मुनाफे वाली खेती के लिए किसान अपनाएं आधुनिक तकनीक
खेती और बागवानी में बदलाव तभी आता है, जब किसान नए जमाने की खेती करते हुए आगे बढ़ते हैं। नए बीज, नए कृषि यंत्र उपयोग में लाए जाते हैं। इससे खेती का खर्च कम होता ही है, किसानों का मुनाफा भी बढ़ जाता है।
जम्मू, जेएनएन। क्षेत्र की पारंपरिक उपज को और बेहतर करने, किसानों को खेती, बागवानी व पशुपालन में तकनीकी सलाह दी जा रही है। कोशिश है कि कम लागत में किसानों को ज्यादा फायदा पहुंचे, ताकि वह तरक्की कर सके। आधुनिक खेती के लिए कैसे काम किया जाए, क्या अनुसंधान हुए हैं व क्या काम चल रहे हैं, इसके बारे में जानने के लिए दैनिक जागरण के वरिष्ठ संवाददाता गुलदेव राज ने शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी जम्मू (स्कास्ट) के डायरेक्टर रिसर्च डॉ. जेपी शर्मा से बातचीत की। बातचीत के प्रमुख अंश।
किसान अपनी आमदनी कैसे बढ़ाए
अभी भी किसान अपना गुजर-बसर नहीं कर पा रहा, जबकि खेतीबाड़ी को विकसित करने के लिए कई एजेंसियां काम कर रही हैं? अगर किसान को आमदनी बढ़ाना है तो उसे एकीकृत (इंटीग्रेटेड) खेती पर आना ही होगा। यानी कि खेती के साथ इससे जुड़े दूसरे कामकाज को भी बढ़ावा देना होगा।
जैसे कोई किसान गेहूं की खेती करता है तो उसे मशरूम की खेती भी करनी चाहिए क्योंकि कंपोस्ट बनाने के लिए उसे भूसा चारा बाहर से लेना नहीं पड़ेगा। चारा घर पर है तो मवेशी पालना आसान हो जाएगा। फिर मवेशियों का गोबर का सही इस्तेमाल करना होगा। इससे जैविक खाद की यूनिट लगा सकते हैं। खाद बेच सकते हैं व खेती में खाद की जरूरत को पूरा कर सकते हैं। मछली पालन का यूनिट शुरू कर सकते हैं।
विकास के लिए कितना जरूरी है रिसर्च वर्क?
खेतीबाड़ी हो या बागवानी, डेयरी या पोल्ट्री। विकास तभी संभव है जब समय-समय पर अनुसंधान होते रहें और इन अनुसंधानों के परिणाम खेती में उतारते रहें। यूनिवर्सिटी अपने लिए नहीं, बल्कि किसान समुदाय के लिए ही अनुसंधान करती है ताकि नए बीज, कृषि यंत्र, फलों के गुणवत्ता वाले पौधे किसानों तक पहुंच पाएं।
आज स्कास्ट राज्य की पारपंरिक उपज की गुणवत्ता को बरकरार रखते हुए नए बीज तैयार करने में जुटा हुआ है। फलों में पुराने पेड़ों को संरक्षित किया जा रहा है, जिनके फल कुछ हटकर रहे हैं। ऐसे पेड़ों के नए पौधे तैयार किए जाते हैं ताकि अनोखी किस्म को और बढ़ाया जा सके। हमारे स्कॉलर एग्रो इंजीनियरिंग में भी बेहतर कर रहे हैं। ऐसे ऐसे यंत्र सामने ला रहे हैं जिससे खेती में और सुधार लाया जा सके और किसानों की राहें आसान हो सकें।
अनुसंधान के क्षेत्र में स्कास्ट की उपलब्धियां क्या रहीं?
स्कास्ट जम्मू ने हाल ही में 12 नई वैरायटी को जारी किया है। इसमें जम्मू मैंगो सेलेक्शन 5 प्रमुख हैं। जम्मू के स्थानीय खट्टे आम की पहचान कर उसके नए पौधे तैयार किए गए। इस वैरायटी के आम के अंब पापड, अंब चूर्ण, अचार की बड़ी मांग रहेगी। वहीं स्कास्ट द्वारा बासमती की जारी की गई जम्मू 129 उपज आज किसानों में अपनी जगह बना रही है। यह धान जल्दी तैयार हो जाता है। एक हेक्टेयर में 50 से 60 क्विंटल की पैदावार दे जाती है जो कि सामान्य बासमती से 20 से 25 क्विंटल प्राप्त होती है। ऐसे ही स्कास्ट के वैज्ञानिकों द्वारा बनाया गया सीडर ड्रम अब किसानों में अपनी पहचान बनाने लगा है।
आज के इस दौर में सब बदल गया है। मौसम की किसानों को पल-पल की जानकारी चाहिए। इस दिशा में स्कास्ट की क्या भूमिका है?
किसानों को हर सप्ताह मौसम की जानकारी व फसलों की सलाह देने के लिए स्कास्ट एडवाइजरी जारी करता है। यह सीधे किसानों के मोबाइल के जरिए उन तक पहुंचती है। इस काम को अंजाम देने के लिए स्कास्ट ने अलग से एक विंग बनाया हुआ है।
आज दूध उत्पादन के क्षेत्र में भी राज्य कुछ बहुत ज्यादा तरक्की नहीं कर पाया है। इसके लिए आप किसे दोषी मानते हैं?
मैं यहां की सरकारों को इसके लिए दोषी मानता हूं क्योंकि जम्मू क्षेत्र की डेयरी अव्यवस्थित होकर काम कर रही है। छोटे किसान जो कि दो चार माल मवेशी रखता है, अपने हाल पर ही काम कर रहा है और दूध को मार्केट तक पहुंचा रहा है।
जम्मू के कंडी क्षेत्र के युवाओं के पास रोजगार नही हैं, आपके पास कोई सुझाव है?
कंडी में थोड़ी मेहनत की जरूरत है। यहां पर पानी कम होता है मगर इसका सदुपयोग कर बागवानी की जा सकती है। युवाओं को ध्यान रखना होगा कि अब जमाना उच्च तकनीक (हाई डेंसिटी) बागवानी का है।खेती और बागवानी में बदलाव तभी आता है, जब किसान नए जमाने की खेती करते हुए आगे बढ़ते हैं।
नए बीज, नए कृषि यंत्र उपयोग में लाए जाते हैं। इससे खेती का खर्च कम होता ही है, किसानों का मुनाफा भी बढ़ जाता है। नवीनतम तकनीक की खेती के वास्ते किसानों को प्रेरित करने के लिए तक केंद्र व राज्य सरकार की कई इकाइयां काम कर रही हैं।
एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी पर भी बड़ी जिम्मेदारी है। इनके वैज्ञानिक अपने तरीके से रिसर्च करते हैं और खेती तक लेकर आते हैं। राज्य में शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी (स्कास्ट) जम्मू अपनी अहम भूमिका निभा रहा है। विद्यार्थियों को एग्रीकल्चर, हार्टीकल्चर, वेटनरी में शिक्षा के साथ किसानों की खेती बेहतर करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा रही है। किसानों के लिए नए अनुसंधान किए जा रहे हैं।