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कट्टरता को परिभाषित करने की कारगर पहल, गुमराह युवाओं को मुख्यधारा में लाने की कवायद

युवाओं में बढ़ती कट्टरपंथी सोच न केवल मानव पूंजी या संसाधन बल्कि सामाजिक पूंजी के क्षरण के लिए भी जिम्मेदार है। इसलिए आज दुनिया के कई देश चाहे वह भारत हो या फ्रांस सभी कट्टरपंथ से निपटने के लिए निर्णायक रणनीति बनाने में लगे हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 14 Dec 2020 09:13 AM (IST)Updated: Mon, 14 Dec 2020 09:14 AM (IST)
कट्टरता को परिभाषित करने की कारगर पहल, गुमराह युवाओं को मुख्यधारा में लाने की कवायद
भारत सहित विश्वभर में युवाओं में बढ़ती चरमपंथी सोच राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती है। प्रतीकात्मक

विवेक ओझा। कट्टरता और चरमपंथी मानसिकता विश्व शांति व सुरक्षा के साथ ही राष्ट्रों के आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़े खतरे के रूप में बरकरार है। कट्टरता चाहे धार्मिक हो, सांस्कृतिक हो, विचारधारागत हो या इस्लामिक, वह राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए गंभीर खतरा है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हाल ही में फ्रांस ने एक पृथकतावाद विरोधी विधेयक पारित किया है, जिसका मुख्य उद्देश्य इस्लामिक कट्टरता और चरमपंथ से अपने सामाजिक सांस्कृतिक ताने-बाने को सुरक्षा देना है। फ्रांस में विचार और अभिव्यक्ति की आजादी बनाम धार्मिक आस्था का प्रश्न इस्लामिक कट्टरता से निपटने के प्रश्न से जुड़ गया है। इसलिए फ्रांस ने ऑनलाइन या साइबर चरमपंथ से निपटने और ऑनलाइन हेट स्पीच तथा इंटरनेट से व्यक्तिगत जानकारी को लेकर कट्टरता बढ़ाने जैसी गतिविधियों पर प्रभावी नियंत्रण के लिए मजबूत कानून लाने का काम किया है।

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फ्रांस का मानना है कि धार्मिक कट्टरता विश्व के देशों के लोकतांत्रिक मूल्यों पर चोट कर रही है। फ्रांस में इस्लामिक आतंकी संगठनों के द्वारा धार्मिक आस्था के नाम पर नागरिकों व शिक्षकों की हत्याएं की गई हैं, जिन्हें वह किसी भी कीमत पर औचित्यपूर्ण मानने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन उसे यह साफ करना पड़ा है कि वह इस्लामिक कट्टरता से निपटने वाले बिल के जरिये फ्रांस में रहने वाले मुस्लिम समुदाय को रेडिकल इस्लाम की जकड़न से मुक्त करने की मंशा रखता है, न कि इस्लाम और पूरे मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने की। फ्रांस के इस प्रस्तावित कानून के जरिये मस्जिदों को प्राप्त होने वाली विदेशी वित्तीय सहायता पर रोक लगाना आसान हो जाएगा।

भारत में आंतरिक सुरक्षा की मजबूती का प्रयास : फ्रांस से हट कर अपने देश भारत की बात करें तो यहां भी कट्टरता, धार्मिक और अन्य आधारों पर चरमपंथी मानसिकता आदि के जरिये आतंकी गतिविधि, अलगाववादी आंदोलन, जिहादी विचारधारा को फलने-फूलने का अवसर मिला है। लिहाजा इन तथ्यों की गंभीरता को ध्यान में रखकर भारत सरकार के गृह मंत्रलय ने भी हाल ही में देश में हर तरह के रेडिकलाइजेशन (कट्टरता) की वर्तमान स्थिति को जानने और उसके हिसाब से देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए काम करने के उद्देश्य से एक व्यापक अध्ययन को मंजूरी दी है।

देश में कट्टरता की स्थिति का पता लगाने संबंधी अनुसंधान इस दिशा में देश में पहली बार किया जा रहा है। इसके तहत कट्टरता शब्द को वैधानिक रूप से परिभाषित किया जाएगा और उस अनुरूप वैधानिक क्रियाकलाप (रोकथाम) अधिनियम, 1967 में आवश्यक संशोधन करने की सिफारिश की जाएगी। गृह मंत्रलय के तत्वावधान में इस अध्ययन और अनुसंधान को दिशा देने वाले नेशनल लॉ यूनिवर्सटिी, दिल्ली ने स्पष्ट किया है कि देश में किस किस प्रकार की कट्टरता है, उसकी वजह क्या है, उसको बढ़ावा देने वाले कारक कौन से हैं और कट्टरता की सोच को खत्म कैसे किया जा सकता है।

