कश्मीरी और भद्रवाही गायिकी के लिए मशहूर एजाज अहमद को अभी भी गुरु की तलाश, बचपन में रेडियो था उनका गुरु
एजाज अहमद भद्रवाही को प्रदेश में कौन नहीं जानता। मां भगवती का जागरण हो या जम्मू-कश्मीर का कोई प्रतिष्ठित महोत्सव वहां एजाज अहमद के सुरीले गीत या भजन सुनने को जरूर मिल जात है। हालांकि वे प्रसार भारती से मान्यता प्राप्त कश्मीरी और भद्रवाही गायिकी के कलाकार हैं
जम्मू, जागरण संवाददाता: कश्मीरी और भाद्रवाही गायिकी में विशिष्ट पहचान। देश के कई राज्यों में अपनी गायिकी का लोहा मनवा चुके हैं। प्रसार भारती से कश्मीरी और भद्रवाही के मान्यता प्राप्त कलाकार, पर आज तक उनका कोई गुरु नहीं मिला। बिना गुरु के गायिकी में ऐसी मुकाम हासिल कर ली, जो संगीत के अच्छे-अच्छे साधकों की तमन्ना होती है। यह सुनकर अजीब लगता है, पर हकीकत है। ऐसे बेमिसाल कलाकार हैं जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले के दूरदराज क्षेत्र भलेस गंदोह के रहने वाले कलाकार एजाज अहमद भद्रवाही।
एजाज अहमद भद्रवाही को प्रदेश में कौन नहीं जानता। मां भगवती का जागरण हो या जम्मू-कश्मीर का कोई प्रतिष्ठित महोत्सव, वहां एजाज अहमद के सुरीले गीत या भजन सुनने को जरूर मिल जाते है। हालांकि वे प्रसार भारती से मान्यता प्राप्त कश्मीरी और भद्रवाही गायिकी के कलाकार हैं, लेकिन जम्मू-कश्मीर की शायद ही कोई भाषा हो, जिसमें गाकर वह दर्शकाें का मन न मोह लिए हों।
एजाज 25 साल से गाते आ रहे हैं, परउन्हें आज भी मलाल इस बात का है कि उन्हें जीवन में कोई गुरु नहीं मिला। बचपन में रेडियो ही उनका सच्चा साथी या कहे कि गुरु था। रेडियो सुनकर ही थोड़ा गाना सीखा। अभी वह चौथी में ही पढ़ते थे कि डोडा में आयोजित स्वतंत्रता समारोह में उन्हें गाने का मौका मिला। उस कार्यक्रम ने ऐसा प्रोत्साहित किया कि उसके बाद क्षेत्र में कोई भी कार्यक्रम हो उन्हें गाने का मौका मिल ही जाता।
जिला डोडा के इस दूरदराज इलाके में जब आतंकवाद ने सिर उठाना शुरू किया तो एजाज भद्रवाह चले गए। संगीत का शौक और लगन तो था, पर वहां कोई संगीत की विधिवत शिक्षा देने वाला कोई नहीं मिला। उन्हीं दिनों भद्रवाह के ही मशहूर गायक फीद भद्रवाही को एजाज ने गाते सुना। उनकी गायकी के वे ऐसे कायल हुए कि अब वह उन्हीं तरह गाना चाहते थे और उसी तरह गाने का प्रयास भी शुरू कर दिया। धीरे-धीरे भद्रवाह में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में भी उन्हें मौका मिलने लगा।
बाद में रेडियो श्रीनगर से कश्मीरी, भद्रवाही गायकी का आडिशन पास किया तो रेडियो से उनके गाने बजने लगे। रेडियो पर जब उनके गीत गूंजने लगे तो मौके और भी मिलते गए। अब श्रीनगर दूरदर्शन हो या जम्मू दूरदर्शन उनके कार्यक्रम चलते ही रहते हैं। करीब 12 साल से जम्मू-कश्मीर कला-संस्कृति एवं भाषा अकादमी और दूसरी प्रतिष्ठित संस्थाओं के कार्यक्रमों को भी एजाज अहमद चार चांद लगा रहे हैं। अकादमी के केरल, बंगलुरू, कन्याकुमारी, दिल्ली आदि कई प्रतिष्ठित समारोह में एजाज अहमद अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं।
शायद ही कोई मंच रहा होगा, जब एजाज मंच पर गाने लगे हों और दर्शक वंस मोर... की आवाज न लगाया हो।एजाज कहते हैं कि वह सुगम संगीत गाते हैं। लेकिन गजल और सूफियाने गीत दिल को छू जाते हैं। उन्होंने बताया कि पिछले कुछ समय से भजन गाना भी सीखा है। भजन गाना भी बहुत अच्छा लगता है। अक्सर अपने मित्रों के साथ जागरण करने भी जाते हैं। गाने का कोई भी मौका मिले, उसमें बेहतर करने की ललक अभी भी है।
एजाज कहते हैं कि अभी भी अगर कोई अच्छा गुरु मिल जाए तो वह और बेहतर कर सकते हैं। यह उनका जीवट ही है कि बिना गुरु संगीत साधना में बुलंदियों को लू लिया। वह बताते हैं कि दूरदराज क्षेत्रों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, लेकिन इस प्रतिभा को तराशने वाले नहीं मिलते। सरकार की तरफ से ऐसे बच्चाें को प्रशिक्षित करने की कोशिश होनी चाहिए।