज दक्षिण कश्मीर आतंकवाद का गढ़ नहीं होता। इन चारों पर कार्रवाई के बाद राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में लिप्त शिक्षा विभाग में कार्यरत उन जैसे अन्य तत्वों पर भी गाज गिर सकती है।

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जम्मू कश्मीर प्रशासन ने सरकारी विभागों में बैठे आतंकी समर्थकों की सेवाएं समाप्त करने का अभियान चला रखा है। बीते तीन माह के दौरान करीब 17 लोगों को सरकारी सेवा से बाहर किया जा चुका है। बीते सप्ताह 11 लोगों को निकाला गया है, जिनमें दक्षिण कश्मीर में जिला अनंतनाग से संबंधित चार अध्यापक भी हैं।

निसार तांत्रे :

सूत्रों ने बताया कि अनंतनाग के हांजी मोहल्ला, बटेंगू में सरकारी मिडिल स्कूल में 1990 में बतौर अध्यापक तैनात अब्दुल तांत्रे हिजबुल मुजाहिदीन का तत्कालीन जिला कमांडर था। उसने अॢजत अवकाश पर जाने का फैसला किया और अपने छोटे भाई निसार अहमद तांत्रे को अपने ही स्कूल में अस्थायी अध्यापक नियुक्त करा दिया। कुछ माह बाद वह छुट्टी से लौटा और उसके बाद उसने अपने छोटे भाई को उसी स्कूल में नियमित कराया। कोई उसका विरोध नहीं कर पाया, क्योंकि वह हिजबुल का नामी कमांडर था। निसार तांत्रे ने सरकारी अध्यापक बनने के बाद न सिर्फ स्कूल के भीतर बल्कि आसपास के इलाकों में भी युवाओं में जिहादी मानसिकता पैदा करनी शुरू कर दी। निसार की गतिविधियों पर कई बार स्थानीय लोगों ने एतराज जताया, विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों ने भी प्रशासन को आगाह किया, लेकिन जमात-ए-इस्लामी के सक्रिय कार्यकर्ताओं में शामिल निसार का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया। निसार का एक बेटा पाकिस्तान में ही पढ़ाई कर रहा है और उसके बेटे का पाकिस्तान में सारा खर्च आइएसआइ और हिजबुल का चीफ कमांडर मोहम्मद यूसुफ उर्फ सैयद सलाहुद्दीन ही उठा रहा है। निसार तांत्रे को बीते सप्ताह ही सरकारी सेवा से बाहर किया गया है।

मोहम्मद जब्बार पर्रे :

जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) अनंतनाग में तैनात लेक्चरर मोहम्मद जब्बार पर्रे को भी पिछले सप्ताह ही सरकारी सेवा से बाहर किया गया है। वह दक्षिण कश्मीर में छोटा गिलानी के नाम से कुख्यात है। जमात-ए-इस्लामी के नामी कार्यकर्ताओं में शुमार जब्बार की राष्ट्रविरोधी गतिविधियों पर सुरक्षा एजेंसियों की निगाह थी, लेकिन सरकारी तंत्र में बैठे तत्वों ने उसका संरक्षण किया।

वह दक्षिण कश्मीर में हुर्रियत की गतिविधियों को आगे बढ़ाने से लेकर नौजवानों में जिहादी मानसिकता पैदा करने में लगा रहता था। उसने विभिन्न स्कूलों में जमात-ए-इस्लामी की छात्र इकाई जिसे जमात-ए-तुलबा कहते हैं, का गठन कराया। उसने कई बार आतंकी समर्थक रैलियों का आयोजन किया। वह पत्थरबाजी के लिए भी माहौल तैयार करता था। बिजबिहाड़ा व उसके साथ सटे इलाकों में जब कोई आतकी मारा जाता तो उसके जनाज में भीड़ जमा करने, पाकिस्तानी झंडे लहराए जाने के पीछे वही सूत्रधार था। उसने करीब डेढ़ दर्जन लड़कों को बीत पांच साल में आतंकी बनाया। इसके अलावा मस्जिदों में वह अपने जिहादी भाषणों से नए लड़कों में जिहादी मानसिकता पैदा करता था। वह जैश के आतंकी कमांडरों के साथ भी जुड़ा था।

रजिया सुल्तान :

खिरम, अनंतनाग में स्थित सरकारी स्कूल की हेडमास्टर रजिया सुल्तान जिले में एक तरह से दुख्तरान-ए-मिल्लत की कमान संभाल रही थी। दुख्तरान आसिया अंद्राबी का संगठन है और इस समय वह खुद तिहाड़ जेल में बंद है। रजिया सुल्तान के पिता सुल्तान बट जमात-ए-इस्लामी के कट्टर समर्थक थे, जिन्हेंं 1996 में आतंकियों ने सुरक्षाबलों का मुखबिर होने के संदेह में मार डाला था। रजिया सुल्तान को वर्ष 2000 में अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिली थी। वह सरकारी नौकरी में रहते हुए अक्सर देश की एकता व अखंडता के खिलाफ भड़काऊ बयान देती थी। वह अपने इलाके में दुख्तरान और जमात की बैठकों का भी आयोजन करती थी।

सकीना अख्तर :

सरकारी सेवा से निकाले गए अध्यापकों में सकीना अख्तर भी है। गोरजन खिरम के प्राइमरी स्कूल में वर्ष 2002 में वह अस्थायी तौर पर नियुक्त हुई और 2008 में उसकी सेवाएं नियमित की गई। वह दुख्तरान-ए-मिल्लत की एक सक्रिय कार्यकर्ता है और वह न सिर्फ स्कूल के भीतर बच्चों का जिहादी पाठ पढ़ाती थी बल्कि अपने इलाके में लड़कियों और बच्चों की राष्ट्रविरोधी रैलियों का भी आयोजन करती थी।

ऐसे चार नहीं, चार हजार होंगे :

अनंतनाग के निवासी फैयाज वानी ने कहा कि यह सिर्फ चार नहीं हैं, यहां ऐसे चार हजार होंगे या उससे भी ज्यादा हैं। ये लोग हिंदोस्तान के खजाने से वेतन लेते हैं, कश्मीरियों के खून पसीने की कमाई से जमा होने वाले टैक्स से इनकी तनख्वाह बनती है, उसके बावजूद यह कश्मीर के बच्चों को जिहादी और तालिबानी बनाकर मौत के रास्ते पर धकेलते हैं। ऐसे सभी लोगों को जब तक सरकारी तंत्र से बाहर नहीं किया जाएगा, कश्मीर में अमन नहीं लौटेगा।


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