Union Territory Ladakh: एलएसी पर उठ रही बारूद की गंध को खत्म करेगी फूलों की खुशबू
लेह से करीब 20 किलाेमीटर दूर थिक्से में स्थापित इस फार्म में न सिर्फ स्थानीय किसानों को फूलों की खेती के गुर सिखाए जा रहे हैं बल्कि फूलों के पौधे बीज भी प्रदान किए जाते हैं।
श्रीनगर, नवीन नवाज। बर्फीला रेगिस्तान लद्दाख, भारत-चीन पर बने सैन्य तनाव के चलते फिर सुर्खियों में हैं। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर बारुद की धीरे-धीरे उठ रही गंध के बावजूद स्थानीय वातावरण में ताजे फूलों की सुगंध लद्दाख की आर्थिक खुशहाली का संकेत दे रही है। फूलों की खेती वातावरण में महक के साथ-साथ स्थानीय किसानों की जिंदगी को खुशहाल बनाने की उम्मीद जगा रही है। स्थानीय किसानों में फूलों की खेती को लेकर रुझान बढ़ रहा है।
करीब 80 हजार वर्ग किलाेमीटर में फैले लद्दाख की लगभग 88 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है। एक वर्ष पूर्व देश के नक्शे में एक अलग केंद्र शासित प्रदेश के रुप में उभरे लद्दाख का साल में लगभग छह से आठ माह तक देश के अन्य भागाें से जमीनी संपर्क कटा रहता है। खेती सिर्फ चार माह तक ही होती है। इसके अलावा स्थानीय किसानों के पास छोटे-छाटे खेत हैं और जमीन की भौगोलिक संरचना फसलों की ज्यादा पैदावार नहीं देती। इसका असर सीधा किसानों की आर्थिक स्थिति पर होता है।
कश्मीर केंद्रित सियासत की चंगुल से मुक्त होने के बाद लद्दाख की जमीन जिसे खेती के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता था, जहां थोड़ी बहुत गंदम पैदा होती थी, फूलों के नाम पर चंद जंगली फूल या फिर किसी आंगन में गुलाब नजर आता था, अब रंग बिरंगे फूलों से गुलजार होने लगी है। लद्दाख प्रदेश प्रशासन ने फूलों की पेशेवर खेती को प्रोत्साहित करने के लिए फ्लोरीकल्चर फार्म शुरु किया है। लेह से करीब 20 किलाेमीटर दूर थिक्से में स्थापित इस फार्म में न सिर्फ स्थानीय किसानों को फूलों की खेती के गुर सिखाए जा रहे हैं बल्कि फूलों के पौधे, बीज भी प्रदान किए जाते हैं। उन्हें बताया जा रहा है कि वे फूलों को कैसे ज्यादा देर तक ताजा सहेज कर रख सकते हैं।
उपराज्यपाल ने दिए थे फ्लोरीकल्चर फार्म शुरू करने के निर्देश: लद्दाख के उपराज्यपाल आरके माथुर भी बीते दिनों बर्फीले रेगीस्तान में स्थापित पहले फ्लोरीकल्चर फार्म के बारे में सुनकर पहुंचे थे। उन्हाेंने रंग बिरेंगे ताजे फूलों को देखकर संबधित अधिकारियों को प्रदेश में फूलों की खेती को प्राेत्साहित करने के लिए सरकारी स्तर पर फ्लाेरीकल्चर फार्म शुरु करने का निर्देश दिया। उन्होंने इस सिलसिले में शेर-ए-कश्मीर कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के लेह कैंपस के वैज्ञानिक और कृषि विभाग को मिलकर काम करने को कहा।
40 कनाल में फैला है यह फार्म: लेह के मुख्य कृषिअधिकारी ताषी त्सेतन ने कहा हमने यह फ्लोरीकल्चर फार्म कृषि विभाग के खाली पड़े एक सीड मल्टिपलिकेशन फार्म में ही तैयार किया है। 40 कनाल में फैले इस फार्म में हम गलेडियस, लिलियम, पेटयूनिया,मैरीगोल्ड, डेहल्यिा, सूरजमुखी जैसे फूल उगा रहे हैं। यहां पैदा किए जाने वाले सभी फूल जैविक खाद से ही तैयार हुआ है। इसे हम एक सैरगाह के रुप में भी विकसित कर रहे हैं। लद्दाख में फूल जून-जुलाई-अगस्त-सितंबर के दौरान तैयार हो रहे हैं जबकि इन महीनों में देश के अन्य भागों में ताजे फूलों की कमी होती है। लद्दाख ताजे फूलों के निर्यात का एक बड़ा केंद्र बन सकता है।
20 हजार के फूल स्थानीय बजार में ही बेचे: सोनम टुंडुप नामक एक किसान ने कहा कि मैंने इस साल पहली बार करीब तीन कनाल जमीन पर लिलियम और डहेलिया लगाया है। फूलाें की खेती के लिए मुझे कृषि विभाग और फ्लोरीकल्चर विभाग की तरफ से पूरी मदद मिली है। मैंने करीब 20 हजार के फूल स्थानीय बाजार में ही बेचे हैं। अभी पूरी फसल नहीं ली है। उसने कहा कि हमें फ्लोरीकल्चर विभाग के अधिकारियों ने बताया है कि अगर दो-चार किसान मिलकर अपने खेतों को आपस में जोड़कर कुछ खास किस्मों के फूल उगाएं तो ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं। इसलिए हम अगले सीजन से अपना एक समूह भी तैयार करेंगे।
लद्दाख के फूलों की रंगत और खुशबु ज्यादा दिलकश: वसीम अब्दुल्ला नामक एक होटल व्यवसायी ने कहा कि लद्दाख में आने वाले पर्यटकों की अकसर शिकायत होती थी कि यहां कोई ज्यादा बाग-बगीचे नहीं हैं, फूल नजर नहीं आते। उनकी यह शिकायत दूर होगी। सबसे बड़ी बात यह है कि हमारे यहां फूलों की खेती पूरी तरह आॅर्गेनिक है। लोग अब इन्हें सिर्फ अपने घर में गमले में नहीं उगा रह हैं, बल्कि खेतों में पेशेवर तरीके से उगा रहे हैं। यह कमायी का नया जरिया है। मुझे नहीं लगता कि देश के किसी अन्य भाग में फूलों की आॅर्गेनेिक खेती हो रही है। इसलिए यहां पैदा होने वाले फूलों की रंगत और खुशबु ज्यादा दिलकश है।