आपातकाल 1975: लोकतंत्र बहाली के लिए चार भाइयों ने झेला बेइंतहा सितम
18 साल की आयु में आपातकाल में लोकतंत्र की बहाली की मशाल जलाकर जेल में अत्याचार झेल चुके शमींद्र कुमार ने देश प्रेम का मूल्य कम उम्र में जान लिया था।
जम्मू, राज्य ब्यूरो: 25 जून 1975 की आधी रात को आपातकाल लागू हो गया। नागरिक अधिकारों को समाप्त कर दिया गया जिसने भी विरोध किया जेल भेजकर बेइंतहा यातानाएं दी गईं। काली यादों का दंश पूरे देश की तरह जम्मू संभाग में भी कई परिवारों ने झेला। इनमें जम्मू में बसे गुप्ता परिवार भी शामिल था। गुप्ता परिवार के सदस्य कहते हैं कि हर कोई लोकतंत्र की बहाली और सरकार की दमनकारी नीतियां अपनाने वाली सरकार की ईंट से ईंट बजाने के लिए सड़कों पर था।
86 वर्षीय प्रो. चमन बताते हैं कि तत्कालीन शेख सरकार ने बर्बरता की हदें पार थी। पुलिस डंडे और बंदूकों के बट का विरोध करने वालों पर इस्तेमाल करती। जनसंघ का विधायक होने के बाद भी शेख अब्दुल्ला के इशारे पर पुलिस ने किसी को नहीं बख्शा। प्रो. चमन के छोटे भाई रमेश गुप्ता जो अखिल भारतीय विधार्थी परिषद जम्मू कश्मीर के प्रधान थे, को तो यातनाएं दीं। प्रो. चमन को छह माह तो रमेश का एक साल जेल में रख उन पर मीसा लगाया था। रमेश गुप्ता की उम्र 23 साल थी। उन्हें आपाताकाल के खिलाफ बैनर बांटने सहित और भी कई काम की जिम्मेदारी सौंपी थी। जेल में मार-मार कर उसके जिस्म से खून निकाला जाता था। ओम को खूब पीटा। जेल में लोकतंत्र के महत्व को अच्छी तरह से समझा। यह भी अंदाजा हो गया कि कितनी कुर्बानियां देकर स्वतंत्रता सेनानियों ने देश को आजाद करवाया था। आपातकाल में लोगों पर अत्याचार ऐसे किए जैसे स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में अंग्रेजों ने किए थे। आपातकाल की पाबंदियों ने सिखाया कि निरंकुश शासन नहीं लोकतंत्र ही देश के विकास के लिए जरूरी है।
जेल में रहकर जाना देश प्रेम का मूल्यः 18 साल की आयु में आपातकाल में लोकतंत्र की बहाली की मशाल जलाकर जेल में अत्याचार झेल चुके शमींद्र कुमार ने देश प्रेम का मूल्य कम उम्र में जान लिया था। शमींद्र उन दिनों को याद करते हैं जब जम्मू कश्मीर के लोग हाथ में तिरंगा लिए लोकतंत्र की बहाली के लिए सड़कों पर आ गए। वह भी उनके साथ हर कदम पर साथ दे रहे थे। 26 जून सुबह अखबारों में देश में आपात काल लगने का मुख्य समाचार था। मैं ऊधमपुर में था। संघ कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिए जाने की आशंका थी।
एक बैठक संघ नेता लाला शिवचरण गुप्ता के निवास स्थान पर हुई। उस रात्रि मेरे रहने की गुप्त व्यवस्था हुई और अगली सुबह बस में बैठ कर जम्मू पहुंचे। धीरे-धीरे आगामी आंदोलन की तैयारी शुरू कर दी। दमन के माहौल में लोक संघर्ष समिति के बैनर तले 15 नवंबर से देशभर में गिरफ्तारियां देने और जेल भरने का आंदोलन शुरू हुआ। पांच सत्याग्रहियों का पहला जत्था जब सिटी चौक में गिरफ्तारी देने पहुंचा तो पुलिस ने बुरी तरह पीटा। भय के माहौल में पोस्टर छाप रात्रि में शहर भर की दीवारों पर चिपकाने के साथ अगले जत्थों के लिए कार्यकर्ताओं को तैयार करना कठिन कार्य था। बावजूद रणनीति बनाकर किया। दो कार्यकर्ताओं को पुलिसकर्मी पकड़ कर ले गए।
मैं पुलिस की खिल्ली उड़ा रहा था कि एक जवान तेजी से पलटा और मुझे घसीटता थाने ले गया। कुछ घंटों बाद छोड़ दिया। 15 दिसंबर को रघुनाथ बाजार पहुंचे तो पुलिस ने उसे पकड़ पीटा। 10 दिन हवालात में रखने के बाद कोर्ट ने रिहा कर दिया। पंजतीर्थी क्षेत्र में रात्रि को एक आवश्यक पोस्टर चिपकाने की कोशिश कर रहा था कि पुलिस कर्मियों ने देख लिया। मैं वहां से भाग गया। तीन दिन बाद धौंथली बाजार में पकड़ लिया गया। मुङो बताया गया कि आपके खिलाफ मीसा के वारंट हैं। आपको जेल जाना होगा। स्पेशल जेल में उन्हें प्रताड़ित किया जाता रहा। कई संघ के बड़े नेता मौजूद थे। उन्होंने मेरा हौसला बढ़ाया। मैंने जेल में पहली कविता लिखी।