युवाओं को गुमराह होने से बचाने की कोशिश : भारत जैसे बहुधार्मिक, बहुसांस्कृतिक और बहुनृजातीय देश में यह आश्वासन कि कट्टरपंथ और कट्टरपंथियों का कोई खास मजहब नहीं होता, कट्टरपंथी किसी भी धर्म से संबंधित हो सकते हैं फिर चाहे वो इस्लामिक कट्टरपंथी हों या हंिदूू या सिख। गृह मंत्रलय का मानना है कि रेडिकलाइजेशन के वैधानिक रूप से परिभाषित न होने के चलते पुलिस द्वारा इस स्थिति का दुरुपयोग किया जाता है। चरमपंथी और अलगाववादी गतिविधियों में शामिल गुमराह युवाओं को किन आधारों पर कट्टरपंथी कहा जाएगा, यह परिभाषित होना जरूरी है, ताकि विधि प्रवर्तनकारी निकायों के समक्ष उनके खिलाफ कार्रवाई करने में असमंजस न हो।

सरकार का उदार दृष्टिकोण : गृह मंत्रलय की इस पहल के तहत भारत के पवित्र धर्म ग्रंथों की सही व्याख्या करने पर बल देने के साथ ही कट्टरपंथी युवाओं को दोषी नहीं, बल्कि गुमराह युवा होने की बात की गई है, जो सरकार के उदार दृष्टिकोण को दर्शाता है। गुमराह युवाओं के खिलाफ आक्रामक पुलिस कार्रवाई का विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए जोर इस बात पर होना चाहिए कि गुमराह युवाओं की कट्टरपंथी सोच और वैचारिकी का खात्मा कैसे किया जा सकता है। गृह मंत्रलय के तत्वावधान में गुमराह युवाओं को उनकी कट्टरपंथी सोच से मुक्त करने के लिए डी-रेडिकलाइजेशन के लिए महाराष्ट्र मॉडल का अध्ययन किया गया है, जहां इस दिशा में सफलता पाई गई है।

भारत में युवाओं में कट्टरपंथ के प्रसार का साक्ष्य संयुक्त राष्ट्र की आइएस, अल कायदा और अन्य संबंधित इकाइयों से संबंधित एनालिटिकल सपोर्ट एंड सैंक्शंस मॉनिटरिंग टीम की एक रिपोर्ट में दिया गया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि आइएस और अल कायदा के कई सदस्य कर्नाटक व केरल के हैं। ऐसी भी आशंका व्यक्त की गई है कि आइएस से संबद्ध एक भारतीय शाखा में इस्लामिक चरमपंथी मानसिकता वाले करीब 200 सदस्य हैं। वहीं भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने भी तेलंगाना, केरल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु से 122 लोगों, जिन पर आइएस से जुड़े होने का आरोप है, उन्हें गिरफ्तार किया था।

चरमपंथ से निपटना आवश्यक : भारत सरकार के गृह मंत्रलय के तहत देश में चरमपंथी व कट्टरपंथी सोच से निपटने के लिए आतंकवाद रोधी एवं इस्लामिक कट्टरवाद रोधी प्रभाग बनाया गया है। यह आतंकवाद से मुकाबला करने, कट्टरपंथीकरण, गैर कानूनी क्रियाकलाप (रोकथाम) अधिनियम, नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी अधिनियम, फेक इंडियन करेंसी नेटवर्क (एफआइसीएन) और फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) के आतंक के वित्त पोषण को रोकने, काले धन और मनी लॉन्डिंग से निपटने के प्रयासों को दिशा देता है। इसके अलावा कट्टरपंथ से निपटने के लिए भारत के सशस्त्र बलों, अर्धसैनिक बलों के द्वारा कट्टरपंथ, अलगाववाद और आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों में प्रभावी तरीके से सिविक एक्शन प्रोग्राम और परसेप्शन मैनेजमेंट रणनीति के जरिये गुमराह युवाओं में शासन प्रशासन के प्रति विश्वसनीयता के भावों का विकास किया जाना जरूरी है।

जिहादी साहित्य, दस्तावेज आदि के प्रसार को रोकने के लिए इंटरनेट मीडिया प्लेटफॉर्म्स का प्रभावी विनियमन जरूरी है। चरमपंथ, आतंकवाद और कट्टरतावाद को केवल बल के इस्तेमाल से पराजित नहीं किया जा सकता और इसके लिए समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता को स्वीकार करना राष्ट्रों के लिए जरूरी है। अतिवादी और हिंसक विचारधाराओं को बढ़ावा देने के लिए इंटरनेट मीडिया के उपयोग को रोकना, युवाओं को कट्टरपंथी बनाने और आतंकवादी कार्यकर्ताओं की भर्ती करने में धार्मिक केंद्रों के उपयोग को रोकने और सहिष्णुता को बढ़ावा देने के उपाय राष्ट्रों द्वारा किए जाने आवश्यक हैं। इस संदर्भ में उरुग्वे के सवाब और हेदायह केंद्र जैसी पहलों के योगदान का उदाहरण दिया जा सकता है जो चरमपंथी विचारधाराओं का मुकाबला करने और अंतरराष्ट्रीय चरमपंथ विरोधी सहयोग को ऑनलाइन स्तर पर आगे बढ़ा रहे हैं। ऐसे ही चरमपंथ विरोधी केंद्रों के गठन की जरूरत भारत में भी है। इसके अतिरिक्त आधुनिक शिक्षा प्रणाली जिसमें मानवीय मूल्य, लोकतांत्रिक मूल्यों और सरोकारों, मानवाधिकारों, राष्ट्रीय एकीकरण के भावों को संवेदनशीलता के साथ रखा गया हो, उसे चरमपंथ प्रभावित क्षेत्रों में कुशलता से रखा जाना आवश्यक है।

कश्मीर में ओवरग्राउंड वर्कर आतंकियों के लिए मददगार साबित होते हैं। दरअसल ये ऐसे युवा हैं, जो किसी आतंकी घटना को अंजाम देने में प्रत्यक्ष रूप से तो संलग्न नहीं होते, लेकिन आतंकियों को हिंसक हमलों और उनके अन्य उद्देश्यों को पूरा कराने में सहायक की भूमिका अदा करते हैं। ये ऐसे व्यक्ति हैं जो आतंकी विचारधारा से धर्म और मौद्रिक लाभों के आधार पर प्रभावित होते हैं और आतंकियों के लिए अपने घरों में शरण देने, उनके लिए विभिन्न आवश्यक उपकरण जैसे मोबाइल, सिम, हथियार, अन्य आवश्यक रसद मुहैया कराने में परोक्ष रूप से लगे होते हैं। कश्मीर में इन कार्यकर्ताओं ने आतंकियों की भर्ती और प्रशिक्षण संपन्न कराने में सहायक की भूमिका निभाई है। ये विभिन्न प्रकार के वाहनों का इंतजाम कर आतंकियों के लिए हथियारों की आपूíत करते हैं। दक्षिणी कश्मीर में सक्रिय हिज्बुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी गुटों के इन कार्यकर्ताओं के नेटवर्क पर नियंत्रण के उद्देश्य से ही भारत सरकार ने 2019 के प्रारंभ में ही कश्मीर में जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगा दिया। यह संगठन इन वर्कर्स की सहायता से कश्मीर में अलगाववाद और आतंकियों को सहयोग देने में लिप्त पाया गया था। गृह मंत्रलय द्वारा कहा गया है कि जमात-ए-इस्लामी जो कि हिज्बुल मुजाहिदीन और हुर्रियत का अभिभावक संगठन है, कश्मीर घाटी में पृथकतावादी और कट्टर विचारधारा के प्रसार के लिए जिम्मेदार है।

जमात-ए-इस्लामी एक सामाजिक धार्मिक समूह के रूप में वर्ष 1941 से जम्मू कश्मीर में सक्रिय रहा है, लेकिन हाल के समय में इसके द्वारा पाकिस्तान से प्राप्त फंडिंग के जरिये कश्मीर के युवाओं को इस्लामिक रेडिकलाइजेशन के मार्ग पर ले जाने का सक्रिय प्रयास किया गया है और स्थानीय युवाओं ने इसकी कट्टर धाíमक सीखों से प्रेरित होकर आतंकवादी संगठनों के सदस्य बन गए हैं। हाल के समय में अधिकांश स्थानीय नागरिक जो कश्मीर में आतंकी समूहों से जुड़े हैं, वे जमात-ए-इस्लामी से भी उसके शैक्षणिक संस्थानों या धाíमक गतिविधियों से किसी न किसी रूप में जुड़े रहे हैं।

वर्ष 2018 में 180 से अधिक कश्मीरी युवाओं ने आतंकी समूहों की सदस्यता ली है। इस वर्ष कश्मीर में 252 आतंकवादी मारे गए। पूर्व में विदेशी आतंकवादी ज्यादा संख्या में मारे जाते थे, लेकिन पिछले दो वर्षो में कश्मीर के स्थानीय युवा जो आतंकी बन चुके हैं उनकी मौत अधिक हुई है। यह बात गुमराह युवाओं की स्थिति को दर्शाता है। केंद्र सरकार ने फरवरी 2019 में जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाते हुए कहा था कि यह कश्मीर में युवाओं के मध्य अपने नेटवर्क का इस्तेमाल कर भारत विरोधी भावना और मानसिकता का पोषण कर रहा है। इसके नेता इनके यूथ विंग के कैडरों को प्रोत्साहित कर रहे हैं और इसका यूथ विंग जमीअत उल तुलबा युवाओं को आतंकियों के रूप में भर्ती करने के कार्य में लिप्त है।

[आंतरिक सुरक्षा मामलों के जानकार]


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